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‘समंदर और नदी’ – एक कविता

हरवंत कौर चार दशकों से शायरी लिख रहीं हैं। सरल भाषा में वह अपनी भावनाएँ बख़ूबी व्यक्त करती हैं। प्रस्तुत है ‘एहसास’ नामक संग्रह से उनकी एक कविता:

समंदर ने कहा नदी से…तस्वीर: बृजेश सुकुमारन।

समंदर ने कहा नदी से:

मुझे ऐतराज़ नहीं कितने रास्ते बदले तुमने
कितनों की तबाही का सामान साथ लाइ हो
बस ख़ुशी है मुझे तो सिर्फ इस बात की ही
तुम सबको छोड़ आखिर मेरे पास आई हो

मैं तेरे इंतज़ार में कभी उठता रहा, कभी सोता रहा
कभी आती जाती लहरों से तेरा पता पूछता रहा
कभी उठा तूफ़ान तो फ़ैल गया मैं दर-ब-दर
कभी मायूस होकर किनारों से भी दूर होता रहा

नदी ने कहा समंदर से…तस्वीर: बृजेश सुकुमारन।

नदी ने कहा समंदर से:

तुझसे है कितनी उल्फ़त दिखा दिया है मैंने
ऊँचाइयों से गिरकर खुद को मिटा दिया है मैंने
औरों की तरह अपना वजूद गँवा दिया है मैंने
आबे-शीरी होकर खुद को आबे-शूर में मिला दिया है मैंने

फिर भी अपनी आग़ोश में कब सँभाला है तुमने
पत्थरों से टकराया कभी हवाओं में उछाला है तुमने
कभी बादल बनाकर खुद से भी जुदा किया है तुमने
मुझे ऐतराज़ है मुझसे कैसा रिश्ता निभाया है तुमने

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