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धारा ३७७ विरुद्ध सार्वजनिक याचिका

"धारा ३७७ का विरोध"। तस्वीर: बृजेश सुकुमारन।

“धारा ३७७ का विरोध”। तस्वीर: बृजेश सुकुमारन।

मुंबई में एक हमसफ़र ट्रस्ट नामक संस्था है जो पिछले २५ सालों से समलैंगिक अधिकारों की वकालत कर रही है। जून २०१४ में हमसफ़र ने टोरंटो में “वर्ल्ड प्राइड” के अंतर्गत आयोजित “विश्व मानवाधिकार” सम्मेलन में भारत का प्रतिनिधित्व किया, और इस अवसर पर भारतीय दंड संहिता की धारा ३७७ के विरूद्ध एक हस्ताक्षर कैंपेन की शुरुआत।

अंग्रेज़ों द्वारा १८६१ में लागु की गयी भारतीय दंड संहिता की ये धारा भारत में हर प्रजनन निरोपयोगी यौन समंध को गैर क़ानूनी ठहराती है। परन्तु ये धारा ख़ास कर समलैंगिकों के एवं ट्रांसजेंडर्स के शोषण के लिए इस्तमाल की जाती है। हमारी, समाज में एक पहचान और आवाज़ पाने की जंतोजहत में यह धारा एक बड़ी चुनौती है जो मानवाधिकार के अंतराष्ट्रीय सिद्धांतों के ही नहीं भारतीय समाज के मूल समावेशी बुनियादों के विपरीत है।

आपसे अनुरोध एवं अपेक्षा है कि इस लिंक पर जाकर आप अपना सहयोग दें। और अगर यह मुहीम पसंद आये तो कृपया अपने मित्रमंडल के साथ शेयर करें। कैंपेन का मकसद गृह मंत्रालय एवं प्रधान मंत्री कार्यालय पर दबाव बनाने का है जिससे दिसंबर २०१३ में, भारतीय दंड संहिता की धरा ३७७ पे भारतीय सर्वोच्च न्यायलय द्वारा दिए गए फैसले को संसद से बदला जा सके। भारत में करीबन ५ करोड़ एल.जी.बी.टी. होंगे. ये उनके ही नहीं सबकी हित की बात है। जीवन में अनेक कुछ ऐसे सवाल हैं और ऐसी परिस्थितियाँ हैं जिनका समाधान सिर्फ एक प्यार-भरी गुफ्तगू से हो सकता हैं । अपने मित्रों और परिवारजनों से बात कीजिये, ३७७ के बारे में जागरूकता समय की आवश्यकता है। करोड़ों का भविष्य आपपे निर्भर है।आशा है आपका सहयोग मिलेगा। धन्यवाद!

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