आधा इश्क (भाग ६ / १०) | छाया: राज पाण्डेय | सौजन्य: QGraphy

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‘आधा इश्क़’ – एक कहानी (भाग ६/१०)

By Ankush N

July 17, 2016

श्रुन्खलाबद्ध कहानी ‘आधा इश्क’ की पहली पाँच किश्तें यहाँ पढ़ें:

भाग १| भाग २ |भाग ३| भाग ४|भाग ५

प्रस्तुत है इस कथा का छटवां भाग:

“चलो अब रक्षाबंधन मनाते हैं” राकेश ने चिल्लाते हुए कहा।

“तो अब कौन किसको राखी बाँधेगा?”

“पूनम बाँधेगी राखी उसके बेस्ट ब्रो नीरज को”, अरमान बोल पडा।

“ओह हेल्लो, प्लीज हाँ, मैं अपने ग्रूप में से किसी को भी नहीं बनाने वाली। दोस्त हैं, वही सही है। और वैसे भी, मैंने कोई राखी भी नहीं लाइ है”, पूनम ने चिड़ते हुए कहा।

“यह ले, राखी मैंने लाइ है। बाँध दे नीरज को। “संदीप ने जेब में से राखी निकाली।

“तुमने राखी क्यों लाइ है? और लाइ भी है तो क्या हुआ? मैं नहीं बाँधनेवाली”, पूनम ने संदीप को नज़रंदाज़ करते हुए कहा।

“ओ, राखी नहीं बाँधनी, इश्क जो फरमाना है! मतलब जो सब कहते हैं तुम दोनों के बारे में, वह सब सही है, है न?”

“लोग हमारे बारे में क्या बोलते हैं, इससे मुझे रत्ती भर फ़र्क नहीं पड़ता। मगर तुम मुझपर शक करोगे, यह मैंने कतई नहीं सोचा था। और यहाँ तुम मेरा क्या इम्तिहान ले रहे हो?”

“उसे राखी बाँध और अपने आप को सच साबित कर दे।“

“तो मैं भी बता दूँ, और वह भी सिर्फ तुम्हारा शक दूर करने के लिए। मैं यह सब नहीं करूँगी। रोज़ तुम कुछ न कुछ बोलोगे, और क्या मैं रोज़ सुनूँगी? मैं कोई सीता नहीं, जो तुम्हारे लिए अग्निपरीक्षा दूँ। और न ही तुम कोई राम। ऐसे शक्की बॉय फ्रेंड के होने से अच्छा है मैं सिंगल ही रहूँ।” यह कहकर पूनम वहाँ से चली गई। संदीप गुस्से में अपने घर चला गया। इस पूरे तमाशे को देख नीरज फूला नहीं समाया।

संदीप का शक दिन-ब-दिन बढ़ता जा रहा था। और अब उसे नीरज से भी नफरत होने लगी थी, क्योंकि वह पूनम के आस-पास मँडराता। अपने षड्यंत्र के सफल होने से खुश होकर अब नीरज पूनम से मिलने चला गया। पूनम बहुत ही ज्यादा परेशान होकर रो रही थी। नीरज को देखते ही उसने उसे गले लगाया और रोते हुए कहने लगी, “मैंने उससे प्यार किया था यार… सचमुच प्यार किया था। मैंने नहीं सोचा था वह मेरे बारे में ऐसा कहेगा……मुझे उससे सचमुच प्यार था।”

पूनम को ऐसे रोते हुए देख नीरज को अजीब-सा और कसूरवार महसूस होने लगा। उसे पता था, जब वह उदास होता था, पूनम ही उसे सहारा देती थी। उसकी तरफदारी कर सबसे लडती थी। मगर बदले में उसने पूनम को इतना बड़ा दुःख दे दिया, कि वह अपने-आप को संभाल ही नहीं पा रही है। उसे उसकी गलती का एहसास तब हुआ, जब पूनम को उसने रोते हुए देखा। क्योंकि किसीको खोने का दर्द नीरज के अलावा और कौन जानता था? उसने पूनम को चुप कराया और बिना कुछ बोले वह वहाँ से चला गया।

उस दिन रात भर वह सोया नहीं, सिर्फ सोचता ही रहा। नीरज दिल का कभी बुरा नहीं था। किसी के लिए बुरा भी नहीं सोचता था। पर आज उसने अपनी ईर्ष्या के कारण बहुत बड़ी गलती कर दी थी। एक तरफ पूनम रो रही थी तो दूसरी तरफ संदीप ध्वस्त हुआ था, और यहाँ नीरज भी दुखी था।

अगले दिन:

“संदीप मुझे तुमसे कुछ ज़रूरी बात करनी है”, नीरज संदीप के पास गया।

“बहनचोद, साले भाग यहाँ से। मुझे तुझसे कोई बात नहीं करनी, समझे? साले, तेरे जैसा दोस्त भगवान् दुश्मन को भी न दे। अपने बेस्ट फ्रेंड की गर्लफ्रेंड ही के साथ शुरू… साले, अभी के अभी यहाँ से निकल, वरना पिट जाएगा तू मेरे से।” संदीप बहुत ज्यादा गुस्से में था।

“संदीप, प्लीज़, बहुत ज़रूरी बात है। एक बार मेरी बात सुन लो।”

“अच्छा चल भोंक, क्या बोलना है?” संदीप उसे ऐसी क्लासरूम में लगाया जो पूरी खाली थी।

“संदीप, मेरे और पूनम में कुछ नहीं है यार, यकीन मानो। तुम्हें ग़लतफ़हमी हुई है।”

“मैं तुझे अंधा दिखता हूँ क्या? दिख नहीं रहा मुझे क्या चल रहा है दोनों का? कैसे एक दूसरे के पीछे भाग रहे हो तुम दोनों। चले जाओ यहाँ से।” यह कहकर संदीप ने कक्षा से जाने का रुख किया। तभी नीरज ने कुछ सोचा। उसने लम्बी सांस ली और बोल पडा, “संदीप, मैं पूनम से प्यार नहीं कर सकता यार। क्योंकि मैं गे हूँ।”

यह सुनकर संदीप वहीँ रुक गया। वह पीछे मुड़ा और नीरज के पास जाकर खडा हुआ। “क्या?”

“हाँ संदीप, मैं गे हूँ। मुझे सिर्फ लड़कों में दिलचस्पी है। मैं पूनम से प्यार नहीं करता यार। वह सिर्फ तुमसे प्यार करती है। और इसलिए मेरे पापा मुझसे नफरत करते हैं। उन्हें गे बेटा नहीं चाहिए। उनके स्टेटस के लिए यह अच्छा नहीं है। इसलिए उन्होंने मुझे घर से निकाल दिया। दोस्तों को पता चला तो उन्होंने दोस्ती तोड़ दी। इसलिए यहाँ आने के बाद मैंने सोच लिया था, कि कोई रिश्ता नहीं बनाऊंगा, जिससे के दिल को चोट पहुंचे।

लेकिन फिर तुम सब मेरी ज़िंदगी में आए। अकेला, बिना परिवार का लड़का। तुम सब के साथ बहता चला गया। इतनी केयर, इतना प्यार, शायद ही किसी ने मुझे कभी दिया हो। और फिर पता ही नहीं चला कि कब मैं तुमसे प्यार करने लगा। इसी वजह से मैंने तुम दोनों में ग़लतफ़हमी पैदा की। मैं भी कितना पागल था! न सोचा, न समझा, बस सपने देखने लगा। तुम्हारा प्यार दोस्तीवाला था। पर मैं उसे इश्क्वाला लव समझने लगा। वे सपने देखने लगा जो कभी पूरे नहीं होंगे। भूल गया था, कि गेज़ को सपने देखने का कोई हक नहीं होता। उनके लिए कोई रिश्ता नहीं होता। चाहता तो मैं भी क्लोसेट में रहकर स्ट्रेट ज़िन्दगी जी सकता था। पर मुझे गे बनकर अकेले जीना पसंद है। जबकि स्ट्रेट बनकर हर बार मुखौटा पहनकर जीने से अच्छा है, कि मैं किसी को धोखा नहीं दे रहा। कमसकम मुझे यह तसल्ली तो है। किसी के जस्बातों के साथ खिलवाड़ नहीं कर रहा।

मैं तुझे कभी यह बताना नहीं चाहता था। क्योंकि तेरे जैसा दोस्त खोना मैं बर्दाश्त नहीं कर पाता। लेकिन आज यह सब बताना बहुत ज़रूरी हो गया है। पूनम और मेरे बीच कुछ नहीं है सैंडी। पूनम तुझसे प्यार करती है। उसे बड़ी चोट पहुंची है। जा, उसे मना। हो सके तो आज ही उसे प्रोपोज कर। उसने मुझे कल ही बताया है कि वह तुझे बहुत प्यार करती है।”

नीरज की आँखों में आंसुओं आ गए। यहाँ संदीप को बहुत बड़ा झटका लग गया था। पूनम सच्ची है, या सुनकर वह खुश तो हुआ था, नीरज की करतूत का क़िस्सा सुनकर वह उससे द्वेष करने लग गया था। उसने ‘गे’ यह शब्द सुन तो लिया था, पर शायद उस शब्द के पीछे की भानाओं को वह नहीं समझ पाया था।

नीरज कुछ कहे, उससे पहले संदीप ही वहां से चला गया। नीरज संदीप के पीछे गया।

पूनम कॉलेज के प्रवेश के पास वाले लॉन के पास बैठकर प्रीती के साथ बातें कर रही थी। संदीप ने समय बिलकुल नहीं गंवाया। भागते हुए वह वहाँ पहुंचा। पूनम जिस बेंच पर बैठी थी, संदीप उसके पास गया और एक घुटने पर बैठकर बोला, “पूनम, मैं बहुत बड़ा गधा हूँ। मैंने मेरी जानू पर शक किया, उसके साथ झगडा किया। दो साल से हम दोनों बातों से ज्यादा झगडा करते आ रहे हैं। क्या तुम ज़िंदगी-भर मेरे साथ ऐसे ही झगडा करना चाहोगी? आई लव यू पूनम..”

यह सुनकर पूनम हैरान हुई। सारे छात्र पूनम की तरफ देखने लगे। कुछ समय बाद पूनम ने प्यारी-सी मुस्कान देते हुए ‘हाँ’ बोल दिया। सारे दोस्त उन्हें बधाइयाँ देने के लिए उनपर टूट पड़े।

अब नीरज के साथ कैसा बर्ताव करेंगे संदीप और पूनम, नीरज के साथ? पढ़िए कहानी “आधा इश्क” की अगली किश्त में!