Site iconGaylaxy Magazine

कविता: उम्मीद

Picture credit: Raj Pandey / Qgraphy

मुझे प्यार जताना नहीं आता
मगर प्यार फिर भी करता हूँ

मुनासिब तरीक़ा नहीं आता
इस लिए यूँही सिसकता हूँ

कुछ रह गयीं हैं बातें बतानी
जो बोल नहीं पाता, तो बेचैन सा रहता हूँ

मेरे तकिए की नमी ये गवाह देती है कि
टूटके, बिखरके, मैं कैसे सिमटता हूँ

जो जल रही है उधर, मेरे अरमान कि चिता है
कोई लहर आकर बुझा दे उसे, इस आस मे बैठा हूँ

एक ही ख़्वाब था मेरा, दफ़्न हैं यहीं पर
अब इसी गीली मिट्टी के एहसास से जीता हूँ

उम्मीद तो है अब भी, उसके लौट आने की कभी
इस लिए हर आहट को अब दिल थाम के सुनता हूँ

Exit mobile version