Hindi Poetry

समलैंगिक और समाज

ये आज़ादी तो बस नाम की जो सलाखो से बचाती है, पर समलैंगिको को तो घरो में कैद हर बार किया जाता है..

कविता: रिश्ते

जो समाज कि नज़र से न डरते थे कभी, वो "लोग क्या कहेंगे" सोच के झिजकते भी हैं

कविता: एक ऐसी दुनिया

मुझे हँसी आती है इस बात पर कि कैसे कुछ लोग आज भी दो पुरुषों के प्रेम को पाप समझते हैं
'कल रात' - एक कविता , छाया: आकाश मंडल, सौजन्य: QGraphy

‘कल रात’ (एक कविता)

वह थी हकीक़त या ख़्वाब जो देखा था कल रात को सुबह उठकर न भूली मैं तो उस बीती बात को सदियों से जैसे बिछड़े वैसे हम दोनों मिले थे और गुज़ारे चाँद लम्हें जैसे वह... Read More...
'तुम्हारे बाद' - एक कविता

तुम्हारे बाद – एक कविता

'तुम्हारे बाद' - एक कविता। तस्वीर: बृजेश सुकुमारन। तुम्हारे बाद। कभी मैंने तुम को यादों कि फुलझड़ी बना दिया उन रातों को भरने के लिए जिनमें खुद को तनहा पाया... Read More...