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Hindi

लघुकथा : यादें

By कपिल कुमार (Kapil Kumar)

April 03, 2019

यादें अजीब चीज़ है| हम पाँच साल तक साथ थे- हर वीकेंड पर जब मेरे पास स्थान होता था और मेरे रूम पार्टनर बाहर गए होते थे; और उसकी पत्नी यहाँ वहां होती थी| उन लम्बे सालों में वो कुछ वीकेंड्स की हर एक चीज़ याद है, सिवाय उसके चेहरे के; मुझे उसके मुँह पर एक मूछ और बड़ा सा तिल याद है पर चेहरा याद नहीं है, ज़रा सा भी नहीं |

मुझे याद है किस दिन बहुत गर्मी थी और उसकी छाती पसीने से भरी हुई थी| किस दिन वो काला छाता लेकर आया था | किस दिन वो ट्रैफिक, दफ्तर, मुंबई और ज़िन्दगी की झुंझलाहट साथ लेकर आया था | किस दिन वो खोया खोया था | किस दिन उसने कहा था की वो मुझसे प्यार करता है और किस दिन उसने कहा था और सच में कहा था की उसे मुझसे प्यार है | किस दिन उसने मुझे ऐसे चूमा था की जैसे कुछ और चाहत ना हो और किस दिन ऐसे चूमा था की जैसे उसकी चाहतो के लिए बस आज ही का दिन मुकर्रर हुआ है| |

मुझे उसके शर्ट्स याद है; सफ़ेद ; वो हर चीज़ जोश में करता था, ताबड़तोड़ , सिवाय अपने शर्ट्स को सलीके से उतार के टांगने के | उसके शर्ट्स के बटन्स याद है मुझे| 1990 की दिवाली याद है मुझे ; जब मैं अपने शहर नहीं गया था की शायद हमे मिलने का मौका मिले | मुझे उसकी खुशबू याद है ; अलग अलग खुशबुए | जब वो ऑफिस से आता था – अनछुई तेज़ खुशबू ; जब वो घर से आता था तो कभी उसकी दोनों बेटियों की खुशबू आती थी कभी उसकी बीवी की बिरयानी के गरम मसाले की | मुझे वो गरम हवा से लहराते परदे याद है| बगल की अंडर कंस्ट्रक्शन बिल्डिंग की खट खट पट पट याद है| उसका हिचकियों के साथ रोना याद है | मुझे उसके वीर्य का स्वाद याद है पर उसका चेहरा याद नहीं है, ज़रा सा भी नहीं |

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