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कविता : इक गे की अधूरी कहानी…

Picture credit: ratul ghosh / QGraphy

दुपट्टा मम्मी का लेकर , कभी साड़ी पहनता था
कभी बहनो के संग में वो, घर घर खेल लेता था
अगर खेलेगा ये, तो मैं नहीं खेलूंगा दोस्तों
बड़े भाई की ईग्नोरेनंस, वो अक्सर झेल लेता था

पापा मम्मी से कहते – “सम्भालो अपने लड़के को,
बड़ा होके ये इक दिन, मेरी बदनामी कराएगा”
समझ ना आता था की उसकी ऐसी भी खता क्या है?
ऐसा क्या करेगा? नाम इनका डूब जाएगा?
लिपस्टिक और गुड़िया को, वो नादान दिल तरसता था
की उसके संग का लड़का, जब कार और रेल, लेता था

चाह के भी कभी इंट्रेस्ट, क्रिकेट में ना आ पाया
की WWF उसको हमेशा, बोर करता था
वो रिसेस टाईम अपना, क्लास में बैठे बिताता था
स्कूल प्ले ग्राउन्ड में, ज़माना शोर करता था
उसे डर लगता था, कोई आके, उसको बुली ना कर दे
की वो एक सॉफ्ट टारगेट था, कोई भी पेल देता था

वो टीनऐज का था दौर, दोस्त क्रश अपना बताते थे
सेटिंग के लिए हर रोज़, फाइट ,गैन्गस करती थी
वो छुप के नकली आईडीस याहू ऑरकुट पर बनाता था
किसी से, दिल की शेयर करने में भी, रूह डरती थी
फ़ोन नंबर शेयर करने में, उसकी फट ही जाती थी
बात पहुँचानें में दिल की, टाईम ईमेल लेता था…

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