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कविता: उम्मीद

lonely

घने अंधेरे में कहीं, एक उम्मीद सा साया है,
खुलकर हसना और न छिपना, उसने मुझे सिखाया है,
बंद दरवाजों के पीछे न छू, सबके सामने गले लगाया है,
गम अब सारे हवा हुए, खुशियों का अब साया है।

सच मेरा बना आइना तेरा, झूठ तुझे बोल न पाया है,
मुद्दत के बाद मिला है तूँ, इस समाज ने बहुत डराया है,
खुश हो जब हम तुम घूमे, इसने हमे बहुत रुलाया है,
कीमत हमारी लगा – लगा कर, हमे अंदर तक हिलाया है।

तोड़ के बंधन इस समाज के जब वो मुझसे मिलने आया है,
हाथ में हाथ देख इस समाज ने, हमको नज़र लगाया है,
प्यार तो वस प्यार है, ये समाज समझ न पाया है,
घने अंधेरे में कहीं, एक उम्मीद सा साया है।

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