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Hindi

कविता : मुखौटा

By अंकुश अरोरा (Ankush Arora)

April 23, 2019

यूं तो बस मैंने अपने आप को था अपनाया,सिर्फ़ अपनी ख़ुशी के लिए कुछ करना था चाहा।कुछ थे हमारे साथ, जिन्होंने साथ छोड़ दिया,कुछ ने थामा हुआ हमारा, हाथ छोड़ दिया।कुछ ऐसे भी थे जो समझे ही नहीं बात हमारी,और उन कुछ ने, करना तक हमसे बात कर छोड़ दिया।।

रहे मुखौटा चेहरे पे बस, सब यही थे चाहते,खुद को छुपा कर जियो ज़िंदगी, हमेशा यही बताते।सच्चाई की बातें करते और सही गलत सब समझाते,पर सच्चाई को अपनाने से जाने क्यों ही घबराते।।

यूं ही बस एक सच्चाई से उनको, मैंने रूबरू था कराया,सिर्फ खुद की खुशी के लिए कुछ करना था चाहा;कुछ थे फिर भी ऐसे जो, हमारे साथ चल रहे,कुछ सोच समझ कर सब, वक़्त के साथ बदल रहे।कुछ ऐसे भी हैं, जो अब भी नहीं समझते ये बात हमारी,पर खड़े है फिर भी साथ और हालात बदल रहे।।

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