“प्रतिनिधित्त्व या अभिव्यक्ति?”

बिग बॉस में सुशांत; तस्वीर: कलर्स

बिग बॉस में सुशांत; तस्वीर: कलर्स


सुशांत दिवगीकरको लेकर ये अजीब सी ‘अशांति’ का माहौल क्यों है
?

बिगबॉस का नया सीज़न शुरू हो चुका है. इस बार तमाम कंटेस्टेंट के बीच एलजीबीटी समूह से मिस्टर गे इंडिया रह चुके और हाल ही में गे वर्ल्ड कॉन्टेस्ट में शामिल हुए सुशांत दिव्गिकर भी एक हैं। बिगबॉस में शामिल होते ही सुशांत साफ़ कर चुके हैं कि वो गे हैं और वो ‘क्लोज़ेट’ में रहना पसंद नहीं करते, वो ये भी कह चुके हीं कि उन्हें किसी भी तरह से अपनी यौनिकता के चलते छुपे रहना मंज़ूर नहीं

जहां एक ओर बिगबॉस के घर के अंदर माहौल गर्माता दिखावहीँ, दूसरी तरफ़ सीज़न के शुरु होते ही एलजीबीटी समूहों के बीच भी गरमागरम बहस शुरू होती दिखी। ये बहस सुशांत के ‘एफिमिनेट’ होने के चलते कई दिनों तक छाई रही। समूह के कुछ लोगों का कहना था कि सुशांत को एक सुनहरा मौक़ा मिला हैं। ये मौक़ा एल.जी.बी.टी. समूह की छवि को समाज के बीच ‘सही तरीके’ से पेश करने का है
देखा जाए तो ये तमाम लोग असल में सुशांत से शायद ये चाहते थे कि वो समाज को एक सुपरमैन नुमा गे दिखाए जिसे देखते ही उन्हें खुद पर गर्व महसूस हो सके।

वैसे हैरान करने वाली बात ये भी कि जिस एलजीबीटी समूह से हम संवेदनशील होने की उम्मीद करते हैं भीतर से देखने पर कहीं कहीं तस्वीर ठीक उसके उलट दिखती हैं। असल में बात यहाँ एक की होती तब समझा भी जा सकता था। लेकिन, माने या ना माने एलजीबीटी समूह के एक बड़े हिस्से को ‘#एफीमेनेट‘ नहीं चलेगा। उन्हें#बायसेक्शुअलनहीं चलेगा, #ट्रांसजेंडरनहीं जमेगा। वो ऐसे हर ‘पीस’ को ठुकरा देंगे जो ‘सोशल नोर्म’ में फिट ना बैठे। वो ऐसा होना चाहिए जिसे देखते ही उनके आस पास का हर कोई शख्स साँस खींच के, अपनी आँखें चमकाके, थोड़ी फैला के ये कहे “आप गे हैं? देखने से लगते तो नहीं। गे तो कुछ कुछ ‘इस –उस’ तरह के होते हैं।’’

साहब उन्हें एक दम देसी घी जैसा ‘शुद्ध गे’ चाहिए। यहाँ ‘डालडा’ से काम नहीं चलेगा। अलबत्ता इतना तो मानकर चला जा सकता है कि सुशांत या किसी भी दूसरे शख्स से तब तक कोई गिलाशिकवा नहीं जब तक वो टीवी परमाचोगिरीदिखाते रहें। तकलीफ तब होती है जब वो ‘अपने आपको’ दिखाना शुरू करे। जब उनका#एफिमिनेटहिस्सा आपके या टीवी के पर्दे के सामने आये और तब आपको डर लगता है कि कहीं मेरे घर वाले भी मुझे ‘ऐसा’ ही ना समझ ले। लेकिन उनके इस डर को दूर करने के लिए आप खुद कुछ नहीं करेंगे। उन्हें समझाएंगे नहीं। जानकारी से रूबरू नहीं कराएँगे। लेकिन हाँ सुशांत और बाक़ी एफिमिनेट लोगों को खूब कोसते रहेंगे। आखिर इमेज का सवाल है बॉस।

आज बिगबॉस में सुशांत है। कल को कोई और होगा। लेकिन इतना तो तय है कि उसे भी उतना ही कुछ कहा जायेगा जितना सुशांत को आज सुनना पड़ रहा है। अगर वो एक पर्टिकुलर ‘मोड’ में अपने आपको ना दिखाए। लेकिन#एल.जी.बी.टी.के एक ‘ख़ास वर्ग’ को अपना सुपर हीरो चाहिए ही चाहिए (बोले तो मांगता ही मांगता है ) किसी भी कीमत पर। जो बस गीलीगीली छू बोलते ही सब परफेक्ट बना दे। क्या यार सुशांत तुमने इन ‘माचो गे’ लोगों की इमेज का कुछ ख्याल नहीं रखा।

हैरानी की बात है वो तमाम लोग (ज़्यादातर) जो इनदिनों सुशांत को लेकर चिल्पों किये हुए हैं उनमे से ज़्यादातर लोग खुद को ‘क्लौज़टिड’ रखने में ही यकीन करते हैं। कम से कम सुशांत की तरह अभी तक खुल के कहने और सामने आने का साहस तो कम ही दिखा होगा। और वो दूसरे से चाहते हैं कि वो उनकी ‘छवि’ एक ‘माचो गे’ के तौर पर पेश कर के मस्त #पी.आर.करे लेकिन, सोचने वाली बात ये है कि क्या इसके लिए सुशांत को सवालों के घेरे में खड़ा किया जाना सही है? या फिर उस चैनल को? या फिर एक पल सोचकर ये सवाल खुद से करने की ज़रूरत है कि आखिर हमें सुशान्त या किसी दूसरे की ज़रूरत क्यों हो? क्या हम अपने आसपास उन लोगों को ये समझा नहीं सकते कि गे होना सिर्फ एफिमीनेट होना नहीं है और ये शुरुआत अपने घरों से करें. इसपर बहस करके उन्हें समझा के शिक्षित करके। ये बताके कि समलैंगिक तबका कितना विस्तृत है। ये कहना गलत नहीं होगा कि एलजीबीटी समूह के एक बड़े वर्ग के भीतर अक्सर ये शिकायत रहती है कि उन्हें (खासकर ‘माचो गे’ को) दूसरे लोग ट्रांसजेंडर और बाक़ी लोगों से अलग नहीं कर पाते। गे परेड में ट्रांसजेंडर ही सारा ‘अटेंशन’ उड़ा ले जाते हैं। एफिमिनेट का सवाल इस वर्ग के लिए नया नहीं है। ज्यादातर के लिए नाक का सवाल सा बन जाता है। कि कोई उन्हें एफिमिनेट ना समझ ले। कुलजमा ये कि काफ़ी बड़े पैमाने पर ये भेदभाव इस वर्ग के खुद के भीतर है। सुशांत के इस प्रकरण ने बस इस बहस को एक बार फिर हवा दे दी है। लेकिन ऐसा नहीं है कि सुशांत को सिर्फ ‘अपनों’ के सवालों का सामना करना पड़ रहा हो।

शो के दूसरे प्रतिभागियों में से फिलहाल उन्हें प्रीतम और दीपशिखा की तल्ख और अपमानजनक कमेंट्स का भी सामना करना पड़ा। इसमें कोई शक नहीं कि फ़िलहाल बिगबॉस के दो कंटेस्टेंटप्रीतम सिंह और दीपशिखा नागपाल होमोफोबिया के शिकार हैं।ऐसा उन्होंने एक बार नहीं, बल्कि दो बार अपनी हरकतों से साबित भी कियाअसल में बात यहाँ सिर्फ ‘दीदी’ कहने तक सीमित नहीं है और ये पहला मौक़ा भी नहीं था जब उन्होंने सुशांत के लिए इस तरह के शब्दों का इस्तेमाल किया हो। इससे पहले भी जब सुशांत का ज़िक्र आया तब भी प्रीतम ने बड़े नाक भों चड़ा के और हाथों के इशारों से सुशांत का ‘वो गे’ कहकर ज़िक्र किया। कहना ना होगा कि असल में हैरानी और धक्का तब भी लगता है जब प्रीतम जैसे होमोफोब को शो का हिस्सा बनाया जाता है। प्रीतम के इस तरह के व्यवहार से ये समझना आसान हो जाता है कि वो एलजीबीटी समूह और दूसरे अल्पसंख्कों को लेकर कितने असंवेदनशील होंगे।

अक्षत शर्मा