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संपादकीय ३ ( ०१ मार्च २०१४)

'नयी राह, नया सफ़र!'

‘नयी राह, नया सफ़र!’, तस्वीर: सचिन जैन

इस अंक की थीम है ‘नयी राह’।

पुनरपराधिकरण और रिव्यु याचिका के नामंज़ूर होने के बाद इन्साफ का रास्ता अब शायद संसद से होकर जायेगा।“उम्मीद पर दुनिया क़ायम है” में उवैस खान लैंगिक अल्पसंखयकों के राजनितिक दल की स्थापना का समर्थन करते हैं। उनके अनुसार समाज से छीने गए हक़ूक़ वापस लेने का ज़रिया सबको सामान अवसर देने वाली हमारी पार्टी है।

‘एक मुलाक़ात’ में मिलिए चित्रा पालेकर से, जो समुदाय के सदस्यों को खुलकर जीने की उनके माँ-बाप को स्वीकृति की और हर तरह के नेताओं को सहिष्णुता की राह का प्रस्ताव रखतीं हैं। आगे का रास्ता कैसा होगा? हमारी संस्कृति के कौनसे पहलु माँ-बाप को अपने समलैंगिक बच्चे को स्वीकार करने में सक्षम या अक्षम बनाते हैं? पढ़िए चित्रा के दिलचस्प अनुभव और क़िस्से।

अर्ची काली एक उभयलैंगिक स्त्री हैं। कपड़ों का हमारी अभिव्यक्ति और स्वपहचान से क्या ताल्लुक़ है? अर्ची ने पाया जवाब एक क्लब के डांस फलोर पर और इसका विवरण “पेहराव और पहचान” इस लेख में है।

अपने अस्तित्व को ज़ाहिर करने और जागरूकता बढ़ाने का एक अनूठा प्रयास किया आई.आई.टी. खड़गपुर के छात्रो ने। उनका नाटक “आखिर क्यों” में एक समलैंगिक प्रेमी युगल तमाम मुश्किलों के बावजूद एक नयी राह पर चलकर एक नयी ज़िन्दगी जीने का सपना देखते हैं। इनके उत्साह और साहस की दाद देनी होगी। यूनिवर्सिटी रंगमंच पर एक वर्जित विषय को संवेदनशीलता से पेश करने में उन्हें किन कठिनाइयों का सामना करना पड़ा पढ़िए “‘आख़िर क्यों’ – एक साहसी नाट्याविष्कार” में।

फरवरी २०१४ में एक ऐतिहासिक घटना घटी. भारत के पूर्वोत्तर राज्यों में पहली बार, गुवाहाटी में प्राइड मार्च का यशस्वी आयोजन हुआ। जानिये इसकी रोमांचक कहानी, और मिलिए अपने देश के नॉर्थ-ईस्ट के क्वीयर बंधुओं से, “गुवाहाटी तेरी प्राइड-रंजित माटी” में।

जय यादव की कहानी “आदित्य” की शृंखला की तीसरी दिलकश कड़ी इस अंक में है।

शालीन राकेश की दिल को छू जानेवाली कविता, “तुम्हारे बाद” विचार करने पर मजबूर करती है, कि क्या नई राह अतीत को भूलकर पाई जाती है, या उसे गले लगाकर?

आशा है आपको यह अंक पसंद आएगा। हर लेख पर आपके कॉमेंट्स का हमें इंतज़ार है। और आपके लेखों, कहानियों, कविताओं का भी!

आपका नम्र,

सचिन जैन
संपादक, गैलेक्सी हिंदी

editor.hindi@gaylaxymag.com

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