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Hindi

कविता: उड़ान

By रितिक चक्रवर्ती (Ritwik Chakravarty)

April 07, 2020

मुक्त गगन में पंछी सी, जी भर कर उड़ना चाहती हूँ। अपने शरीर का भान भूल, आत्मा में जीना चाहती हूँ। तोड़ समाज के ढांचे को, मैं खुलकर रहना चाहती हूँ। नीले गुलाब के दायरे से, मैं सतरंगी होना चाहती हूँ। देह देश के नियम तोड़, मैं मोहब्बत करना चाहती हूँ। पितृसत्ता के अधीन नहीं, मैं निडर हवा में जीना चाहती हूँ।