Nemat Sadat

Hindi

अफ़ग़ानी होते हुए भी, खुद को भारतीय के रूप में स्वीकारना

By Gaylaxy

November 11, 2019

डा कारपेट वीवर का जन्म हुआ मेरे बार-बार के एकतरफा प्यार से और उस खोज से जिस पर मैं निकल पड़ा अपने आप को उन मानसिक बेड़ियों से मुक्त करने को जो की होमोफोबिआ, घर की याद; और अफगान और अमेरिकी संस्कृति, इस्लाम और पश्चिमता के बीच फँसे एक दमित समलैंगिक होने के कारण मेरे पैरों पे पड़ी हुई थी।

मैं काबुल, अफ़ग़ानिस्तान में 1979 में पैदा हुआ था, जिस वर्ष सोवियत ने आक्रमण किया था। अगले साल मेरे परिवार और मैं बॉन चले गए, जब मेरे पिता को पश्चिम जर्मनी में अफ़ग़ानिस्तान का राजदूत नियुक्त किया गया था। 1984 में अफ़ग़ानिस्तान की परचमी सरकार ने मेरे पिता को वापस बुला लिया। मेरी माँ ने युद्ध और साम्यवाद से पीड़ित अफ़ग़ानिस्तान में मुझे और मेरे भाई-बहनों को लेकर रहने से इंकार कर दिया और हमें अपने साथ लेकर छुपते-छुपाते अमेरिका ले गयी।अब मैं एक दक्षिणी कैलिफोर्निया के अफगान प्रवासीयों के बीच में, एक कम आय वाले घर में बढ़ने का अपना अमेरिकी अनुभव बताना शुरू करूँगा।

मैंने कम उम्र से ही अपने समलैंगिक होने पर शर्म की एक गहन भावना का अनुभव किया। यह पितृसत्ता की एक उलझी हुई संस्कृति में पैदा होने के कारण था जो समलैंगिक प्रेम के लिए सहिष्णुता को खारिज कर देती। उसी समय, मैं अमेरिका में निर्वासित होने वाले जातीय अल्पसंख्यक के रूप में अलगाव की भावना से जूझ रहा था। इसने मुझे भयभीत कर दिया कि मेरा एक हिस्सा ऐसा था जिसे न तो अफ़ग़ान और न ही अमेरिकी स्वीकार करने को तैयार होंगे। फिर 20 साल की उम्र में, 11 सितंबर, 2001 के हमलों के बाद मेरी निष्ठा पर सवाल उठाया गया, जब मेरी दत्तक भूमि मेरी मातृभूमि के साथ युद्ध में चली गई और मेरी टकराती पहचानों को प्रवाह में फेंक दिया गया। मैंने जो संकट अनुभव किया, उसने मेरे बौद्धिक जागरण को प्रेरित किया और मैंने अगले दशक मे खुद को शिक्षित करने और यह पता लगाने की कोशिश की कि मैं दुनिया में कैसे अपनी पहचान बनाऊँगा।

2012 में, 32 साल के बाद मैं अपनी मातृभूमि लौट आया, और आत्मज्ञान के आदर्शों को फैलाने के लिए अपना सफर शुरू किया। काबुल में रहते हुए और अफ़ग़ानिस्तान के अमेरिकी विश्वविद्यालय में राजनीति विज्ञान के प्रोफेसर के रूप में काम करने से मुझे एहसास हुआ कि मैं अब अपनी सेक्सुअलिटी को ले कर लुका-छिप्पी का खेल और नहीं खेल सकता। इसके पूर्व मेरा जीवन काफी उलझा हुआ था – मैंने अपने परिवार और अपने समुदाय के सामने कभी भी अपने जीवन के सच को नकारने की कोशिश नहीं की, परन्तु कभी उसे जताने की भी कोशिश नहीं की, और ना ही कभी माँग की कि वह मेरे इस सत्य को अपनाएँ।

जिस वर्ष मैं अफ़ग़ानिस्तान में रहा, सेक्स और सेक्सुअलिटी को लेकर मेरे अपरंपरागत और खुले विचारों के कारण मुझे सताया गया। काबुल के चारों ओर अफवाहें फैलीं कि मैं एक समलैंगिक और पतित मुसलमान था। मुझे एहसास हुआ कि यह एक बहुत बड़ी त्रासदी होगी अगर मैं पहले कि तरह एक विदेशी देश में अपनी सेक्सुअलिटी को दबाते हुए अपना जीवन व्यतीत करने लगा। तत्पश्च्यात, मैंने सोशल मीडिया पर एलजीबीटीक्यू अधिकारों के लिए धीरे-धीरे अभियान चलाया और राजधानी भर में कॉफी की दुकानों और होटलों में समलैंगिक पुरुषों से मिलना शुरू किया। मैंने अफ़ग़ानिस्तान में दमन के खिलाफ निरन्तर लड़ाई लड़ी, जो आगे बढ़ने लगी और एक समलैंगिक मुक्ति आंदोलन को जन्म दिया और इस्लामी शरीयत कानून और धर्मनिरपेक्ष-प्रगतिशील मूल्यों के बीच एक सांस्कृतिक युद्ध को प्रज्वलित किया।

इसके पूर्व मेरा जीवन काफी उलझा हुआ था – मैंने अपने परिवार और अपने समुदाय के सामने कभी भी अपने जीवन के सच को नकारने की कोशिश नहीं की, परन्तु कभी उसे जताने की भी कोशिश नहीं की, और ना ही कभी माँग की कि वह मेरे इस सत्य को अपनाएँ।

मुझे अफ़ग़ानिस्तान के राष्ट्रीय सुरक्षा और इस्लाम के सामाजिक व्यवस्था के लिए खतरा माना जाने लगा और मुझे दूसरी बार अफ़ग़ानिस्तान ज़बरदस्ती छोड़ना पड़ा। मैं यह महसूस करते हुए लौट आया कि मैं उस जीवन से संतुष्ट नहीं रह सकता जो मैं एक बार अमेरिका में जी चुका था; वह संस्कृति जो गोरी नस्लीय लोगों हो श्रेष्ठ मानती है, जिसमे मुझे अनाकर्षक माना जाता था। मैं अभी भी अन्य था।

22 अगस्त, 2013 को न्यूयॉर्क शहर के एक अपार्टमेंट में मेरे बिस्तर से लगभग 2:30 बजे, मैंने फेसबुक पर यह संदेश प्रसारित किया:

अपनी समलैंगिकता को लेकर पूरी दुनिया के सामने खुल कर आने की प्रक्रिया को समाप्त करके मैं बहुत खुश हूँ। बोझ हल्का हुआ हमेशा के लिए। ग्रह के अंतिम कुछ लोगों के लिए जो नहीं जानते हैं, मैं आपको बता दूँ: हाँ, मुझे समलैंगिक, अफगान, अमेरिकी और मुस्लिम होने पर गर्व है। तो इससे उभर जाओ अब! अब मैं आंटियों और अणक्लों के परेशान कर देने वाले शादी के सवालों से आज़ाद हो कर अपना जीवन जी पाऊँगा । अगर वो फिर भी सवाल करते हैं, तो मैं बस अपना सिर हिलाऊँगा, अपनी ऊँगली हिलाऊँगा, अपने बालों को उछलूँगा और उन्हें बताऊँगा कि मैं एक प्रतिष्ठित सज्जन से शादी कर रहा हूँ और पश्तो में हम इसे “खावंद” (मालिक, पति) कहते हैं और यदि आप अपने बेटे या भतीजे को पेश करना चाहते हैं तो उसे बतायेँ कि मुझे अपनी ऊँगली पर एक प्लैटिनम की अँगूठी, एक केंद्रीय पार्क शादी समारोह और बाद में मैनहट्टन गगनचुंबी छत का रिसेप्शन चाहिए। मेरे पास यह सब योजनाबद्ध है। ऐसी खास जीवन शैली का इंतज़ार है। जी हाँ! ”

मैंने अपने मस्तिक्ष में चल रहे उथल-पुथल को समाप्त कर दिया। अपनी यौन पसंद को प्रचारित करने के लिए और अफ़ग़ानिस्तान में और LGBTQIA अधिकारों और समलैंगिक विवाह के लिए प्रचार करने के लिए मुझे नफरत कि सुनामी, निंदा, मौत की धमकी और यहाँ तक ​​कि एक फतवे को भी झेलना पड़ा। इस क्षण में मैंने फिर अपनी समलैंगिकता को खुल कर अपनाने को खुद से कहीं अधिक बड़ा देखना शुरू कर दिया।

मेरी कहानी, मूल तौर में, मुस्लिम परम्पराओं से एक समलैंगिक अफगान शरणार्थी के निर्माण कि है, जो एक परिवर्तनकारी नेता के रूप में सामने आया। बाहर आने के बाद मुझे एहसास हुआ कि द कारपेट वीवर मेरे या कनिष्क के बारे में नहीं था। यह उपन्यास पूरब भर के सभी LGBTQIA के लिए एक आवाज़ और एक पात्र बन गया जो समलैंगिकता को छुपाये हुए हैं, क्योंकि उन्हें जान का खतरा है या कारावास या अन्य प्रकार के उत्पीड़न का डर है। इसने मेरे जीवन को उद्देश्य दिया और मुझे भयभीत कर दिया कि मैं अपने कन्धों पर समलैंगिक दुनिया का भार ढो रहा था और कनिष्क उन सभी लोगों की आकांक्षाओं को पूरा कर रहा था जिन्हें जीने और प्यार करने और अपनी पूरी क्षमता तक पहुँचने की स्वतंत्रता से वंचित रखा गया है।

अपनी यौन पसंद को प्रचारित करने के लिए और अफ़ग़ानिस्तान में और LGBTQIA अधिकारों और समलैंगिक विवाह के लिए प्रचार करने के लिए मुझे नफरत कि सुनामी, निंदा, मौत की धमकी और यहाँ तक ​​कि एक फतवे को भी झेलना पड़ा

यहाँ तक ​​कि मेरे अंधेरे और अकेले दिनों में, ब्रुकलिन में एक बेघर आश्रय में रहने वाले लोगों के बीच रहने के बावजूद, मुझे द कारपेट वीवर लिखने कि ताकत मिली यह जानकर की किसी दिन यह LGBTQIA समुदाय के बारे में दुनिया कि मानसिकता को बदलने के लिए एक याचिका बन जाएगी।

जब ना बोलने वाले या प्रगतिविरोधी ने खुद को सशक्त बनाने और दूसरों को मुक्ति दिलाने के लिए मेरी महत्वाकांक्षा का अवरुद्ध किया, उस वक़्त एक भारतीय ने मेरे लिए दरवाज़े खोले। विक्रम सूरा ने संयुक्त राष्ट्र क्रॉनिकल में मुझे इंटर्नशिप देकर पत्रकारिता में मेरा पहला ब्रेक दिया। नताशा सिंह ने एबीसी न्यूज़ नाइटलाइन में प्रोडक्शन असिस्टेंट के रूप में मुझे काम पर रखा। मेरे पुराने मालिक फरीद ज़कारिया जिसने उमर मतीन – एक अफगानी, अमेरिकी, मुस्लिम, और कथित रूप से दमित समलैंगिक जिसने एलजीबीटी के खिलाफ दर्ज इतिहास में दुनिया का सबसे बड़ा नरसंहार किया- वाले हादसे के बाद एक सीएनएम पर न्यूज़मेकर और विषय-वस्तु विशेषज्ञ के रूप में मुझे पेश किया। अमल चटर्जी, ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी में मास्टर डिग्री लिखने के दौरान मेरे शिक्षक, जिसने मेरे पांडुलिपि के पहले मसौदे को समाप्त करने के लिए मुझे कोचिंग दी और यह सुनिश्चित किया की मैं अपने रचनात्मक लेखन मास्टर की थीसिस को समय पर पूरा करूँ। कनिष्क गुप्ता, मेरे साहित्यिक एजेंट और ‘राइटर साइड’ के संस्थापक, जिसने द कारपेट वीवर में छिपा हुआ हीरा पहचाना। और अम्बार साहिल – मेरे उपन्यास और पेंगुइन रैंडम हाउस इंडिया को दुनिया में लॉन्च करने वाले।

और अंत में मैं उन भारतीयों का उल्लेख करना चाहता हूँ , जिन्होंने द कारपेट वीवर को पहले 90 दिनों की करो-या-मरो अवधि के भीतर ब्रेकआउट उपन्यास बनाया। भारतीय प्रेस जिसने मेरे काम में साहित्यिक योग्यता पाई और इतने सारे लेखक प्रोफाइल और पुस्तक समीक्षाएँ प्रकाशित कीं जिसने द कारपेट वीवर को इस साल भारत में सबसे अधिक लिखे जाने वाली नए उपन्यास में शामिल बना दिया। भारतीय ब्लॉगर समुदाय जो इस उपन्यास को समर्थन देते हैं और कनिष्क नूरजादा कि यात्रा का प्रसार करते हैं, भारतीय LGBTQIA समुदाय जो द कारपेट वीवर को सार्वभौमिक मानवाधिकारों को बढ़ावा देने में एक सक्रिय उपकरण के रूप में इस्तेमाल कर रहा है, और अभिनेत्री सोनाली बेंद्रे का कारपेट वीवर को अपने बुक क्लब में महीने की पुस्तक चुनने के लिए। तथ्य स्पष्ट हैं। मैं आज उपन्यासकार नहीं होता भारत में भारतीयों की मौजूदगी के बिना और प्रवासी भारतीयों का मुझपे भरोसा और मेरी यात्रा में मेरी मदद किये बिना। मेरे सपनों को सच करने के लिए मैं हमेशा भारतीय राष्ट्र का ऋणी हूँ।

मैं जन्म और रक्त द्वारा अफगान हो सकता हूँ और गुणवत्ता और प्रतिभा से अमेरिकी। लेकिन मेरी रूह भारतीय है। आज, आप सभी के सामने मैं अपने भारतीय होने की घोषणा करना चाहता हूँ। मैं हूँ, वाक़ई हूँ।

मैं कल्पना भी नहीं करना चाहता कि भारतीय प्रभाव के बिना मेरी दुनिया कैसी दिखेगी। भारत के बिना दुनिया नेमत सादात के लिए एक नरक है। यह एक ऐसी दुनिया है जिसमें मैं रहने से इनकार करता हूँ। और यह वचन एक नैतिक शाकाहारी से आ रहा है जो सभी प्राणियों के जीवन को अमूल्य मानता है।

इसका मतलब यह नहीं है कि भारतीय या भारत जो कुछ भी करते हैं वह सही है। कोई भी व्यक्ति या राष्ट्र, पाखंडों और पुराणों से अछूत नहीं है। मैं जो कह रहा हूँ, वह यह है कि भारतीय सभ्यता के आकांक्षात्मक लक्ष्य, जो युगों से प्रचलित है, प्रकृति और मानवता के साथ सामंजस्य, बहुवाद और शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व में से एक है।

मेरे विचार से एक सच्चा भारतीय वह है जो बाधाओं को तोड़ने के लिए सक्रिय रूप से काम करता है, दुनिया भर में प्रेम फैला कर नफरत को नकारता है। मेरा मानना ​​है कि मैं वह व्यक्ति हूँ, या वह व्यक्ति बन गया हूँ, और इसलिए मैं बहुत गर्व से खुलकर अपने आप को एक भारतीय कहता हूँ।

यह नेमत सादात के भाषण का अनुवाद है जो उन्होंने द कार्पेट वीवर पुस्तक की लॉन्च में बैंगलोर में दिया था