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कविता: एक ऐसी दुनिया

Picture Credit: Jagveersingh MalkhanSingh Rajoriya‎/ QGraphy

एक ऐसी दुनिया की कल्पना करो जहाँ लोग उगते सूरज से नफ़रत करते हैं
जहाँ माना जाता है हर तरह के फूल को बर्बादी का परिचायक
जहाँ सिर्फ़ दो ही रंगों का उतसव मनाया जाता है – स्लेटी और काला
जहाँ हँसने, मुस्कुराने और ख़ुश होने पर सुना दी जाती है सज़ा
जहाँ के लोग गीली मिट्टी की ख़ुशबू सूँघकर, नाक भींच लेते हैं
जहाँ सिर्फ़ कैदियों और दुश्मनों को पिलाई जाती है चाय
जहाँ ‘इंसानियत’ शब्द का इस्तेमाल होता है गाली की तरह
उसी दुनिया में मेरे और तुम्हारे प्रेम को पाप माना जाता है
अरे रुको! मेरा और तुम्हारा प्रेम तो इस दुनिया में भी पाप है
जब तुम्हारे आलिंगन में लेटा मैं दुनिया के सबसे खूबसूरत भाव की अनुभूती कर रहा होता हूँ
तो मुझे ये बात याद आ जाती है और मैं ज़ोर से हँस देता हूँ
मुझे हँसी आती है इस बात पर कि कैसे कुछ लोग आज भी दो पुरुषों के प्रेम को पाप समझते हैं
और उनके लिए सूरज का उगना, फूलों का खिलना, हँसना, मुस्कुराना पाप नहीं हैं।

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