Picture Credit : Rajat Jain

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समाज के तिरस्कार के बावजूद, आगे बढ़े हैं कई किन्नर

By Amol More

January 04, 2021

क्या बे छक्के”, “ओये गुड”…. कितने सामान्य हैं ये शब्द हमारे समाज में। ख़ास कर LGBTQ लोग तो इन सारे उपाधियों से अच्छे से वाकिफ़ हैं। लोकल से सफ़र करते वक़्त ये लोग अक्सर हमें नज़र आते हैं। मुम्बई की लोकल में दुआयें देकर भींख माँगते दिख जाना तो आम बात है। उन्हें देखकर दिल में बस यही ख्याल आता है की, क्या ये लोग पूरी ज़िन्दगी अपना गुजारा सिर्फ भींख माँगकर करेंगे? बदकिस्मती से अभी के हालात देखकर तो इसका जवाब “हाँ” ही लगता है…

शादी हो या नए बच्चे के जन्म की ख़ुशी, इन लोगों का आना समाज को शुभ शकुन लगता है। इनकी दुआयें कभी खाली नहीं जाती, इनमें सच्चाई होती है ऐसा हमारा मानना है। रंग-बिरंगी साड़ियाँ पहने, गले में बहुत सारे जेवर सजाये, फूलों से भरा बालों का जुड़ा बनाकर जब ख़ुशी के मौके पर ये शामिल होते हैं, तो इक विश्वास हो जाता है की इनकी दुआयें सारी बुरी बालाएं ज़रूर भगा देगी। पर इन मौकों के अलावा हमने कभी सोचा है की इन किन्नरों की ज़िन्दगी कैसी होती होगी? न जाने किन-किन मुश्किलों का सामना करके ये लोग अपनी ज़िन्दगी बिताते होंगे? लोगों से मिलने वाली नफरत सहन कर कैसे हर दिन गुज़ारते होंगे? नहीं…. हमारे ज़हन में ये ख्याल कभी नहीं आता। इनकी याद तो तब ही आती है जब किसी मर्द के मर्दानगी पर सवाल उठायें जाते हैं। उसकी नामर्दानगी को संबोधित करने के लिए हम उसे “हिजड़ा” या “छक्का” कहकर बुलाते हैं। क्या सच में ये लोग नामर्द हैं ??? अगर मुझसे पूछेंगे तो इसका जवाब “ना” ही होगा। आज भी मर्दानगी की व्याख्या मर्द के उसी इक अंग से जोड़ी जाती हैं जिससे वो नए जन्म का इक कारण मात्र बन जाता है और जो इस कारण को पुरा नहीं कर पाते उन्हें हम इन नामर्दानगी वाले शब्दों से पुकारने लगते हैं।

असली मर्दानगी का उदहारण तो ये लोग हैं, जो इतना सब कुछ सहन कर मुस्कुराते हुए दुआयें देने आ जाते हैं। भीख माँगकर या फिर शरीर बेच कर जीना काफी हद तक इन लोगों की मजबुरी है, जो हम लोगों की वजह से ही है, क्योंकि इनसे दुआ तो लेना चाहते हैं पर अपनाना नहीं चाहते। समाज से इन्हें बेदखल ही रखना चाहते हैं। फिर भी इन नफरतों को सहकर आज इन्ही में से कुछ लोगों ने अपना अलग मुकाम बनाया है। लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी पहली किन्नर हैं जिन्होंने पहली बार २००८ में Asia Pacific का UN में प्रतिनिधित्त्व किया था। इसके साथ ही वो इक हिंदी फिल्म अभिनेत्री और भरतनाट्यम अदाकारा हैं। इनकी बहुत सारी किताबें प्रकाशित हो चुकी हैं। गौरी सावंत को कौन नहीं जानता? विक्स के विज्ञापन से उन्होंने समाज में एक अलग पहचान बनायी है । महाराष्ट्र के चुनाव आयोग की “सद्भावना दूत “ ( Goodwill Ambassador ) रह चुकी गौरी सावंत ‘साक्षी चार चौघी’ संस्था की संचालक भी हैं । यह संस्था किन्नर समाज और जो लोग एचआईवी/एड्स से प्रभावित हैं, उनके सहकार्य में कार्यरत हैं ।

इनके अलावा के पृथिका याशिनी (भारत की पहली ट्रांसजेंडर पुलिस ऑफिसर), मधुबाई किन्नर (भारत की पहली दलित ट्रांसजेंडर मेयर), मनाबी बंदोपाध्याय (भारत की पहली ट्रांसजेंडर मुख्य अध्यापिका), पद्मिनी प्रकाश (भारत की पहली ट्रांसजेंडर समाचार निवेदिका) इन की तरह कई लोगों ने अपना अलग मुकाम हासिल किया है। भारत सरकार ने भी थर्ड जेंडर को मान्यता देकर इनके उज्ज्वल भविष्य के द्वार खोल दिए हैं। नोएडा में सेक्टर ५० मेट्रो स्टेशन का नाम बदल कर अब रेनबो मेट्रो स्टेशन रखा गया है। ट्रांसजेंडर को सामाजिक धारा के साथ जोड़ने व् रोज़गार परक बनाने के लिए नोएडा मेट्रो रेल कॉर्पोरेशन (NMRC) ने इस स्टेशन को ट्रांसजेंडर लोगों को समर्पित किया है। इस मेट्रो स्टेशन में कार्यरत सभी कर्मी ट्रांसजेंडर हैं।

हालही में रिलीज़ हुई फिल्म ‘लक्ष्मी‘ के अभिनेता शरद केलकर का भावुक विडीओ बहुत चर्चा में हैं’ जिनमे वो कहते हैं – “अगर किन्नर समाज को मौका मिले तो हम कोई भी ऊंचाई छु सकते हैं; लोग हमें किन्नर, हिजड़ा, छक्का कहकर बुलाते हैं | मेरे बाप को जब पता चला के में अलग हूँ; तो उसने मुझे घर से निकाल दिया, अनाथ बना दिया | अगर वो मुझे पढ़ाता लिखाता तो में भी आज इंजिनियर या डॉक्टर होती | मैंने ऐसा क्या किया जो मुझे इतनी बड़ी सज़ा दी ? हमें तो भगवान ने ऐसा बनाया है| मेरी क्या गलती है इसमें ? लेकिन अगर आप में से किसी के घर हमारे जैसा बच्चा पैदा हो; तो उसको अनाथ मत बनाना | बलकी बाकी बच्चों के जैसा पढ़ाना लिखाना | एक बच्चे को आसमान में उड़ने के लिए पर और ऊंचाई से गिरने का डर दोनों माँ बाप से ही मिलते हैं | अब फैंसला आपका है आप अपने बच्चे को क्या देना चाहते हैं ? क्या देना चाहते हैं?” ऊपर दिए हुए उदाहरनों ने ये साबित कर दिया हैं की अगर किन्नर समाज को मौका मिले तो वो भी आसमान की बुलंदियों को छु सकते हैं |

तो बस अब ज़रुरत हैं की आप और हम जैसे लोग भी समाज के मुख्य धारा में इन्हे अपनायें; ताकि ये लोग भी कंधे से कंधा मिलाकर इस महान भारत की प्रगति में अपना योगदान दे सके।

आखिर में इनकी भावनाओं को समझने के लिए बस इतना ही लिखूँगा….,

मत पहचानो मुझे मेरे लिबास से मेरे दिल में झांक कर देखोगे तो जानोगे मुझको…