Site iconGaylaxy Magazine

क्या समलैंगिकता प्राकृतिक है?

"मैं नैसर्गिक हूँ"

“मैं नैसर्गिक हूँ” (तस्वीर: बृजेश सुकुमारन)

मैं एक पुरुष हूँ, और पुरुषों के प्रति आकर्षण मेरे लिए पूर्णतः स्वाभाविक है

कुछ लोगों की धारणा है के प्रकृति (नेचर) में मिलाप केवल स्त्री और पुरुष के बीच होता है। समाज में बहुसंख्या लोग विषमलेंगिक (स्ट्रेट) हैं, तो क्या इससे यह निष्कर्ष निकला जा सकता है कि मेरा समलेंगिक होना अप्राकृतिक है?

मैं एक पुरुष हूँ, और पुरुषों के प्रति मेरे आकर्षण को मैंने चुना नहीं, यह मेरे लिए पूर्णतः स्वाभाविक है। मेरी यौनिकता का एहसास मेरे लिए उतना ही मौलिक, सहज, स्वस्थ और प्राकृतिक है जितना विषमलेंगिको के लिए उनका। मेरे संशोधन के अनुसार अभी तक निश्चित रूप से समलैंगिकता का वैज्ञानिक कारण नहीं खोज गया है। शायद इसमें जैविक और अन्य कारकों का योगदान है। समलेंगिक आचरण लगभग हर प्रकार के प्राणियो में पाया जाता है, विषमलैंगिकता जितना ही वह प्रकृति का अटूट अंग है। अमेरिकन सायकोलोजिकल असोसिएशन ने १९७३ में करार किया कि समलेंगिकता विकार या रोग नहीं है। ऐसे व्यक्ति का लेंगिका आकर्षण बदलनेका प्रयास व्यर्थ है।

जैसे दुनिया में कुछ लोगोको नीली आँखे होती है औरे किसीकी काली, कोई बयंहत्थे का तो कोई दायें हाथ को इस्तेमाल करने वाला। उसीप्रकार कोई समलेंगिक होता है तो कोई विषमलेंगिक। यह मेरे अस्तित्व का अविभाज्य हिस्सा है। अंत में, ‘ऋग्वेद’ का वचन याद कर लें: “जो भी प्रकृति का भाग है, वह प्राकृतिक ही है।’

जब समलैंगिकता उसी प्रकृति की देन है वह अप्राकृतिक कैसे हुई?

Exit mobile version