Site iconGaylaxy Magazine

कविता: कुछ अंधेरी रातों में…

Picture Credit: Eklavya / QGraphy

कुछ अंधेरी रातों में, दरकिनार वो बातें हैं,
जिस्मों को जिस्मों की भूख है, कहाँ अब प्यार कि वो बातें हैं,
बन जाते हैं जरिया हम, उनकी प्यास का,
उन्हे अफ़सोस तक बयां नहीं कर पाते है,
कुछ अंधेरी रातों में, दरकिनार वो बातें हैं।

है प्यास कुछ ऐसी मन में, जो वो बुझा न पाते हैं,
प्यार कि उम्मीद में, हर रोज़ कहर बरपाते हैं,
कभी मसलते हैं, अपने बदन से हमको,
कभी हमारा मन मसलते जाते हैं,
कुछ अंधेरी रातों में, दरकिनार वो बातें हैं।

थाम ले जो हाथ हम उनका, वो हमपे भड़क जाते है,
लोग देख रहे कहकर वो, रात में प्यार जताते है,
खुद तो सोते हैं चैन की नींद, पर हम सो न पाते हैं,
करवटें बदल इधर उधर, खुद को कोसते जाते हैं,
कुछ अंधेरी रातों में, दरकिनार वो बातें हैं।

Exit mobile version