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कविता: एक लड़की थी…

Picture credit: Tuhin Sarkar/QGraphy

एक लड़की थी, नहीं नहीं सॉरी एक लड़का था।
घरवाले भी उसके व्यवहार से बहुत परेशान थे,
उसके घर में उसको समझने वाला कोई भी नहीं था,
उसकी एक प्रेमिका थी, दोनो एक दुसरे से बहुत खुश थे।

पर उनके परिवार वाले उनको जुदा करने की हर कशिश करते थे।
एक दिन लड़की के घरवालों को लड़के ने सब कुछ बता दिया।
तबसे उसके घरवालों ने हर नाकाम कोशिशें की थीं,
हॉस्पिटल लेकर गये, हर जगह लेकर गये,
उनको लगता था, की ये एक बीमारी है।

“समलैंगिक होना कोई बीमारी नही है,” वो लड़की हज़ार बार बोलती गयी,
बचपन से लेकर आजतक उनको कोई प्रॉब्लम नही थी।
पर आज मैं एक गे हूँ, ये बात पता चलने के बाद,
सब दूर-दूर होने लगे थे।

पर हर परिस्थिति मे वो लड़की मेरे साथ थी।
अगर कोई लड़की अपंग पैदा हुई, अगर कोई लड़का किन्नर पैदा हो तो?
जन्म लेना अपने हाथ मे नही रहता।
हर इनसान को अपनी ज़िन्दगी जीने का हक्क है,
अपनी मर्ज़ी से जीने का हक्क है, ‘
प्लीज़, जिओ और जीने दो।

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