द सीटबेल्ट क्रू

Hindi

कुर्सी की पेटी, बाँधो बेटी!

By Sachin Jain

June 01, 2014

यह २ मिनट का वीडियो, जो ५ मई को प्रकाशित हुआ, इंटरनेट पर ४ हफ़्तों में लगभग ४४ लाख बार देखा गया है। यह लोक सेवा पहल ‘विथ यू’ और ‘ओगिल्वी एंड मेथर’, मुंबई द्वारा बनाया गया है। उनका मक़सद है लापरवाह मोटर चालकों को एक अविस्मरणीय तरीके से एक बुनियादी सुरक्षा कार्यविधि याद दिलाना, जो वे नियमित रूप से भूल जाते हैं – गाड़ी में कुर्सी की पेटी बाँधना। विमान के केबिन कर्मियों की तरह गणवेश पहनकर एक हिजड़ों का गुट ट्रैफिक सिग्नल पर पहुँच जाता है। उनमें से एक वरिष्ठ हिजड़ा लाउडस्पीकर के ज़रिये सबका ध्यान आकर्षित करती हैं। एक खुद-एतमाद और विनोदपूर्ण शैली में वे चालकों से कहतीं हैं: “अगर पायलट के जैसे गाडी चला रहे हो, तो पायलट के जैसे सेफ्टी भी चाहिए। तेरी गाडी में ऑक्सीजन मास्क नहीं है। कुर्सी के नीचे लाइफ जैकेट नहीं है। मगर सीटबेल्ट तो है। तो पहना क्यों नहीं रे? मैं सिखा दूँ क्या?”

यह सच है की भारतीय समाज में हिजड़ों का स्थान खास है। इन्हें पावन माना जाता है। लोगों को उनको सिग्नल पर देखने और उनके विशिष्ट शैली में तालियाँ पीटने की आदत है। नवजात शिशुओं और नयी शादी हुए दाम्पत्यों को आशीर्वाद देने के लिए हिजड़े घरों पर बुलाये जाते हैं। सिग्नल पर भी वे पैसे के बदले में आशीर्वाद देते हैं। फिर वे सीटबेल्ट पहननेका सही तरीका बतातीं हैं, तो उस समय लाल सिग्नल पर उनके प्रेक्षकों का उनको पूरा ध्यान प्राप्त होता है। वे कहती हैं, “इधर से बेल्ट ले लो और अपने बॉडी के सामने से खींचो। और जाँघों के बाजू में ऐसा फिट कर लो। जबतक क्लिक नहीं सुनाई दे। इतना गोरा-गोरा मुँह एक्सीडेंट के बाद अच्छा नहीं लगेगा।” इस सब के दरम्यान हाव-भावों से शब्दों के साथ जुगलबंदी करते हैं। और आखिर कहतीं हैं “सीटबेल्ट पहनों, दुआ ले लो।” और यह सबकुछ सिग्नल लाल से हरा होने के बीच हो जाता है।

इस वीडियो की खासियत है हिजड़ों को सकारात्मक ढंग से दर्शाने की सहजता और उनको प्रदान सम्मान, बगैर उनकी अभिव्यक्ति पर रोक लगाए। वे ‘नॉटी गर्ल’ और ‘चिकना’ कहती हैं। नीली साड़ियों की सुनहरी-जामुनी किनार को ओढ़े, समन्वित इशारों और ताल से बज रहीं तालियों से भारत में सड़क दुर्घटनाओं के बोहरान की गंभीरता काम नहीं होती। विश्व स्वास्थ्य संगठन के २०१३ की रिपोर्ट के अनुसार भारत में एक साल में सड़क दुर्घटनाओं में ढाई लाख लोगों की मृत्यु हुई थी। इसलिए यह सन्देश इतनी सहजता और सुंदरता से बनाने वालों को बधाई। सच ही कहा गया है: ‘जान बची तो लाखों पाए’।