सामाजिक स्वीकार्यता की ओर

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सामाजिक स्वीकार्यता की ओर

By रेशमा प्रसाद

September 06, 2015

– रेशमा प्रसाद

आज मुझे एक मासिक समाचार पत्रिका ‘बिहार एन.जी.ओ. कनेक्ट’ के उद्घघाटन मेँ आमंत्रित किया गया। मुख्य अतिथि के तौर पर माननीय उच्च न्यायालय की न्यायाधीश अंजना प्रकाश जी, रोटेरियन बिंदु सिंह जी, रोटेरियन श्रीवास्तव जी, सुमन लाल जी, समाज सेविका संध्या जी, अविनाश जी, गुंजन जी, मुखिया जी, एवं अंन्य लोग सभा में मौजूद थे।

आज मैं ‘पहचान‘ प्रोग्राम चलाने का हिस्सा हूँ। हर समय मीडिया कवरेज को लेकर के सवाल उठाए जाते हैं कि आपके यहाँ मीडिया कवरेज आपके पहचान प्रोजेक्ट के संबंध में नहीं आते। क्या बात है? आप जो ट्रांसजेडंर मुद्दों को उठाते हो वह तो जरुर मौजूद रहते हैं। लेकिन आपके प्रोजेक्ट के कार्यक्रम मीडिया से नदारत रहते हैं। यह मेरे प्रोजेक्ट के स्वास्थ्य के लिए अच्छा नहीं है। मैं जिन मीडिया कवरेज के परेशानियों को ले करके परेशान रहती थी उसका आज निराकरण हो गया।

मासिक पत्रिका ‘बिहार एन.जी.ओ कनेक्ट’ में हमारी समुदाय-आधारित संस्था के सभी कार्यक्रमों का विवरण मासिक स्तर पर मौजूद रहेगा। इस पहले अंक में ‘दोस्ताना सफ़र‘ के द्वारा किन्नर के लिए मुफ्त स्वास्थ्य शिविर के आयोजन सम्बंधित लेख को जगह मिली है। यह बड़े ही गर्व की बात है कि पूरे बिहार के लगभग सबसे अच्छे समाजसेवी संगठनों में हमें शामिल किया गया है। आज मैं बहुत खुश हूँ कि मुझे मौका भी मिला ट्रांसजेडंर के मुद्दों को उस प्लेटफार्म पर रखने के लिए। क्यों नहीं अपनी बातों को मैं सबके सामने लाती? मुझे दोस्तानासफ़र के कार्यक्रम से ज्यादा अपने मुद्दों को उठाना जरुरी लगा। जो कि मैं खुद जिस से गुजर रही हूँ कहीं न कहीं यह मेरे दिल और शरीर से जुड़ा हुआ मामला है। मैं अपनी सभी चीजों से ज्यादा अपने ऐसे ट्रांसजेडंर बदलाव को ज्यादा महत्व दुंगी।

यह मेरे लिए गर्व की बात है जिसमें किसी भी जगह पर ट्रांसजेडंर के मुद्दों को सामने लाती हूँ तो मैँ अपने आप को खुशनसीब समझती हूँ। आज मैंने ट्रांसजेडंर की सामाजिक स्वीकार्यता को ले करके आवाज उठाई, कि सामाजिक स्वीकार्यता के लिए कहाँ कहाँ क्या कार्य करना बाकी है, जो कि राज्य ,केंद्र और सामाजिक संगठन को करना है? लेकिन अभी तक बिहार में उस तरीके की सक्रियता नहीं आ पाई है जिससे कि हमारे समुदाय को किसी स्तर पर लाभ मिले। और मिलने के बाद हमारा समुदाय संतृप्त हो। उन्हें शिक्षा स्वास्थ्य रोजगार अन्य सभी मूलभूत सुविधाओं की उपलब्धि हो और इस उपलब्धि के अलावा उनके लैंगिक परिवर्तन मे सहयोग मिलेँ। यह बहुत ही जरुरी है क्योंकि लैंगिक परिवर्तन के लिए कुछ जगह पर अनैतिक शल्य क्रिया की जाती है। जो कि बहुत ही दर्दनाक है और इसमेँ बहुत सी ट्रांसजेंडर की मौत भी हो जाती है। क्योंकि वह सुरक्षित तरीके से नही की जाती है।

तो क्यों न इसके लिए केंद्रीय स्तर पर कदम उठाये जाएं? क्योंकि केंद्रीय स्तर पर स्वास्थ्य के क्षेत्र मेँ हरेक राज्य मेँ केंद्र सरकार की पैठ हो चुकी है। केंद्रीय संस्थान राज्य मेँ कार्यरत हैं तो हमें किसी के पास जाने की क्या आवश्यकता है? लेकिन इस आवश्यकता को ले करके कोई ध्यान देने को तैयार नहीं है। कि आख़िर हमारी आवश्यकताएँ क्या हैं? हमारी जरुरत क्या है? क्या हमेँ हर समय वही तालियों की धुन पर नाचना गाना और रोजगार को स्थाईत्व प्रदान करने के लिए वही तालियाँ हर समय बजानी पड़ेगी? मैं तो अपने आपको इन तालियोँ से नहीँ जोड पाती हूँ। जबकि मैँ खुद चाहे तो कुछ न कुछ की तरह दैनिक तौर पर भीख मांगकर जीविका का उपाय जान कर सकती हूँ। लेकिन मुझे समाज में मुख्यधारा के साथ लड़ कर के सामने आना है। और मैँ अपनी लड़ाई को आयाम दूंगी। मुझे कुछ ऐसे ही साथियोँ की जरुरत है जो मेरी सभी कार्यक्रम एवं कार्यों में सहयोगी साबित हों ।

रेशमा प्रसाद सामाजिक शोध कर्ता तथा ट्रांसजेंडर सामाजिक अधिकार कार्यकर्ता और ‘दोस्ताना सफर’ समुदाय-आधारित संस्था की सचिव हैं।