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“पॉल – एक गाथा” – श्रृंखलाबद्ध कहानी (भाग ५/८)

By Mahesh Nebhwani

May 07, 2017

कहानी ‘ पॉल एक गाथा की पिछली कड़ियाँ यहाँ पढ़ें:

भाग १ | भाग २ | भाग ३ | भाग ४ |

प्रस्तुत है भाग ५:

इतना सुनकर इंस्पेक्टर थोडा ठंडा पड़ गया। और डॉक्टर से कहा, “सर… प्लीज आगे रिपोर्ट मत करना। आगे से ऐसा कतई नहीं होगा।” डॉक्टर ने दोनों पुलिस को वार्ड से बहार जाने को कहा और मुझे बोला, “तुम फोटो खींचो। रिपोर्ट बनाओ कि यह निशान पुलिस वाले के मार के निशान है। कल मुझसे साइन करवा कर यह रिपोर्ट डी.आई.जी. ऑफिस में भेज दो। मुझे भी उन पुलिस वालो पर बहुत गुस्सा आ रहा था। डॉक्टर के जाने के बाद मैंने पॉल के जिस्म पर आये उन नीले निशानों के फोटो लिए और रिपोर्ट बना कर डॉक्टर के साइन के लिए फाइल में रख दी। अपने टेबल पर आकर बैठ गया। तभी मेरी नजर पॉल की तरफ गयी। वह जाग रहा था और मुझे ही देख रहा था। जब मेरी नजर उससे मिली तभी उसने अपना हाथ उठा कर मुझे अपने पास बुलाया। मैं उठकर उसके पास गया। उसने मुझे अपने बेड पर बैठने का इशारा किया और फिर अपने हाथ से मेरा हाथ उठाकर अपने सर पर रख दिया।

मुझे अपनी उन खाली-खाली आँखों से देखने लगा। न जाने क्यों मेरी आँखों से उस वक्त आँसू निकल आए। मैं उसके बालो में हाथ फेरते जा रहा था, और मेरी आँखों से आँसू निकले जा रहे थे। वो भी मेरी तरह रोये जा रहा था। मैंने उसे एक बार गले लगाया और अपने आप पर क़ाबू करते हुए वहाँ से उठा। आकर वापिस अपनी टेबल पर आकर बैठ गया। मेरा दिल बहुत भारी था। अपनी ड्यूटी ख़तम करने से पहले मैं पॉल के बेड पर गया और उसका हाथ अपने हाथों में लिया। साहस बाँधते हुए मैंने इशारे से कहने की कोशिश की: “सब ठीक हो जाएगा।” दूसरी पारी के कम्पाउंडर को पॉल का ध्यान रखने और उसे खाना खिलाने का आदेश देते हुए मैं अपने घर की तरफ बढ़ चला, पर दिलो-दिमाग़ में पॉल का ही ख़याल था। दुसरे दिन जैसे ही ड्यूटी पर पहुँचा और ४ नं बेड की तरफ देखा तो वो ख़ाली था। दिल किसी अनिष्ट की आशंका से भर गया।

अतः मैंने अपने से पहले ड्यूटी पर आए कम्पाउंडर से पुछा तो उसने बतया: “रात को पॉल ने फिर से अपने आप को मार डालने की नीयत से छुरी से स्वयं को जख्मी कर लिया था। उसे अब स्पेशल वार्ड में शिफ्ट कर दिया गया है, जहाँ इस तरह के क़ैदियों को पलंग से हाथ-पैर बाँधकर रखा जाता है।” मेरा दिल तो जैसे मेरे मुँह में आ गया। मैंने अपने साथी को कहा, “प्लीज़ थोड़ी देर के लिए यहाँ सँभाल ले। मैं उससे मिलकर आता हूँ।” मैं स्पेशल वार्ड की तरफ भागा। जाकर देखा तो वह अपने आप को उन पटियों से छुड़ाने की कोशिश कर रहा था, जिनके द्वारा उसके हाथ और पांव बंधे हुए थे। मुझे देखते ही वो शांत हो गया था। मैंने जाते ही उसके हाथो को खोल दिया और वो मुझसे गले लगते हुए ऐसे चिपट गया जैसे कोई डरा हुआ बच्चा अपनी माँ से चिपटता है। वो लगातार रोये जा रहा था। मैंने उसे शांत करते हुए उसके पलंग से बंधे हुए पाँव भी खोल दिए। उसी पलंग पर बिठा दिया। वो बहुत डरा हुआ था, इसलिए उसे शांत करते हुए उसे पानी दिया। वो एकदम से सारा गिलास खाली कर गया। मैं उसके सर पर हाथ रख कर उसे शांत कर रहा था।

तभी उस वार्ड की नर्स, जो मुझे जानती थी, मेरे पास आकर बोली: “तुम्हारा कोई पहचानवाला है क्या? रात भर से परेशान कर रखा है पागल ने।” न जाने क्यों मैंने गुस्से से कहा, “यह पागल नहीं है।” मेरे गुस्से को देखकर नर्स वहाँ से खिसक गयी। थोड़ी देर अपने आप को और पॉल को शांत करने के बाद, मैं उस वार्ड के कम्पाउंडर के टेबल पर गया। उससे पुछा, “क्या हुआ था?” उसने बतया की रात को पॉल ने अपने आप को छुरी से मारने की कोशिश की थी और वो किसी के काबू में नहीं आ रहा था। इसलिए उसे इस वार्ड में लाकर बाँध दिया गया था ताकि वो खुद और किसी और को किसी भी तरह का नुकसान नहीं पहुँचा सके, मैंने उससे बिनती की, कि वो उसका खास ध्यान रखे। उसने भी पुछा: “तुम्हारा कोई जान-पहचान वाला है क्या? पर ये तो कोई फिरिंगी लगता है। तुम इसे कैसे जानते हो?”

मेरे पास झूठ बोलने के सिवाय कोई चारा नहीं था। मैंने कहा, “वो मेरे किसी दोस्त का जान-पहचान वाला है। उसने ही मुझे इसका ध्यान रखने को बोला है।” कम्पाउण्डर ने कहा, “तुम चिंता नहीं करो। तुम तो स्टाफ वाले हो। तुम्हारे पहचान वालो का ध्यान तो रखना ही पड़ेगा।” मैं अभी इसे नींद का इंजेक्शन दे देता हूँ, सो जायेगा।” मैंने उससे कहा, “थोड़ी देर रुक जाओ। मैं इसे नाश्ता करवा देता हूँ। उसके बाद उसे नींद की इंजेक्शन दे देना।” न जाने रात को उसने कुछ खाया भी था या नहीं? मैं अपने साथ लाया नाश्ता अपने वार्ड से लाकर उसे खिलने लगा। वो अब बहुत शांत था। नाश्ता खाते हुए एकटक नजर से मुझे देखे जा रहा था। जैसे कह रहा हो, “मुझे छोड़कर नहीं जाना।” नाश्ते के बाद उसे इंजेक्शन दे दी गई। जैसे ही वो सो गया, मैंने अपने वार्ड का चार्ज लेकर अपने साथी को फारिग किया और अपने काम में लग गया। लेकिन मेरा पूरा ध्यान पॉल की ही तरफ था।

डॉक्टर के राउंड के बाद जैसे ही मुझे टाइम मिला, मैं फिर पॉल को देखने के लिए उसके वार्ड में चला गया। वो अभी भी सो रहा था। मैं उसके पास बैठा। उसे ही देख रहा था और सोच रहा था: “क्या होगा इसका? इसका ऐसा कोई भी तो यहाँ नहीं है जो इसका ख्याल रख सके।” उसे शायद अभी सबसे ज्यादा किसी अपने की ही जरूरत थी, जो उसका दिन-रात ख्याल रख सके। अचानक से मेरे दिमाग में एक ख्याल आया कि क्यों न उसे अपने घर ले जाऊं? वहाँ इसका ख्याल अच्छी तरह से रखा जा सकता है। लेकिन दुसरे ही पल ख्याल आया कि वो एक क़ैदी है। उसे हॉस्पिटल से सिर्फ जेल ही ले जाया जा सकता है। मैंने अपने दिमाग से यह ख्याल निकल दिया और वापस अपने वार्ड में आ गया। पर मेरा दिमाग तो सिर्फ पॉल के बारे में ही सोच रहा था। एक धुँधला-सा कोहरा मेरे मन पर छा गया।

‘पॉल एक गाथा’ की आगे की कहानी पढ़ें ७ मई को गेलेक्सी हिंदी में प्रकाशित छटवी किश्त में।