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#RhymeAndReason: अस्तित्व

Picture Credit: Raj Pandey/QGraphy

ज़िंदगी से रुबरू होने की थी कोशिश मेरी
रूह की गहराइयाँ फिर नापने मैं चल पड़ा

रंग कितने थे वो भीतर जानने मैं चल पड़ा
तन्हाईयों से गुफ़्तगू करने को मैं फिर चल पड़ा

जानने ये तब लगा, खुदसेही था अंजान मैं
एक नये से खुदको ही पहचानने मैं चल पड़ा

हमकदम मेरी थी तब वो सहमी सी खामोशियाँ
उनसे ही गिर के संभल के होती थी सरगोशियाँ

वह सफर था खूबसुरत और ज़रा मुश्कील सा भी
क्यूँ ना हो? आखिर थी मंझील सुनहरीसी रोशनी

अस्तित्व मेरा खिल गया पाकर वो सच की रोशनी
“मैं” ना आखिर “मैं” रहा “मैं बन गया वह रोशनी”

यह अभी-अभी संपन्न Rhyme and Reason प्रतियोगिता की चार सर्वश्रेष्ठ कविताओं में से एक है

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