कहानी : स्वीकार

ये कहानी शुरू होती है अमेरिका के सुप्रसिद्ध शहर कैलिफोर्निया में रहने वाले एक 40 वर्षीय युवक गुरमीत चड्ढा से।अब आप सोच रहे होंगे कि एक 40 वर्षीय आदमी को युवक की संज्ञा क्यों दी गई है? आपका सोचना जायज़ भी है। क्योंकि गुरमीत अब तक कुँवारा है। तो फिर गुरमीत ने अब तक शादी क्यों नहीं की? यहीं से इस कहानी की शुरुआत होती है।

गुरमीत का जन्म एक पारंपरिक पंजाबी परिवार में हुआ था। उसके माता-पिता बहुत ही धनवान थे और उनका दिल भी बहुत बड़ा था। हुआ कुछ यूँ कि जब गुरमीत का जन्म हुआ तो उसके शरीर में जननांग (शिशन) नहीं था। जब उसके माता पिता को ये पता लगा तो बहुत परेशान हो गये। पर उन्होंने हार नहीं मानी और उसे कैलिफोर्निया के बेहतर से बेहतर डॉक्टरों को दिखाया। क्योंकि उसका शरीर अभी बहुत छोटा था तो डॉक्टरों ने सलाह दी कि जब इसका शरीर पूरी तरह से विकसित हो जाएगा, यानी जब गुरमीत 18 वर्ष का हो जाएगा, तो इस आपरेशन को सफलता पूर्वक अंजाम दिया जा सकेगा। फिलहाल उसके जननांग वाले स्थान पर आपरेशन करके एक छोटा सा छिद्र बनाया गया ताकि उसे मूत्र विसर्जन करने में परेशानी न हो। 

जैसे-जैसे गुरमीत बड़ा होने लगा उसके भीतर एक असुरक्षा की भावना पनपने लगी। वो खुद को बाकियों से अलग और हीन महसूस करने लगा। इसलिए वो अकेला ही रहने लगा था और धीरे-धीरे उसे इस अकेलेपन की आदत सी हो गयी थी। जैसे-जैसे जीवन की यात्रा आगे बढ़ने लगी परेशानी और बढ़ती गयी, कई बार उसने सोचा कि वह आत्महत्या कर ले परंतु उसके माता-पिता ने उसे हमेशा सम्भाल कर पाला था। उन्होंने कभी उसे ये महसूस नहीं होने दिया कि उसमें कुछ कमी है। तो उसे अपने माता-पिता पर बहुत गर्व था। इसलिए आत्महत्या करने के ख्याल से भी उसे डर लगने लगता था। फिर जैसे तैसे उसने अपने आप के साथ समझौता करना सीख लिया था।

जब वह 18 वर्ष का हुआ तो उसके माता-पिता ने उसे डॉक्टरी सलाह के बारे में बताया। जब वह डॉक्टर से मिला और ऑपेरशन की प्रक्रिया की पीड़ा को समझा तो वह वहाँ से भाग गया। माता-पिता बहुत परेशान हुए। कुछ दिनों के बाद वो घर लौटा तो माता-पिता दोनों उससे लिपटकर रोने लगे और उससे माफी माँगने लगे।गुरमीत ने कहा कि उसे ये ऑपेरशन नहीं करवाना है। वो अपने आप के साथ समझौता करने के लिए तैयार है। माता -पिता को भी हामी भरनी पड़ी क्योंकि वो उसे खोना नहीं चाहते थे।

अब गुरमीत ने अपने पिता का शिपिंग बिज़नेस संभालना शुरू किया। गुरमीत बचपन से ही शांत स्वभाव वाला परंतु तेज़ दिमाग का व्यक्ति था। उसने कुछ ही सालों में बिज़नेस पर अपनी पकड़ मजबूत बना ली थी। लोग उसके बिज़नेस आइडियाज़ का लोहा मानने लगे थे। अब गुरमीत 25 का हो चला था। 25 वर्ष की उम्र को विवाह के लिये आदर्श उम्र के रूप में देखा जाता है। अब गुरमीत के लिए नए-नए रिश्ते आने लगे। तो गुरमीत ने बड़े शांत मिज़ाज में अपने माता-पिता को समझाया कि वो अकेले रहना चाहता है; क्योंकि जब तक वो माता-पिता के साथ रहेगा, वो अपने आप को इस दुनिया के बंधनों से घिरा हुआ महसूस करेगा। माता-पिता के लिए उसकी खुशी सबसे ऊपर थी। इसलिए अब गुरमीत केलिफोर्निया के आलीशान मकान में अकेला रहने लगा। उसे सभी छोटे बड़े काम खुद करने की आदत थी, इसी में उसे खुशी मिलती थी।

क्योंकि उसका शरीर अभी बहुत छोटा था तो डॉक्टरों ने सलाह दी कि जब इसका शरीर पूरी तरह से विकसित हो जाएगा तो इस आपरेशन को सफलता पूर्वक अंजाम दिया जा सकेगा

अब गुरमीत 40 का हो चुका था। अपने व्यापार के सिलसिले में वो पहली बार भारत आया। उसने राजस्थान के बारे में बहुत पढ़ा और सुना था तो अपना काम खत्म करके वो राजस्थान घूमने निकल पड़ता। यहाँ से कहानी एक नया मोड़ लेती है।

राजस्थान में अपने भ्रमण के दौरान गुरमीत एक जगह एक बेंच पर अकेला बैठा था। अचानक एक युवक, जो कि उम्र में उससे लगभग 10 वर्ष छोटा था, की नज़र गुरमीत पर पड़ी। उसका नाम सुरेश था। जब उसने पहली बार गुरमीत को देखा तो देखता ही रह गया… वो गाना है ना – तेरे चेहरे से नज़र नहीं हटती नज़ारे हम क्या देखें… बस ऐसा ही कुछ सुरेश के मन में भाव उठे।

सुरेश एक समलैंगिक था। जिस पुरुष के सपने वो देखा करता था वो हूबहू गुरमीत से मिलता था। सर पे पगड़ी, घनी काली दाढ़ी, शर्ट की बाहें कोहनी तक मोड़ी हुई.. दोनों बाजुओं पर काले घने रेशमी बाल, दाएँ हाथ में मोटा पंजाबी कड़ा और एकदम मस्त पंजाबी मुंडा और गबरू जवान। सुरेश की खुशी का ठिकाना ही ना रहा… बस देखता ही रह गया। इधर गुरमीत का दिल भी धड़क रहा था, वो समझ नहीं पा रहा था कि ये क्या हो रहा है क्योंकि पहले कभी उसके साथ ऐसा नहीं हुआ था। कुछ अजीब था पर नया था। दोनों एक दूसरे को देखकर अजीब तरह से मुस्कराने लगे। फिर जैसे-तैसे गुरमीत ने हिम्मत करके सुरेश को इशारा करके बेंच पर अपने पास आकर बैठने को कहा। फिर बातों का सिलसिला शुरू हुआ और चलता ही रहा।अगले दिन गुरमीत के कैलिफोर्निया जाने का दिन था। उसका मन तो था कि सुरेश को भी साथ ले जाये। सुरेश उसकी सच्चाई नहीं जानता था इसलिए गुरमीत को डर था कि कहीं वो उसे खो ना दे क्योंकि इससे पहले गुरमीत ने कभी खुद को इतना खुश और कम्फ़र्टेबल महसूस नहीं किया था। गुरमीत चाहता था कि सुरेश उसके साथ उसके घर में रहे। पर वो यह बात सुरेश को कह नहीं पाया।

खैर अब गुरमीत केलिफोर्निया लौट आया था लेकिन हर वक़्त सुरेश के बारे में ही सोचता रहता था। दोनों अक्सर फोन पर घंटों बातें किया करते थे। जब गुरमीत के माता-पिता उससे मिलने आये तो गुरमीत ने उन्हें कस कर सीने से लगा लिया और वह बहुत खुश था। गुरमीत को इतना खुश उन्होंने पहले कभी नहीं देखा था। जब उन्होंने इस खुशी का कारण पूछा तो फिर उसने सुरेश के बारे में बताया। माता-पिता खुश थे क्योंकि वो गुरमीत को खुश देखना चाहते थे। अब गुरमीत से रहा नहीं गया और उसने जल्द ही सुरेश को अपने पास बुला लिया। सुरेश की खुशी का ठिकाना ना रहा और वो जल्द ही केलिफोर्निया पहुँच गया। अब गुरमीत ने उसे पूरा शहर घुमाया और अमेरिका में फैले हुए अपने शिपिंग बिज़नेस के बारे में विस्तार से बताया।

अब दोनों साथ रहने लगे थे। सुरेश के मन में बहुत सारे सपने थे अपने जीवन साथी को लेकर और वो सारे सपने पूरे होते नज़र आ रहे थे सिवाय एक सपने के… वो सपना था अपने जीवन साथी के साथ शारीरिक संबंध का सुख। वो दोनों एक दूसरे के साथ इतना खुश थे कि दोनों को ये एहसास भी नहीं हुआ कि शारीरिक संबंध बनाये जाने की जरूरत है। एक दिन जब गुरमीत नहाकर तौलिया बांधकर बाथ रूम से बाहर आया तो वो अलमारी से कपड़े निकाल रहा था। अचानक उसी समय सुरेश ने उसके कमरे का दरवाज़ा खटखटाया और उसे बाहर आने के लिए कहा। जब गुरमीत ने कारण जानना चाहा तो सुरेश ने कहा कि वो उसे आँगन में आये हुए नए पक्षियों को दिखाना चाहता है और सुरेश के इतने जल्दी-जल्दी बुलाने पर गुरमीत तौलिये में ही बाहर चला आया। जैसे ही सुरेश ने गुरमीत को पहली बार अर्धनग्न अवस्था में देखा उसके होश उड़ गए, जैसा वो सपनों में देखा करता था – एक गोरा गठीला बदन और मर्दाना छाती जिस पर काले और हल्के घने बाल। वो बावला हो गया और पक्षियों को देखने के बाद वो गुरमीत के साथ उसके कमरे में चला गया और उसे कस के सीने से लगा लिया।

गुरमीत ने छुड़ाना चाहा पर वो सुरेश को आवेश में देख कर खुद को रोक नही पाया। अब सुरेश ने धीरे से गुरमीत का तौलिया उतार दिया। अब सुरेश ने जो देखा वो हैरान रह गया… उसे कुछ समझ ही नहीं आया। गुरमीत अब ज़ोर-ज़ोर से फूट फ़ूट कर रोने लगा और सुरेश से माफी माँगने लगा। उसने सुरेश से कहा कि वो उसे बताना चाहता था लेकिन डरता था कि वो उसे कहीं खो ना दे क्योंकि सुरेश उसके जीवन का पहला दोस्त है जिसे वो दिल से पसंद करता है। सुरेश भी गुरमीत को बहुत पसंद करता था इसलिए उसने गुरमीत के इस सच को सहजता से स्वीकार कर लिया। अब दोनों खुशी-खुशी साथ रहने लगे, सुरेश ने गुरमीत के बिज़नेस में भी उसका हाथ बंटाना शुरू कर दिया ।

सार यह है कि समलैंगिकता सिर्फ शारीरिक संबंध बनाने तक ही सीमित नहीं है बल्कि एक ऐसे जीवन साथी के साथ जीवन व्यतीत करना है जो आपको, और जिसे आप, सहज रूप से स्वीकार कर सकें। समलैंगिकता का दूसरा नाम ही स्वीकार्यता है।

सन्नी मंघानी (Sunny Manghani)
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