कविता

कविता : मुखौटा

यूं तो बस मैंने अपने आप को था अपनाया,सिर्फ़ अपनी ख़ुशी के लिए कुछ करना था चाहा।कुछ थे हमारे साथ, जिन्होंने साथ छोड़ दिया,कुछ ने थामा हुआ हमारा, हाथ छोड़ दिया।क... Read More...

कविता : सुलगते जिस्मों को हवा ना दो

सुलगते जिस्मों को हवा ना दो खाख़ हो जायेगीं कोशिशें न वो हमें देखते हैं, न हम उन्हें नज़र वो अपनी थामे हैं, हम इन्हें कुछ कहने की चाहत न उन्हें हैं, न... Read More...
'सिसक' (एक कविता) | तस्वीर: हृषिकेश पेट्वे | सौजन्य: क्यूग्राफी |

सिसक – एक कविता

रोशनदानों की रोशनी सी पुलक-पुलक मैंने इबादत पढ़ी है जो परवरदिगार इसका तू और आयात तेरे अफ़साने। जावेदा-सी नहीं है ये शमा कोई, तेरी जुस्तजू में आफ़ताब-सा मेरा हिय... Read More...
'जीने दो आज़ाद' - कविता | छाया: चैतन्य चापेकर | सौजन्य: क्यूग्राफी

‘जीने दो आजाद’ (कविता)

ढाला गया हूँ उसी सेजिस मिट्टी से वजूद है तुम्हारालाल खून हमाराऔर लाल ही तुम्हारा चाहता हूँ प्यार पानातुम भी तो चाहते होहै जीने की ख्वाहिशदोनों में यकसाँफिर क... Read More...
'रिवाज' - एक कविता | छाया: आकाश मंडल | सौजन्य: QGraphy

‘रिवाज’ – एक कविता

'रिवाज' - एक कविता | छाया: आकाश मंडल | सौजन्य: QGraphy कई दिनो से वो एक दुसरे को जानते थे अच्छी तरह न सही पर एक दूसरे के अस्तित्व में होने को तो वो ज... Read More...
'सन्नाटा' - एक कविता; छाया: कार्तिक शर्मा

सन्नाटा – एक कविता

सन्नाटा दिल के तख़्त पर महफूज़ रखा था मेरी हर नन्हीं सी ख्वाहिश को मेरे छोटे से इन हाथों में दिया तुमने जग यह सारा हर क़दम चला तेरे साए में तेरे आँचल में मैं... Read More...