श्रुंखलाबद्ध कहानी ‘वह थोड़ा अलग था’ की पहली और दूसरी कड़ी पढ़ें। प्रस्तुत है कहानी की तीसरी और आखरी किश्त:

मैंने बात को बताने के लिहाज से बात बदली, ‘‘अरे यार छोडो अब, जो उसने किया वो मैं तुम्हें बता भी नही सकता।मानसी इठती हुयी बोली, ‘‘अरे अब बता भी दो, इतनी गन्दी बात भी नही होगी जो बताने में इतना शरमा रहे हो।मैंने हारकर मानसी को बता ही दिया। पूरी बात सुनकर मानसी खिलखिलाकर हॅस पडी और बोली, ‘‘अरे यार ये अन्जाने में सोते हुये हो गया होगा, और तुम दोंनो लडके हो फिर इसमें बुरा मानने की क्या बात है।

कहानी: 'वह थोडा अलग था' | तस्वीर: बेनी सैम मैथ्यू | सौजन्य: क्यूग्राफी

कहानी: ‘वह थोडा अलग था’ | तस्वीर: बेनी सैम मैथ्यू | सौजन्य: क्यूग्राफी

जो बात मानसी को आम बात लग रही थी वो मुझे बहुत बडी बात लग रही लग रही थी। मैं मानसी को समझाते हुये बोला, ‘‘मानसी जितनी छोटी बात तुम समझ रही हो ये उतनी छोटी बात नही है, मैने मोहन को उस समय देखा था। उस अंदाज को देखकर लगता है कि मोहन या तो पागल है या इसे इस तरह का कोई दौरा पडता है।

मानसी मेरी बात को पूरी तरह खारिज करती हुयी बोली, ‘‘अरे नही यह सब तुम्हारे दिमाग का वहम है, अब ये सब छोडो और मोहन को माफ कर दो।मैं जानता था मानसी सेबहसकरना बेकार है इसलिये बात को वहीं खत्म कर दिया। मैंने मोहन को माफ तो कर दिया लेकिन उस दिन केबादसे मैंने मोहन को कभी अपने पास नहींसुलाया। पता नहींक्यों मुझे मोहन से डर लगता था।

दिन गुजरे। दसवीं की परीक्षा पास होने के बाद मोहन के घर वालों ने उसकी शादी करने के बारे में फैसला कर लिया। हालांकि मोहन की उम्र अभी ज्यादा नहींथी लेकिन गांव में अक्सर इस तरह कम उम्र में शादियां हो जाती हैं। लेकिनइस खबर से मोहन के ऊपरज्रपात हो गया था। उसने सबसे पहले मेरे पास आकर इस बात का विरोध किया।

कहानी: 'वह थोड़ा अलग था' भाग ३/३ | तस्वीर: बेनी सैम मैथ्यू | सौजन्य: क्यूग्राफी |

कहानी: ‘वह थोड़ा अलग था’ भाग ३/३ | तस्वीर: बेनी सैम मैथ्यू | सौजन्य: क्यूग्राफी |

मेरे पास आकर पूरी बात बतायी फिर उदास होबोला, ‘‘यार तेरे पास कोई ऐसा उपाय नहींजिससे मेरी शादी होने से रूक जाये।मैं खुद जानता था कि इस समय मोहन की शादी करना,येउसके घरवालों का फैसला गलत होगा, लेकिन मेरे पास उसे रोकने का भी तो कोई उपाय नहींथा। इस सब को सोच, मैं मोहन से बोला, ‘‘लेकिन मुझे ये तो बता तू इस शादी से इतना घबरा क्यों रहा है।

मोहन ने तडप कर मेरी तरफ देखा और बोला, ‘‘यार तुझे कैसे बताऊँ कि मुझे लडकियां अच्छी नही लगतीं…।” मोहन अपनी बात को पूरा करता उससे पहले ही मेरी जोरदार हॅसी छूट गयी। मैंने हॅसते हुये मोहन से कहा, ‘‘तो क्या भैंस से शादी करेगा, या सन्यासी हो जाने का इरादा है?

मोहन ने मेरी बात को जरा भी भाव दिया, वो झुंझलाकर मुझसे बोला, “यार तेरे पास कोई उपाय हो तो बता नही तो रहने दे। यहाँ मैं मरा जा रहा हूँ और तुझे मजाक सूझरहाहै।मैं हॅसी को कम करता हुआ बोला, ‘‘अच्छा ठीक है भाई लेकिन माफ करना मेरे पास कोई उपाय नही इस शादी को रोकने का, तू अपने घरवालों को समझा तभी कुछ हो सकता है।

कहानी: 'वह थोड़ा अलग था' भाग ३/३ | तस्वीर: शुभंकर मण्डल | सौजन्य: क्यूग्राफी |

कहानी: ‘वह थोड़ा अलग था’ भाग ३/३ | तस्वीर: शुभंकर मण्डल | सौजन्य: क्यूग्राफी |

मोहन बिना मुझसे कुछ कहे उठकर चला गया, लेकिन उसकी बैचेनी मुझे साफ साफ दिखाई दे रही थी। मुझे ये समझ रहा था कि मोहन शादी से इतना क्यों घबरा रहा है। उसकी उम्र का कोई भी लड़का शादी के लिये खुशी खुशी तैयार हो जाता लेकिन मोहन था कि अजीबसा व्यवहार कर रहा था।

दिनभर सब ठीक रहा लेकिन शाम को मोहन मेरे पास आया और बोला, ‘‘भाई घरवाले तो शादी करने के नाम से मुझे खाने को दौडते है, समझ नही आता कि मैं क्या करूं।अब मोहन की हालत मुझे गंभीर लग रही थी। उसका मुँह सूजा हुआ था और आखें देखकर लगता था कि वो जरूर रोकर आया होगा।

मैंने उसे समझाते हुये कहा, ‘‘मोहन शांत रहकर सब काम कर कुछ भी नही होगा, सब एकदम से ठीक हो जायेगा।मोहन ने घबरायी हुयी नजरों से मेरी तरफ देखा लेकिन बोला कुछ भी नही। मुझे लगा मोहन मेरी बात से शांत हो गया है लेकिन ऐसा नही था। थोडी देर चुप रहने के बाद अचानक से मोहन बोल पडा, ‘‘यार आज में तेरे पास सो जाऊँ, यार मना मत करना प्लीज।

कहानी: 'वह थोड़ा अलग था' भाग ३/३ | तस्वीर: सौमिल्य डे | सौजन्य: क्यूग्राफी |

कहानी: ‘वह थोड़ा अलग था’ भाग ३/३ | तस्वीर: सौमिल्य डे | सौजन्य: क्यूग्राफी |

मोहन की नजरों और आवाज में जाने क्या था जिसकी वजह से मैं उसकी पिछली हरकत को याद कर के भी उससे मना कर सका। रात को मेरे साथ ही खाना खाया और मेरे पास छत पर ही लेट गया। मोहन की माता जी उसको बुलाने आयीं थीं लेकिन मोहन ने मेरे पास ही सोने की कह उन्हें मना कर दिया।

आधी रात के वक्त मोहन ने मुझे सोते से जगाया। मैं सोता जागता सा उठकर बैठ गया। मोहन को नींद नही आ रही थी। वो बैचेन भी बहुत हो रहा था। उसके हावभाव बडे अजीब से लग रहे थे। वो बैचेन हो मुझसे बोला, ‘‘यार श्याम क्या हम तुम जिंदगी भर के लिये एक साथ नहीं रह सकते, ऐसा क्यों नही होता कि लडकों की आपस में शादी हो जाया करे। क्यों सिर्फ लडकियां ही लडकों से शादी कर सकतीं हैं। श्याम यार हम दोनों पूरी जिन्दगी एक साथ नही बिता सकते। हम दोनों दोस्त हैं और एक-दूसरे को चाहते भी तो क्यों ऐसा नही कर सकते।

मैं नींद से बुरी तरह घिरा हुआ था। मुझे मोहन की बातें पागलपन से भरी लग रहीं थी और मोहन पूरी तरह पागल लग रहा था। मैंने फिर से लेटते हुये कहा, ‘‘भाई तू मान या मत मान लेकिन अब तू पूरी तरह पागल हो गया है, मुझे नींद रही है इसलिये मुझे सो जाने दे

कहानी: 'वह थोड़ा अलग था' भाग ३/३ | तस्वीर: सारंग चव्हाण | सौजन्य: क्यूग्राफी |

कहानी: ‘वह थोड़ा अलग था’ भाग ३/३ | तस्वीर: सारंग चव्हाण | सौजन्य: क्यूग्राफी |

इतना कह मैं सोने लगा लेकिन मोहन फिर से किसी निराश इंसान की तरह बोलना शुरू हो गया, ‘‘यार मैं सच कहता हूँ कि तुझे परेशान नही करूंगा, चल हम दोनो यहाँ से कहीं दूर भाग चलते हैंमोहन इस के बाद भी जाने क्या क्या कहता रहा लेकिन मैं पूरी तरह नींद के आगोश में जा चुका था। जब सुबह मेरी आँख खुली तो मोहन मेरे पास नही था।

मैंने सोचा शायद मोहन मेरे जागने से पहले ही यहाँ से चला गया होगा। इस बात से मुझे चैन की सांस भी रही थी कि उस पागल की पागलपन भरी बातें अब मुझे नही सुननी पडेंगीं। करीबन आठ नौ बजे के बीच में मोहन की माता जी मेरे पास आयीं और मोहन के बारे में पूंछा। मैने उन्हें बता दिया कि मोहन तो मेरे पास से मेरे उठने के पहले ही चला गया था।

थोडी देर तक तो सबकुछ ठीक चला लेकिन फिर पूरे मोहल्ले में मोहन को ढूंढा जाने लगा। घण्टों तक मोहन का कोई अता पता चल सका। चारो तरफ मोहन को लेकर चकचक हो रही थी। शाम तक इसी तरह ढूँढा जाता रहा लेकिन शाम के गांव के ही एक आदमी ने आकर खबर दी कि मोहन गांव के बाहर वाले तालाब के पास मरा पडा है।

कहानी: 'वह थोडा अलग था' | तस्वीर: अमन अलताफ़ | सौजन्य: क्यूग्राफी

कहानी: ‘वह थोडा अलग था’ | तस्वीर: अमन अलताफ़ | सौजन्य: क्यूग्राफी

पूरा गांव एकदम से उस तालाब की तरफ दौड पडा। जिसमें मैं भी शामिल था। मोहन ने तालाब में कूदकर अपनी जान दे दी थी। जब एक मछली पकडने वाले को उसकी तैरती हुयी लाश मिली तो उसने उसे बाहर निकाल लिया। लेकिन मोहन तो इस दुनियां से जा चुका था।

बाद में मुझे उसकी बातों की गंभीरता का पता चला। साथ में ये भी पता चला कि मोहन एक पुरूष समलैंगिक था जिसे किसी लडकी के साथ शादी करने में कोई रूचि नही थी। ये पहली बार था जब मैंने इस शब्द को सुना था। उसके घर वाले इस बात को जानते थे लेकिन जमाने की बदनामी से बचने के लिये उसकी शादी कराना चाह रहे थे।

कहानी: 'वह थोडा अलग था' ३/३ | तस्वीर: क्लेस्टन डीकोस्टा | सौजन्य: क्यूग्राफी

कहानी: ‘वह थोडा अलग था’ ३/३ | तस्वीर: क्लेस्टन डीकोस्टा | सौजन्य: क्यूग्राफी

वे लोग इस बात के किसी और को पता चलने से पहले मोहन की शादी कर देना चाहते थे। वे लोग सोचते थे कि समलैंगिकता एक बीमारी है जो शादी के बाद अपने आप खत्म हो जायेगी। आज बीमारी के साथ साथ मोहन ही खत्म हो गया था।

Dharmendra Rajmangal