Hijra

कविता: उम्मीद

मेरे तकिए की नमी ये गवाह देती है कि, टूटके, बिखरके, मैं कैसे सिमटता हूँ

समलैंगिक पीड़

मीठा कहते है लोग पर, आता नहीं कोई प्रेम की मीठी खीर लेके

कविता: एक सिमटती हुई पहचान

मिल गई हमें सांवैधानिक सौगात, तीसरे दर्जे के रूप में, आखिर कब मिलेंगे बुनियादी अधिकार, भारतीय नागरिक के स्वरूप में?

सिर्फ 6 दिनों में जीता पंचायत चुनाव: कहानी कानपूर की नव निर्वाचित किन्नर सरपंच किरण काजल की

किन्नर होने की वजह से परिवार ने साथ छोड़ा , जीविका के लिए 30 रुपए की मजदूरी की, कानपुर की इस किन्नर के पास है आज सबकुछ - पैसा, सम्मान और शोहरत
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समाज के तिरस्कार के बावजूद, आगे बढ़े हैं कई किन्नर

जरुरत हैं की आप और हम जैसे लोग भी समाज के मुख्य धारा में इन्हे अपनायें; ताकि ये लोग भी कंधे से कंधा मिलाकर इस महान भारत की प्रगति में अपना योगदान दे सके

5 साल से घरवालों से दूर रहनेवाले समलैंगिक लड़के का अपनी माँ को खत

माँ पहले आप मेरे लिए रोती थी, आज मैं आपके लिए रोता हूँ। माँ मुझे आपकी बहुत बहुत याद आती हैं। आँखों से आँसू आते हैं तो थमने का नाम ही नही लेते।