आधा इश्क (भाग ६ / १०) | छाया: राज पाण्डेय | सौजन्य: QGraphy

Hindi

#RhymeAndReason: क्या मैं भी पापी हो जाऊँगा ?

By Rahul Kushwaha

June 29, 2020

सोचता हूँ एक रात तुम्हें छू कर देखूँदेखूँ की कितनी गर्मी है मेरी छुअन मेंतुम पिघलते हो मेरे एक स्पर्श सेया मैं ही पत्थर सा ठोस हो जाऊँगा?क्या ज़माना पूछेगा उस रात का एहसासया मैं ही सवालों में घिर जाऊँगा?क्या मैं मर्द से अपने अस्तित्व की ओर बढूँगाया कालिख से हर रोज़ नवाज़ा जाऊँगा?क्या तुम मेरी पहचान बनोगे या मुझपे भी सवाल उठेंगेक्या समाज में सम्मान मिलेगा?या समाज की उंगलियां ही उठेंगी बसक्या मेरे अपना भी एक परिवार होगाया मैं भी समाज के डर में दब जाऊँगा?क्या मेरा कुछ अपने ख़्वाबों के पर लगेंगेया मैं भी समाज के द्वारा नामर्द कहा जाऊँगा?क्या घर बनाने पर मैं बाप बनूँगाया मैं भी पापी हो जाऊँगा?

ये सारे सवाल घेरे रखते हैं…अस्तित्व की बात कहाँ से गलत है?

ख़ैर…

यह कविता Rhyme and Reason प्रतियोगिता के अंतर्गत चुनी जाने वाली 13 कविताओं में से है