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Hindi

5 साल से घरवालों से दूर रहनेवाले समलैंगिक लड़के का अपनी माँ को खत

By अमित इंदुरकर (Amit Indurkar)

October 27, 2019

प्यारी माँ,

मैं आपका दुसरे नंबर का बेटा आरूष। पहचाना की नहीं? वहीं आरूष जो आपको पाँच साल पहले छोड़कर चला गया था। मम्मी आज आपकी बहुत याद आई इसलिए आपके नाम यह खत भेज रहा हूँ। मुझे पता है माँ की आप हमे नहीं भुले हैं क्योंकि मैं आपके पेट से ही जन्मा हुआ आपका बेटा हूँ। हैं ना माँ?

मम्मी आप बहुत खुश हुईं होंगी ना जब आप दोबारा पेट से थी। आपके कोख में एक बच्चा पल रहा था। आपके मन में भी चल रहा होगा ना की लड़का होगा या लड़की? पापा और बाकी परिवार वाले भी बहुत खुश हुए होगे ना? सबसे ज़्यादा खुशी आपके मयकेवालों को भी हुई होगी क्योंकि आप दोबारा पेट से थी। सभी को लग रहा होगा की आपको दुसरा लड़का नहीं बल्कि लड़की हो क्योंकि आपको पहला बड़ा लड़का था यानी मेरे भैया। मम्मी जब मैं आपके पेट में था तब आपको बहुत तकलीफ देता था ना मैं? लेकिन आपकी ममता सब सहन करती थी। बहुत खुश थी आप क्योंकि आपके घर एक नन्हा सा मेहमान आनेवाला था।

मम्मी हर माँ की तरह आपने भी हमें 9 महिनों के बाद जन्म दिया होगा। 2 अप्रैल 1993, दिन शुक्रवार को वो समय आया था की जब मैं आपके पेट से बहार निकलकर इस दुनिया में आकर इस दुनिया को देखूँ। 2 अप्रैल को आपने मेरी पहली किलकारियाँ सुनी। उस वक्त आपको बहुत दर्द हुआ होगा ना? लेकिन आपको लड़का हुआ इस खुशी के सामने वह दर्द भी भुल गया होगा।आपकी इच्छा तो रही होगी की आपको दुसरी लड़की हो किन्तु मैं हुआ, फिर भी आप नाराज नहीं हुईं होंगी। माँ आपने हमे जन्म देने के बाद तुरंत अपना दुध पिलाया होगा ना, क्योंकि सभी डाॅक्टर कहते हैं की माँ का पहला दूध ही उसके शिशु के सेहत के लिए अच्छा होता हैं।

माँ जब मैं आपके साथ सोता था तब मेरे बड़े भाई को बहुत गुस्सा आता होगा ना क्योंकि उसके मम्मी के पास मैं सो रहा था; यानी उसकी जगह मैंने ली थी। आप आपा और सभी परिवारवाले हमसे खुश रहते होंगे, हैं ना माँ? माँ आपने जब मेरा नामकरण विधी किया था तब हमारे घर में बहुत मेहमान आयें होंगे ना? चाचा-चाची, मौसा-मौसी, दादा-दादी, नाना-नानी, अड़ोस-पड़ोस वाले लोग, पापा के दोस्त, आपकी सहेलियाँ, दूर के हमारे रिश्तेदार सब लोग आयें होंगे ना? मेरा नाम क्या रखा जाए यह आपको किसी ने बताया होगा या आपने खुद के मन से रखा होगा या मौसी ने आपको बताया होगा और आपने हमारा नाम आरूष रख दिया?

माँ जब मैं बड़ा हो गया, बोलने लगा, चलने लगा तब आपने हमारा एक स्कूल में दाखिला करवाया। पहली बार स्कूल जाते वक़्त मैं बहुत रोता होंगा, हैं ना माँ? आपने और पापा ने मुझे बहुत डाँटा भी होगा। मेरे स्कूल जाने के बाद आपको तो मेरी चिंता रहती होगी और आप सोचती होंगी की कब मेरा बेटा घर आता है और कब मैं उसे अपने सिने से लगाती हूँ। ऐसा ही कुछ होता था ना माँ? माँ आपने मुझसे मेरे स्कूल का होमवर्क भी करवाया होगा। पापा जब भी मुझे डाँटते होंगे तब आप मेरी साईड लेकर पापा के साथ छोटा मोटा झगड़ा भी करती होंगी। कभी-कभी आप भी मुझे डाँटती होंगी, मारती होंगी किन्तु उसके तुरंत बाद आप मन ही मन में रोती भी रही होंगी। हैं ना माँ? मैं कहीं गिरा या मुझे कुछ हुआ तो आप भी रोती होंगी ना, आपका दिल भी बहुत रोता होगा। रोती थी ना माँ ?

तस्वीर सौजन्य : अलोक जैन / क्यूग्राफ़ी

माँ पहले आप मेरे लिए रोती थी, आज मैं आपके लिए रोता हूँ। माँ मुझे आपकी बहुत बहुत याद आती हैं। आँखों से आँसू आते हैं तो थमने का नाम ही नही लेते। जब मैं छोटा था और रोता था तो आप मुझे उठाकर अपने गोद में लेकर मुझे समझाती थी और मुझे चुप कराने के लिए अपना दूध पिलाती थी। लेकिन अब मैं रोता हूँ तो मुझे समझानेवाला या समझनेवाला कोई नही हैं माँ। माँ जब-जब आपकी याद आती हैं तब-तब मैं बहुत रोता हूँ और बिमार भी पड़ता हूँ, फिर भी आप नहीं आती। भुल गई ना अपने लाडले को? माँ अब मैं आपको सिर्फ़ सपनों में ही देखता हूँ।

क्या गुनाह था मेरा की पापा और भाई मुझे रोज टाॅर्चर करते थे? क्या गुनाह था मेरा जो पापा जलती हुई सिगरेट मेरे हाथों पैरों पर चिपकाकर मुझे शारीरिक और मानसिक यातनाएँ देते थे? क्या गुनाह था मेरा की परिवारवाले मुझसे नफरत करते थे? आज आपसे बहुत से सवालों के जवाब लेने है। क्या कमियाँ थी मुझमें जो आज मैं आपके लिए मर चूका हूँ? ऐसा क्या किया मैंने जो अब आपका बेटा कहने लायक नहीं हूँ? माँ एक ही गलती थी ना मेरी जो मैं समलैंगिक था? माँ लेकिन यह मेरे हाथों में नहीं था। अगर मेरे हाथों में होता ना माँ तो मैं कभी समलैंगिक नहीं बनता। आपसे दूर जाने की कभी सोचता भी नहीं!

माँ आपको पता हैं मैं जब 16-17 साल का था तब पापा और बड़े भाई ने मुझे मानसिक और शारीरिक यातनाएँ देना शुरू किया था? पापा और बड़े भाई मुझे हिजड़ा बोलते थे माँ। वे मुझे मारते थे, घर के किसी कमरे में मुझे रखकर दरवाजा बंद करते थे। उस वक्त आप बहुत रोती थी ना माँ? रोने के अलावा आपके पास कोई ऑप्शन ही नहीं था क्योंकि हमारे यहाँ महिलाओं की कोई नहीं सुनता। आपका दिल तो बहुत रोता होगा ना माँ जब ये लोग मुझे मारते थे। लेकिन आप चाहकर भी कुछ नहीं कर सकती थी ना माँ। आपके हाथ भी बंधे हुए थे हमारी प्रथा परंपराओं से। रोज़-रोज़ के मारपीट की वजह से तंग होकर मैंने घर छोड़ने का फैसला लिया। माँ घर छोड़ते वक्त मेरी उम्र सिर्फ़ 17 साल थी। 12 किया था तब मैंने। माँ मुझसे यह तकलीफ और पीड़ा सहन नहीं हो रही थी। मैंने मन ही मन में ठान लिया की मुझे घर छोड़कर जाना चाहिए और मैंने घर भी छोड़ दिया। माँ आपकी बहुत याद आती थी उसवक्त और आज भी आती है। आपको मेरी याद तो आती हैं ना माँ?

माँ मैं अहमदाबाद (गुजरात) छोड़कर सबसे पहले महाराष्ट्र के अमरावती इस शहर में आया। माँ मुझे मराठी भाषा नहीं आती थी। यहाँ रहकर 2 सालों में मैंने मराठी लिखना और बोलना भी सीख ली। बहुत तकलीफ हुई मुझे। आपकी बहुत याद आती थी माँ। पता हैं माँ मैं 15 दिन ट्रेन में रहकर नागपूर से लेकर शेगांव तक रोज ट्रेन से सफर करता था। शेगांव के मंदिर में खाना खाता था माँ। अब आपके हाथों का बना हुआ खाना मैं नहीं खा सकता था। पता हैं माँ मैं दिनभर नागपूर के गणेश टेकडी में रहता था और रात को दोबारा ट्रेन पकड़कर शेगांव जाता था।

तस्वीर सौजन्य : कार्तिक शर्मा / क्यूग्राफ़ी

पता हैं माँ मुझे आपके साथ बातचीत करने की बहुत इच्छा होती थी। कभी कभी लगता था की मैं वापस आपके पास आऊँ। फोन करके परिवारवालों को बहुत समझाने की कोशिश भी की थी। आपको तो पता हैं ना माँ मेरेपास मोबाइल भी नहीं था। आपसे बात करने के लिए पिसीओ से काॅल करता था। फोन पर मेरी आवाज़ सुनते ही घरवाले फोन रखते थे। बहुत तड़प रहा था माँ मैं आपसे बातचीत करने के लिए। गाय के बछड़े को अगर उसके माँ से दूर किया जाए तो उस बछड़े के जो हालात होते हैं, मेरे भी वैसे ही हालत हो रही थी माँ। माँ चाहकर भी मैं आपके पास नहीं आ सकता था क्योंकि तब बहुत देर हो चुकी थी।

पता हैं माँ, एक चालीस साल के आदमी ने मेरे साथ ज़बरदस्ती भी करने की कोशिश की थी। बहुत रोया था माँ मैं तब। माँ मैं चार साल अमरावती और एक साल नागपूर में रहा। नागपूर में जाॅब करता था और मेकअप के क्लास भी लगाए थे। अमरावती में एक सलून मे काम किया।

माँ कोई दोस्त पूछता था की कैसे हो तो दुःखी होकर भी मैं कहता था की मैं बहुत खुश हूँ। लेकिन कुछ दोस्तों को मैंने मेरी कहानी भी बता दी थी। पता हैं माँ एक दोस्त ने, जिनका नाम अमित है, उन्होंने माँ पर एक कविता लिखी वो पढ़कर मैं बहुत रोया था, बहुत। तबियत भी खराब हुई थी। पता हैं माँ मैं खुद को बहुत अकेला समझता था। जो जो दोस्त रास्ते में आये मैंने उन्हें अपनाया। जहाँ जहाँ से मुझे प्यार मिलता था वहाँ-वहाँ से मैंने वो प्यार बटोरने की कोशिश की। कुछ लोगों ने हमें धोखा भी दिया। माँ, अपने अकेलेपन से छूटकारा पाने के लिए मैंने ब्लड प्रेशर की बहुत सी दवाईयाँ खाकर खुदकुशी करने की भी कोशिश की थी। लेकिन मैं बच गया। मैंने सोचा की मेरा जन्म मरने के लिए नहीं बल्कि कुछ करने के लिए हुआ है।

माँ, परिवार ने ना सिर्फ मुझसे सभी रिश्ते नाते तोड़ दिए, लेकिन मेरे स्कूली कागज़ात भी जलाये। पता हैं माँ कोई भी आदमी बगैर डाॅक्युमेंट मुझे जाॅब देने के लिए तयार नहीं था। बगैर कुछ कमाए पेट भी नहीं भर सकता था इसलिए जो भी जाॅब मिले वो करता रहा; बगैर डाॅक्युमेंट वाला जाॅब। पता हैं माँ फ़र्ज़ी कागज़ात बनाने के लिए मैंने 2000 रूपये खर्च किए फिर भी कुछ नहीं हुआ। एक दोस्त की मदद से पैनकार्ड बनवाया।

माँ अब मैं पुणे में हूँ। एक दोस्त के साथ। बहुत खुश हूँ मैं। मेरा दोस्त, जो दक्षिण भारत से है, डाॅक्टर है। हम एकदुजे को बहुत प्यार करते हैं। पता हैं माँ आपका बेटा अब स्टेज शोज़ करता है। पैसे भी कमाता है। माँ, बगैर डाॅक्युमेंट मैंने अपना करियर बनाया है। माँ मैं खुश हूँ इसका मतलब यह नही की मुझे आपकी याद नहीं आती। बहुत याद आती है आपकी, माँ बहुत। मेरी आँखें आपको देखने के लिए बहुत तरस रहीं हैं। लगता है की जल्द आपको मिलूँ और आपके गले लगकर आपके पास बहुत रोऊँ। माँ, मैं आपसे मिलकर आपके पास बहुत रोना चाहता हूँ। माँ मुझे आपसे कुछ सवाल भी पुछने हैं। जब मैं आपसे मिलूँगा ना तब आपसे कुछ सवाल ज़रूर पूछूँगा:

माँ ऐसे बहुत से सवाल पुछने हैं मुझे। जवाब तो दोगी ना माँ?

माँ मैं अपना जन्मदिन अब अपने दोस्तों के साथ मनाता हूँ। उस दिन मुझे आपकी बहुत याद आती है। आप भी हमें याद करते हो ना माँ? सोचता हूँ की मैं अपने परिवारवालों के साथ होता तो मेरे परिवारवाले मेरा जन्मदिन बहुत अच्छे से मनाते। माँ मेरे पसंद का खाना बनाती, मुझे अपना आशीर्वाद देती। लेकिन यह सब मेरे लिए एक सपना ही रह गया है। मैं जब आपको याद करता हूँ तब आपको हिचकीयाँ तो आती होगी ना माँ? माँ मुझे जब-जब हिचकीयाँ आती हैं, तब-तब मुझे यह लगता है मुझे मेरी माँ याद कर रही है। सच हैं ना माँ? करती हो ना आप मुझे याद?

माँ आज खुश हूँ मैं (आपकी बहुत याद आती हैं मुझे)। अब मैं बाॅम्बे गे और हार्मलेस के लिए काम करता हूँ। माँ पापा और भाई को बताना की मैं हिजड़ा नहीं बल्कि गे हूँ। वो मुझे हिजड़ा बोलते थे। माँ आपने दिए हुए संस्कारों को मैं कभी भूला नहीं। मुझे बहुत से लोगों ने पैसों का लालच देकर मुझसे शारीरिक संबंध बनाने के लिए न्योता भी दिया था, किन्तु मैं उनसे कभी नहीं मिला। माँ आपको जानकर खुशी होगी की हेट्रोसेक्सुअल लोगों के जैसा ही हम होमोसेक्सुअल लोगों का भी एक परिवार है। माँ यहाँ मैं अकेला नहीं हूँ बल्कि मेरे जैसे ही बहुत से लोग हैं। हम सब दोस्त हैं। माँ आपको पता है लक्ष्मीनारायण त्रिपाठी? आप टीवी तो देखती होगी ना? स्टार प्लस का सच का सामना शो, सोनी का दस का दम, कलर्स का बिग बाॅस? इन शोज़ में आई थी लक्ष्मीनारायण त्रिपाठी। उनसे भी मैं मिल चूका हूँ। उनके साथ अमरावती में एक प्रोग्राम भी किया था। माँ आपको पता है की टाइम्स ऑफ पुणे के एक पत्रकार ने मेरी मुलाकात लेकर अपने अखबार में छापी। माँ आपका बेटा अब स्टार बन चूका हैं। गे लोगों का स्टार। और स्टार क्यों न बनू आखिर अपने माँ-बाप का बेटा जो हूँ।

माँ बहुत कुछ लिख दिया मैंने, अब रूक रहा हूँ। माँ मैं आपसे एक बार ज़रूर मिलूँगा। पहचान पाओगी ना माँ अपने बेटे को? अपने गले लगाओगी ना मुझे? अपने हाथों से खाना खिलाओगी ना मुझे? माँ आपसे मिलने के बाद बहुत रोऊँगा, बहुत रोऊँगा। मेरे आँसू पोछोगी ना माँ?

माँ इस खत को पापा के हाथों मे न देना, वरना आपको बहुत डाँट पड़ेगी। जब पापा काम पर जाते हैं तब इस खत को पढ़ना। इस खत को पढ़कर रोना मत माँ। तुम्हें मेरी कसम हैं माँ रोना मत। इस खत को पढ़कर फाड़ देना माँ, किसी के हाथ मे लगने न देना इसे। माँ घर के छोटे-बड़ों को मेरे हिस्से का प्यार देना। मेरे सपनों में हमेशा आती रहना माँ। मैं हर रोज़ तुम्हारी मेरे सपने मे आने की राह देखता रहूँगा।

आओगी ना माँ?

आपका बेटा आरूष

यह लेख कोई कहानी नहीं बल्कि एक लड़के की सच्चाई हैं। मैंने इसे खत का रूप देकर लिखा है।

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