Picture Credit: Raj Pandey/QGraphy

Hindi

#RhymeAndReason: अस्तित्व

By विशाल घाटगे (Vishal Ghatge)

July 01, 2020

ज़िंदगी से रुबरू होने की थी कोशिश मेरीरूह की गहराइयाँ फिर नापने मैं चल पड़ा

रंग कितने थे वो भीतर जानने मैं चल पड़ातन्हाईयों से गुफ़्तगू करने को मैं फिर चल पड़ा

जानने ये तब लगा, खुदसेही था अंजान मैंएक नये से खुदको ही पहचानने मैं चल पड़ा

हमकदम मेरी थी तब वो सहमी सी खामोशियाँउनसे ही गिर के संभल के होती थी सरगोशियाँ

वह सफर था खूबसुरत और ज़रा मुश्कील सा भीक्यूँ ना हो? आखिर थी मंझील सुनहरीसी रोशनी

अस्तित्व मेरा खिल गया पाकर वो सच की रोशनी“मैं” ना आखिर “मैं” रहा “मैं बन गया वह रोशनी”

यह अभी-अभी संपन्न Rhyme and Reason प्रतियोगिता की चार सर्वश्रेष्ठ कविताओं में से एक है