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‘आधा इश्क़’ – एक कहानी (भाग २/१०)

'आधा इश्क': छाया: बृजेश सुकुमारन

'आधा इश्क': छाया: बृजेश सुकुमारन

कहानी ‘आधा इश्क’ के पहले के हिस्से यहाँ पढ़ें:

भाग १

प्रस्तुत है भाग २/१०:

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तीन साल पहले:

“अरे यार, यह बस क्यों नहीं आ रही है, आज कॉलेज का पहला दिन है। आज ही लेट हो गए न, तो गालियाँ खानी पड़ेंगी सर की।” राकेश बस का इंतज़ार करते-करते थक गया था ।

“आ जाएगी बस यार। वह सब छोड़, तू बता। तेरी छुट्टियां कैसी रहीं? अब तो आखरी साल है, फिर कॉलेज हमेशा के लिए ख़त्म। मज़ा आएगा!”

संदीप और राकेश की बस स्टॉप पर बातें चल रहीं थीं। तभी दो लड़के भागते हुए गए और वहां खड़ी एक औरत को धक्का देकर भाग गए। वह औरत नीचे गिर गई । संदीप भागते हुए उस औरत के पास पहुँचा और उसने उसे उठाया।

“आंटी आप ठीक तो हो न? कहीं लगी तो नहीं?”

“थैंक यू बेटा, मैं ठीक हूँ ।”

“यह आपके लिए” संदीप ने अपनी जेब में से गेंदे का फूल निकाला और उस औरत को दे दिया ।“ तभी बस आई और वे दोनों बस में बैठकर कॉलेज के लिए चले गए ।

‘गुड मोर्निंग सर’ ।

‘गुड मोर्निंग एवरीवन, आज आपके क्लास में एक नया छात्र आया है – नीरज वर्मा । कहाँ हो? खड़े रहो और अपना परिचय दो ।’

सर नीरज को कक्षा में ढूँढ रहे थे और तभी एक लड़का भागते हुए क्लास में आया ।

“नीरज… नीरज”

“जी सर”, एक लड़का भागते हुए आया और दूर से आवाज़ लगाईं ।

“वाह, पहले दिन ही लेट हो गए! अन्दर आओ, अपना परिचय दो और बैठ जाओ ।”

“गुड मोर्निंग एवरीवन, मैं नीरज वर्मा हूँ, पूना से । थैंक यू ।”

उसका क़द पांच फुट सात इंच था, लगभग साठ किलो वज़न, पतला, गोरा लेकिन साधा और आकर्षक, मीठी मुस्कान थी । नीरज पसीने से भीगा हुआ था और बैठने के लिए जगह ढूँढ़ रहा था । हमेशा की तरह पीछे के बेंच फुल थे । तभी उसकी नज़र पहले बेंच पर गयी, जहाँ सिर्फ एक लड़की बैठी हुई थी । ऐनक लगाए किताब खोले हुए, वह कुछ देख रही थी । नीरज उसके पास गया और बेंच पर बैठ गया ।

“हाय नीरज, वेलकम टू अवर कॉलेज, मैं पूनम हूँ ।”

“तुमसे मिलकर खुशी हुई पूनम ।”

हाय-हेलो हुआ ही था कि लड़कों ने चिल्लाना शुरू कर दिया ।

“ओये होए, पहला पहला प्यार है, पहली ही बेंच पर है…।”

“उनकी तरफ मत देखो । ये लोग कॉलेज के सबसे गंदे लड़के हैं और इनसे दूर ही रहना तुम । पूनम नीरज को समझा रही थी और यहाँ संदीप गुस्से से लाल पीला हो रहा था ।

संदीप पूनम को प्रथम वर्ष से चाहता था । दोनों अच्छे दोस्त थे । पर दो साल हो गए थे, संदीप ने आजतक पूनम को अपने दिल की बात नहीं बताई थी । लेकिन पूनम को ही क्या, पूरे कॉलेज को पता था, के ‘संदीप लव्स पूनम’ । और इसीलिए आज एक नए लड़के को उसकी पास बैठा हुआ देख वह जलन महसूस कर रहा था । क्लास ख़त्म होते ही संदीप पूनम को ढूँढने लगा ।

“अरे पूनम, चलो घर चलते हैं । वह तेरा नया दोस्त कहाँ गया?”

“हाँ, चल चलते हैं । नया दोस्त? अच्छा वह नीरज… पता नहीं कहाँ गया । और जाने दे उसे । कितना बोरिंग किस्म का लड़का है ।”

पूनम के मुंह से उसके लिए बुरा सुनकर संदीप ख़ुश हुआ । पर फिर उसने विस्तार से जानने के लिए पूछा, “बोरिंग? क्यों, ऐसा क्या किया उसने ? बहुत बोलता है क्या ?”

“बहुत ? अरे कुछ नहीं बोलता, बस अपने आप में ही रहता है । हाय हेलो के बाद उसने कुछ बात नहीं की और चला गया, बताया भी नहीं । इतना रूड लड़का और तुम्हें पता है, वह किसी की तरफ देखता भी नहीं है, नीचे देखता रहेगा हमेशा । सच अ वियरडो… ।

“ओह… चलो बढ़िया है फिर तो ।”

“बढ़िया क्यों? डोंट टेल मी… तुम जेलस हो?”

“पागल हो गयी हो क्या? मैं क्यों जेलस हूँगा ।”

और फिर संदीप ने विषय बदला और दोनों घर जाने के लिए निकल गए । ऐसे ही कुछ दिन बीत गए । नीरज का कॉलेज में कोई दोस्त नहीं बना । हमेशा चुप-चुप रहनेवाले नीरज को बेग़ैरत, विक्षिप्त, बोरिंग या फिर पकाऊ कहकर उससे कोई भी दोस्ती नहीं करता । उसके चाल-चलन और अलिप्त बर्ताव से यह साफ़ ज़ाहिर होता था कि उसे किसी से दोस्ती करने में कोई रूचि नहीं थी । पर पूनम को उसके आचरण की वजह से उसे जानने की उत्सुकता बढ़ गई थी । वह जानना चाहती थी कि नीरज ऐसे क्यों बर्ताव करता है ? कहीं वह ‘साइको’ तो नहीं?

और एक दिन नीरज कैंटीन में खाना खा रहा था और उसे अकेला बैठे देख पूनम उसके पास चली गई ।

“हे नीरज, क्या मैं यहाँ बैठ सकती हूँ ?”

नीरज ने उसे एक मुस्कान बहाल कर दी और पूनम उसके पास जाकर बैठ गई ।

पूनम के पीछे-पीछे संदीप, राकेश, अरमान और मनोज भी उसी मेज़ पर बैठ गए।

“यार मुझे पता नहीं था कि हमारे कॉलेज में गूँगे लड़कों को भी प्रवेश मिलता है”, मनोज ने नीरज को ताना कसते हुए कहा ।

“अरे नहीं पागल, यहाँ लोग गूँगे नहीं हैं । बस उनके स्टैण्डर्ड के लोग यहाँ नहीं है न, इसलिए हम जैसों से कोई बात नहीं करता । अरमान ने एक और ताना मारा ।

“स्टैण्डर्ड? यह क्या बोल रहे हो तुम लोग ?” पूनम ने परेशान होकर पूछा । तब संदीप ने जवाब दिया ।

“अरे मालूम नहीं क्या ? हमारे नीरज के पिता बहुत बड़ा कारोबार चलाते हैं । वे करोडपति हैं । इसलिए तो वह हम जैसे ग़रीबों से बातें नहीं करता ।”

संदीप की बात सुनकर नीरज का चहरा बदला ।

“अरे क्या हुआ? तुम्हें लगा हमें पता नहीं चलेगा? कितने लकी हो यार तुम । जो चाहो वह पापा मांगने से पहले ही दे देते होंगे । माँ-बाप ‘पेज थ्री पार्टीज़’ करते होंगे और तुम तो बहुत ऐश करते होंगे ।”

राकेश की यह बात सुनकर नीरज की आँखों में पानी आ गया और वह अपनी प्लेट छोड़कर वहां से चला गया ।

“इसे क्या हुआ अचानक ? और तुम… पागल हो तुम लोग । यह सब बोलने की क्या ज़रूरत थी ? खाना छोड़कर चला गया वह । तुम लोगों का कुछ नहीं हो सकता ।” पूनम की समझ में नहीं आ रहा था कि नीरज ऐसा क्यों है ।

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क्यों अकेला रहता है नीरज? क्या उसके आचरण का राज़ जान पाएगी पूनम? पढ़िए, कहानी ‘आधा इश्क’ की तीसरी किश्त!

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