(Picture Credit: Gitanjali Arora)

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377 से आज़ादी के एक साल – क्या सच में कुछ बदला?

By सईद हमज़ा (Syeed Hamza)

September 06, 2019

आज़ादी के एक साल पूरे हुए। अब देखना ये है कि इस एक साल में एलजीबीटी+ समुदाय का जीवन कितना सुधरा ? बेशक हम ये कह सकते हैं कि हमारे ऊपर से ‘कानूनी मुजरिम’ होने का कलंक मिट गया और अब कानून भी हमारे साथ है। लेकिन जो सबसे अहम चीज़ है वो है समाज का नज़रिया। क्या सुप्रीम कोर्ट के फैसले ने लोगों के नज़रिए में बदलाव लाया?

मुझे नहीं लगता कि इस फैसले ने भारतीय समाज के नज़रिए में कुछ ख़ास बदलाव लाया है। यौनिक अल्पसंख्यकों के साथ आज भी वैसे ही भेदभाव और हिंसा हो रही है जैसे फैसला आने से पहले हुआ करती थी। हाल ही के दिनों में महाराष्ट्र के दूर-दराज़ के इलाके में रहने वाले एक समलैंगिक युवक ने चेन्नई में आत्महत्या कर ली। सुसाइड लेटर को पढ़ने के बाद उसके साथ होने वाले रोज़-रोज़ के भेदभाव और हिंसा का पता चलता है। उस सुसाइड लेटर ने मुझे अंदर तक झकझोर कर रख दिया। हमारे समाज ने उसे इतना प्रताड़ित किया कि वो आत्महत्या करने पर मजबूर हो गया है। पूरे देश भर में किन्नरों पर हिंसा बदस्तूर जारी है। कहीं उनके साथ मारपीट की जाती है तो कहीं हत्या कर दी जाती है।

सुप्रीम कोर्ट के जजों ने अपने फैसले में पूरे तौर पर हमारे अधिकारों की रक्षा की बात की थी। उन्होंने अपने फैसले में यह भी कहा था कि सरकार को चाहिए कि वह यौनिक अल्पसंख्यकों के साथ होने वाले भेदभाव को रोकने के लिए हर कोशिश करें और समाज को इस समुदाय के प्रति जागरुक करें। सरकार ने एक साल में ऐसा एक भी कदम नहीं उठाया जिससे भारतीय समाज एलजीबीटी+ समुदाय के प्रति जागरूक हो सके। बल्कि सरकार ने इस फैसले के खिलाफ जाकर कई ऐसे कानून पास कराए जो यौनिक अल्पसंख्यकों के साथ भेदभाव करता है। नए सेरोगेसी बिल में समलैंगिकों को किराए का कोख लेने से रोक दिया गया। नया ट्रांसजेंडर बिल ट्रांसजेंडरों के रोज़गार का इंतज़ाम किए बगैर उन्हें भीख माँगने से रोकता है और अगर कोई ट्रांसजेंडर भीख माँगते पकड़ा जाए तो उन्हें इस कानून के हिसाब से जेल भी जाना पड़ सकता है।

कुल मिलाकर सरकार ने हमारे अधिकारों की रक्षा कभी नहीं की, उल्टा हमारे अस्तित्व और जरूरतों को नज़रअंदाज़ ही किया है। इसलिए एलजीबीटी+ समुदाय को चाहिए कि अपने अधिकारों के लिए आगे भी लड़ाई जारी रखें। अभी पहला कदम रखा है मीलों चलना बाकी है। शादी, सेरोगेसी या गोद लेना, उत्तराधिकारी का अधिकार, मिलिट्री सर्विस और ब्लड डोनेट करने का अधिकार लेना बाकी है। कोई हमारे साथ नहीं होगा हमें अपनी लड़ाई खुद ही करनी होगी।

आज़ादी के एक साल पूरे होने पर बधाई देते हुए मैं उम्मीद करता हूंँ कि आने वाले सालों में हमें भी औरों की तरह बराबरी का दर्जा मिलेगा और हम भी एक सम्मान पूर्वक जीवन गुज़ारेंगे।