कहानी : रेनकोट

रवि : “मैंने बताया होगा मेरे TCS के दोस्त वरुण के बारे में; जो मुझे बुक्स दिया करता था।”

बारिश हो रही थी सो आज दोनों को एक ही ऑटो करना पड़ा था; शौर्य एक अरसे से उसी बैंक में था और रवि एक आई टी कंपनी छोड़ किसी तलाश में वहाँ आया था; फिर उसने शादी की; प्रमोशन लिया ; बच्चे पैदा किये; लोन लिया; गाड़ी ली; घर लिया; पर तलाश अब भी चुभती है। मूंगफलिया ख़त्म होने को थी; ऑटो अब भी रुका हुआ था।

रवि : “वो अस्सिटेंट डायरेक्टर बन गया है।”

शौर्य : “कैसे? तुम भी ट्राई कर लो।”

रवि : “चुप हो जाओ… अपन खत्म है। वो बता रहा था की वो गोवा है; तुमबाड़ के डायरेक्टर से मिला था; शायद अब वो राइटिंग करेगा। किसी चैनल के क्रिएटिव हेड से मिला था।”

शौर्य : “तो?”

ऐसे ही किसी “तो “(“तो तुझे वो सब करना है, जो सब कर रहे है?”) के जवाब में उसने वरुण को बताया था की वो जिंदगी में चल ही जलन पर रहा है वैसे उसे जिंदगी में कुछ चाहिए नहीं। वो ख़त्म है, बस ये जलन ही है जो ये सब कराये जा रही है। फिर उसने वो सब किया जो सब कर रहे थे, उसने सरकारी नौकरी पकड़ ली, उसने शादी की; प्रमोशन लिया; बच्चे पैदा किये; लोन लिया; गाड़ी ली; घर लिया फिर इन सालो में सब बदल गया; पर उसने जलना नहीं छोड़ा। पर अब वो बिना कुछ किये चुपचाप जलता है।

शौर्य : “तो?”

रवि : “मैंने भी बोल दिया; बैंक मस्त चल रहा है; इतनी शांति है; जो मुझे हमेशा से चाहिए थी।”

शौर्य : “क्या पता वो भी झूठ बोल रहा हो? “

रवि : “क्या पता?”

शौर्य : “रेनकोट खेल रहे हो?”

रवि : “क्या रेनकोट?”

“अजय देवगन वाली .. पूरी पिक्चर में एक दूसरे को चुतिया…”

“हाँ रेनकोट।”

“पर एक अंतर है… वो दोनों लवर थे उस मूवी में।”

“हम दोनों भी तो साला लवर ही तो थे…”

सोच कर कही निगल गया इसे.. बोल नहीं पाया, बोल भी कैसे सकता था? पर फिर भी आज बहुत दिनों बाद काफी करीब आ गया था बहुत पहले, कसकर बंद किये गए अपने क्लोसेट के दरवाजे की चौखट पर।

कपिल कुमार (Kapil Kumar)
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