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कविता : ये इश्क़

Picture credit: Aman Altaf / QGraphy

जिस्मो से परे रूहानी इश्क़ है,
किस्सो में कहें कहानी इश्क़ है…

ज़िन्दगी के आखिरी पड़ाव तक साथ सफ़र है,
या केवल कुछ पलो की जवानी इश्क़ है…

पूरी ज़िन्दगी साथ निभाने का वादा है शायद,
शायद एक-दूसरे की ज़िन्दगानी इश्क़ है…

लैंगिकता से देखते हो क्यों इसे ये परे है इन सबसे,
समलैंगिकता की अपनी भी अलग मनमानी इश्क़ है…

तुमसे रूठना इश्क़ है, तुम्हें मनाना इश्क़ है,
कि हा सच में तुमसे दिलबर जानी इश्क़ है…

तुम्हारा मिलना मेरी ही मांगी दुआएँ है लाखो, ये तो खुदा की बख्शी महरबानी इश्क़ है…

क्यों कहते है लोग बदनाम है हम समलैंगिक, चाहे जो समलैंगिकता एक बदनामी इश्क़ है..

ज़रूरी तो नहीं कि नाम ही हो किसी रिश्ते का हर बार, एक तरफा, एक जैसा बेनामी इश्क़ है…..

एक- दूसरे का भविष्य ध्यान में रखे जो करियर भी, तरक्की देखना चाहे यार वो दिल की आशियानी इश्क़ है…

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