मुझे बचपन से ही हाथों में मेहंदी लगवाना बहुत पसंद है। उसकी खुशबू और उसका रचा हुआ रंग मुझे भीतर से खुश कर देता है। पर क्या आप जानते हैं कि इतना आसान नहीं था मेरे लिए हाथों में मेहंदी लगवाना? आखिर क्यों? क्योंकि बहुत सारे सवाल खड़े हो जाते थे मेरे अस्तित्व पर… हाँ, सही समझे आप… मैं एक लड़का हूँ
लड़के कब से हाथों में मेहंदी लगवाने लगे? ये लड़कियों वाले शौक क्यों पाल रखे हैं? और सवालों की इन झड़ी में सबसे मुश्किल सवाल – तू लड़का ही है ना? किशोरावस्था में इन प्रश्नों के जवाब नहीं थे मेरे पास, क्योंकि तब तक भी “लड़का” होने का मतलब मैं नहीं जानता था। और सच कहूँ तो शायद आज भी मुझे ‘लड़का’ होने का मतलब पता नहीं है।
बड़ा होते होते बस इतना समझ आया है कि दुनिया की नज़र में जो लड़के होने की परिभाषा है, उसमें मैं फिट नहीं बैठता। एक सवाल मेरे मन में भी है – जाने कौन बैठकर यह परिभाषाएँ तय करता है?
खैर… मुझे इस बात की खुशी है कि मेहंदी ने कभी किसी के साथ भेदभाव नहीं किया है। जिसके भी हाथों में सजी है, अपना गहरा रंग ज़रूर छोड़ा है।
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