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‘संगिनी’ (श्रृंखलाबद्ध कहानी भाग ४/५)

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'संगिनी' - एक कहानी (भाग ४/५) | छाया: भूपेश कौरा | सौजन्य: क्यूग्राफ़ी |

कहानी की पिछली कड़ियाँ यहाँ पढ़ें: भाग १ | भाग २ | भाग ३ |

डॉक्टर सीमा की बात सुन श्याम ने हैरत से मनीषा की तरफ देखा। उसे इस बात पर आश्चर्य हुआ। मनीषा ने शर्म से नजरें झुका लीं। श्याम ने मुडकर डॉक्टर सीमा की तरफ देखा और बैचेन हो बोला, ‘‘तो डॉक्टर सीमासाहब इसका इलाज क्या है? और कितने दिन में ये बीमारी ठीक हो जाती है?”

डॉक्टर सीमाने बडे संयत स्वर में कहा, ‘‘देखिये श्याम मैं आपको एक बात बता दूँ कि एक तो यह बीमारी नहीं कही जा सकती, क्योंकि इससे किसी तरह की हानि नहीं होती। दूसरा पूरी दुनिया में अभी तक ऐसी कोई दवा नही बनी जो किसी समलैंगिक को बदल सके। यह एकदम प्राकृतिक होता है।

इतना सुन श्याम घबरा गया। उसने बैचेनी से मनीषा को देखा और डॉक्टर सीमा से बोला, ‘‘डॉक्टर सीमा, आप किसी भी तरह इस परेशानी से छुटकारा दिलाइये। आप जितना पैसा कहेंगी मैं देने को तैयार हूँ।डॉक्टर सीमा श्याम की स्थिति को काफी अच्छे तरीके से समझती थी। वो श्याम को समझाते हुये बोलीं, ‘‘श्याम, मैंने आपको बताया न, इस स्थिति को कोई भी दवा फिलहाल तो नही बदल सकती। आगे का भगवान जाने।

इस बात को सुन श्याम के पैरों के नीचे की ज़मीन खिसक गयी। उसने असहाय नज़रों से मनीषा की तरफ देखा। उसका मन रो रहा था। सोच रहा था कि क्या कसूर था बेचारी मनीषा का जो भगवान ने उसे ऐसी हालत में ला छोडा। एकदम से अपनी सोच को रोक श्याम ने डॉक्टर सीमा की तरफ देखा और भर आए गले से बोला, ‘‘तो अब क्या होगा डॉक्टर? क्या मनीषा ज़िन्दगी भर ऐसी ही रहेगी? मैं कभी इसे छू नही पाऊँगा।

यह कहते-कहते श्याम की आँखों में भय साफ-साफ झलक रहा था। उसे अभी तक ये नही पता था कि मनीषा उसके साथ अब रहेगी ही नहीं। मनीषा तो एकदम से चुप बैठी थी। लेकिन डॉक्टर सीमा ने अपनी चुप्पी तोडते हुये कहा, ‘‘श्याम, आपको मजबूत होना पडेगा, साथ ही मनीषा की आगे की जिंदगी के बारे में भी सोचना पडेगा। मनीषा का आपके साथ रहने से न तो आपका कोई फायदा होगा न हि मनीषा का। मेरे हिसाब से आप दोनों को फिर नए सिरे से अपनी-अपनी जिंदगी शुरू करनी पडेगी।

श्याम को डॉक्टर सीमा की बात में एक अक्षर भी समझ न आया। बोला, ‘‘मैं समझा नहीं डॉक्टर सीमा। आप क्या कहना चाहतीं हैं?” डॉक्टर सीमा ने सधे हुये स्वर में कहा, ‘‘देखो श्याम, मनीषा तुम्हारे साथ रहे भी तो क्या फायदा है? तुम कभी भी पति-पत्नी के रूप में नही रह सकते। फिर क्या फायदा एक दूसरे के साथ रहने से? मैं मनीषा के जैसी ही एक महिला को जानती हूँ, जिसे मैंने बुलाया भी, वो और मनीषा साथ रह लेंगीं। और तुम अपनी दूसरी शादी कर लेना।

श्याम का दिमाग झन्ना गया था। क्या कह रही थी ये डॉक्टर? अभी एक दिन पहले श्याम मनीषा को अपनी बीवी बना घर में लाया था और डॉक्टर सीमा कह रहीं थी कि वो मनीषा को छोड कर दूसरी शादी कर ले। उसे डॉक्टर सीमा मनीषा से ज्यादा पागल नज़र आ रहीं थीं।

श्याम मुश्किल से बोल पाया, ‘‘डॉक्टर सीमा आप को मालूम है आप क्या क्या कह रही हो? ये मनीषा मेरी बीवी है और अभी ठीक से दो दिन भी नही हुये हमारी शादी को। आप कहती हो कि मैं इसे छोडकर दूसरी शादी कर लूँ। आप होश में तो हैं न? मैं तो इसलिये आप के पास आया था कि मुझे मेरी समस्या का समाधान मिलेगा और आप हैं कि नयी समस्या खडी कर रहीं हैं।

डॉक्टर सीमा ने श्याम को समझाते हुये कहा, ‘‘श्याम मुझे पता है तुम्हारे ऊपर इस बात से क्या बीत रही होगी, लेकिन यही यर्थात है। तुम्हें इसको स्वीकारना होगा। मनीषा तुम्हारे साथ नही रह सकती।श्याम का पारा सातवें आसमान पर चढ चुका था। वो खडा होता हुआ मनीषा से बोला, ‘‘चलो मनीषा, मैं तुम्हें गलत जगह ले आया। ये चिकित्सक नही घर बिगाडने की माहिर र्है।

जब मनीषा को खुद का घिरना महसूस हुआ तो वो उठकर श्याम के पैरों में गिर गयी, और सिसकते हुये बोली, ‘‘मैं आपके पैर पकडती हूँ, मुझे वही करना है जो डॉक्टर सीमा कह रहीं हैं। मैं सच कहती हूँ मुझे आपके साथ रहने से कभी खुशी नहीं होगी और न हि आपको कभी खुशी होने वाली। मुझे मेरे हाल पर छोड देंगे तो आपका बडा अहसान होगा।

श्याम की हिम्मत एकदम से टूट गयी। अब तक उसे मनीषा का ही तो सहारा था जो वह डॉक्टर सीमा से भला-बुरा कह मनीषा को अपने साथ घर ले जा रहा था, लेकिन अब तो खुद मनीषा ही उसके साथ चलने के लिये तैयार नहीं थी। मनीषा तो उसकी बीवी थी। कम से कम श्याम को मनीषा से ये उम्मीद नहीं थी। वो मनीषा को एक ही दिन में इतना प्यार कर बैठा था कि उसे चाहकर भी नहीं छोड सकता था।

श्याम ने मनीषा को अपने पैरों से उठाया और घबराये हुये स्वर में बोला, ‘‘मनीषा ये क्या कह रही हो? तुमने मुझसे शादी की है। और ऐसा नही कि मैंने कोई जबरदस्ती की थी, तुमने अपनी मर्जी से मेरे साथ शादी की थी। अगर ऐसी कोई बात थी तो तभी क्यों नही मना कर दिया? अब कैसे तुम्हें छोडकर चला जाऊँ? क्या कहूँगा घरवालों से? उन्हें ये सब कैसे समझा पाऊँगा उन सब को?

कहानी की अगली किश्त अगले सप्ताह पढ़ें।

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