इम्फाल में प्राइड का कमाल

इम्फाल प्राइड २०१४

इम्फाल प्राइड २०१४। यूथ हॉस्टल, खुमान लम्पक से परेड की शुरुआत। तस्वीर: कौशिक गुप्ता।

इस प्राईड वॉक या गौरव यात्रा का आयोजन १५ मार्च २०१४ को मणिपुर राज्य की राजधानी इम्फाल में हुआ। आल मणिपुर नूपी मानबी एसोसिएशन (आमाना)ने, ‘साथी-पहचानऔर प्रोजेक्ट एम्पावर‘ (‘अमेरिकन जूइश वर्ल्ड सर्विसद्वारा फंड किया गया) के सहकार्य से गौरव यात्रा का आयोजन किया। मणिपुर राज्य में यह पहली एल.जी.बी.टी.आई रेनबो प्राइड वॉक थी। प्रतिभागी सुबह दस बजे यूथ हॉस्टल,खुमान लम्पक, इम्फाल पर इकठ्ठा हुए जहाँ से परेड की शुरुआत हुई। रोडवे के ज़रिये मिनूठोंग ब्रिज,हट्टा,न्यू चेक ऑन,पैलेस गेट होकर लमयानबा शंगलेन पैलेस कंपाउंड पर परेड समाप्त हुआ,जहाँ परामर्श सत्र का आयोजन किया गया।

दीगर सिविल सोसायटी संस्थाओं से,और व्यक्तिगत तौर पर और मणिपुर के ज़िलों से ५० लोगों ने इस इवेंट में भाग लिया। कुछ ने नक़ाब पहने थे तो कहियों के हाथों में प्लेकार्ड थे।जिनपर नारे लिखे थे,जैसेहम सैक्स के लिए खिलौने नहीं हैं‘, ‘गे – गुड ऐज़ यू;, ‘एल.जी.बी.टी.आई. अधिकार मानव अधिकार हैं‘, ‘एल.जी.बी.टी.आई. समाज को न्याय,समानता,गरिमा और इज़ज़त चाहिए,हम अपने अधिकारों में लिए भीक नहीं माँग रहे,उनको हासिल करने के लिए दावा कर रहे हैं‘, “संविधान से पक्षपाती कानून निकाल दो‘, ‘धारा ३७७ भारत छोडो‘ , ‘धारा ३७७ को चित करोइत्यादि। इंद्रधनुषी झंडे और बैनर लहराये। हम १० ट्रांस पुरुषों से संपर्क कर पाये जिनमे सो ३ लोग हिस्सा ले पाये। परेड के सबसे आगे था एक ट्रक जिसे इंद्रधनुषी रंग के गुब्बारों से सजाया गया था। उस पर लाउड स्पीकर लगा था। ४ गाने शुरुआत से अंत तक बजाये गए:विंड ऑफ़ चेंज, “बॉर्न दिस वे, “वी आर द वर्ल्डऔरहील द वर्ल्डऑनलाइन समाचार,दूरदर्शन और अखबारी मिडिया भी सहभागी हुए।

यह महज़ विरोध प्रदर्शन नहीं था, बल्कि यौनिकता की विभिन्नता का जश्न था, जिसे विषमलैंगिक (स्ट्रेट) सहयोगियों ने समर्थन दिया। मक़सद था आत्म-स्वीकृति बढ़ाना, समान अधिकार के लिए लड़ना, हम समाज का हिस्सा हैं, ये दिखाना, सम्प्रदाय में एकता की भावना बढ़ाना औरलैंगिकता और जिनसियत की विविधता का उत्सव मनाना। दुनिया भर में तो इसीलिए गौरव यात्राओं का आयोजन किया जाता है। शर्म और सामाजिक कलंक को मिटाकर ही लैंगिकता अल्पसंख्यकों के आन्दोलनों ने अपने अधिकार जीते हैं। यही समय की माँग मणिपुर में भी है। यह भारतीय उच्चतम न्यायलय के भारतीय दंड संहिता के धारा ३७७ के निर्णय के खिलाफ भी एक प्रदर्शन था।११ दिसंबर २०१३ के निर्णय के खिलाफ राष्ट्रीय स्तर पर प्रतिक्रिया हुई थी। उस प्रतिक्रिया में मणिपुर का योगदान यह गौरव यात्रा था। एक विशाल इंद्रधनुष फ्लैग को १२ लोगों ने परेड के मध्य में पकड़ा था। लाल गुलाब के बिल्ले,छोटे इंद्रधनुषी झण्डें और धारा ३७७ पर जानकारी के पैम्फ्लेट देखनेवालों में बाँटें गए।कुछ ने सवाल पूछे,और उन्हें गौरव यात्रा के मक़सदों और समुदाय के मसलों के बारे में बताया गया। परेड के आखिरकार हम सब खूब नाचे!

कितना अच्छा था कि किसी विरोधक ने परेड के बीच हंगामा नहीं मचाया! हमें समलैंगिक अधिकारों के बारे में जानकारी बाँटने का मौक़ा मिला। लाल गुलाब के बिल्ले लोगों को और पुलिस वालों को देते समय हम ये सन्देश दे पाये किहम आपसे,और आप हमसे प्रेम करते हैं” । माइक पर हमने घोषणा भी की, “ये जो गुलाब हम आपको दे रहे हैं,ये सिर्फ एक मामूली गुलाब नहीं है। ये आप के लिए हमारे प्यार की निशानी हैजब लोगों ने ये सुना,तो वे ख़ुशी से चिल्ला उठे। दूसरी तरफ हमें इस बात से थोड़ी शर्मिंदगी हुई की समलैंगिक सम्प्रदाय से कम और स्ट्रेट समर्थकों से प्रतिभागी ज़यादा थे!

इम्फाल प्राइड २०१४। सैनिक और प्रदर्शनकारी।

इम्फाल प्राइड २०१४। सैनिक और प्रदर्शनकारी। तस्वीर: कौशिक गुप्ता।

हमने पुलिस अधीक्षक और प्रभारी अधिकारी के ज़रिये उप-आयुक्त इम्फाल (पूर्व) से मार्च करने की अनुमति प्राप्त की। ये एक लम्बी प्रक्रिया थी। जब हर दफ्तर में कर्मचारी आपे से पैसे माँगें… । हर बार जब मुझसे पैसे माँगे गए,मैंने रसीद माँगी। जब उन्होंने मना किया तो समझ में आया कि वह रिश्वत की माँग थी। तब मैंने बताया के इस कार्यक्रम को आर्थिक सहायता मिल रही है। फंडरों को मुझे सारे सबूत देने होते हैं,कि ये पैसे किस तरह इस्तेमाल किये गए। उन्होंने मुझे ज़यादा महत्त्व नहीं दिया लेकिन मैंने अपने तरीक़े से काम किया। आखिर वे मेरा चहरा देख-देखकर थक गए और उन्होंने अनुमति पत्र रिलीज़ किया! उपरवाला जानता है की मैंने उप-आयुक्त के एक महिला कर्मचारी को ३०० रुपये दिए।

गुवाहाटी में भारत के पूर्वोत्तर से अन्य राज्य भी सहभागी थे। लेकिन हम और पूर्वोत्तर राज्यों से कम्युनिटी को जुटा नहीं पाये,सपोर्ट सिस्टम के अभाव में। दूसरे राज्यों के कम्युनिटी सदस्य,पिछले दो सालों से आयोजित होने वाली “मिस ट्रांस क्वीन पूर्वोत्तर भारत” इस समारोह में शरीक हो रहे हैं। उसके लिए हमें अलायंस,ए.जे.डब्ल्यू.एस.,साथी-पहचान और एम्.एस.ए.सी.एस. से सहायता मिली है,और दुसरे राज्यों से लोगों को बुलाना थोडा आसान हो जाता है। इन दोनों परेडों में सबसे बड़ा फ़र्क़ मुझे ये लगा कि गुवाहाटी में नेतृत्व लेस्बियनों ने किया,और ट्रांस लोगों की संख्या बहुत कम थी। जबकि मणिपुर में गौरव यात्रा का नेतृत्व ट्रांस औरतों ने किया और लेस्बियन या ट्रांस पुरुष कम संख्या में थे।

हमने समुदाय के और सदस्य जुटाने की बहुत कोशिश की। लेकिन चूँकि ये इवेंट मणिपुर में पहली बार हो रहा था और गौरव यात्राओं कि बारे में उन्हें ज़यादा जानकारी नहीं थी,कुछ लोगों को आने में हिचकिचाहट महसूस हुई। हमारे राज्य में एल जी बी टी आई समाज में ट्रांस पुरुष और स्त्रियां सबसे ज़यादाविज़िबलहैं,मतलब अपनी पहचान को ज़ाहिर करने में वे आगे हैं,और लोगों के ध्यान में भी ज़यादा आते हैं। बहुत सारे लोग हैं जो हमेशा रस्ते पर क्रॉस-ड्रेस करते हैं और सार्वजनिक स्थलों पर भी जाते हैं। पेहराव और रवैय्ये में भी खुलापन होते हुए वे आने में झिझक महसूस कर रहे थे। क्या पता अगर सूर्यास्त के बाद समारोह होता तो शायद हमें ज़यादा लोग मिलते। शाम के इवेंट, जैसे थबल चोनबा, ब्यूटी कॉन्टेस्ट और फैशन परेड रोज़ के दिन के काम के बाद होते हैं। मुझे आशा है अगली बार ज़यादा लोग आएँगे, क्योंकि अब ‘ये गौरव यात्रा किस लिए है’ इस विषय पर बातचीत शुरू हो गयी है।

परेड के बाद राज्य स्तर पर एक परामर्श बैठक हुई, “२०७ विरुद्ध धारा ३७७” के अंतर्गत। अनेक हितधारकों ने भाग लिया। मंच पर अतिथियों में शामिल थे अभिराम मोंगजाम (संयुक्त निदेशक, एम्.एस.ए.सी.एस.), एषा रॉय (राज्य संवाददाता, इंडियन एक्सप्रेस), कौशिक गुप्ता (वकील, कोल्कता उच्च न्यायलय), और श्री. मोमोन, लेक्चरर और ट्रेनर, मणिपुर राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण, और एल. एम्. एस. लॉ कॉलेज मणिपुर। परामर्श के अंत में ‘पहचान’ उप-उप-प्राप्तकर्ता के चुने हुए ज़िले के प्रतिनिधियों ने आगे का रास्ता और राष्ट्रिय आंदोलन से जुडी नीतियाँ, इन विषयों पर बात की और आमाना ने राज्य का प्रतिनिधित्व किया।

नूपी शबीजी, टेंगबंगलुप, थौबल, ने हिंसा के रिपोर्ट जमा करने में होनेवाली मुश्किलों के बारे में बताया। कहा गया की ऐसा भी काफी बार होता है की हादसा होने के बावजूद लोग खुलासा नहीं करते। काफी दिन और महीने गुज़र जाने के बाद लोग अपनी कहानियाँ बताते हैं, लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी होती है और उस समय कोई सबूत इकठ्ठा करना नामुमकिन हो जाता है। एंजल्स हेल्थ केअर, सेनापति ने सेनापति ज़िले की कठिनाइयों के बारे में बताया। इस ज़िले की संस्कृति एक जैसी है, और इसका विस्तार कुछ इस प्रकार है की सारा ज़िला तय करना मुश्किल हो जाता है। किसी नकली व्यक्ति की वजह से, और २ जातीय समूहों की प्रतिस्पर्धा की वजह से परियोजना का काम और भी मुश्किल हो जाता है। नागा इलाक़ों में कूकी सेवा प्रदाता प्रवेश नहीं कर पाते। और कूकी इलाक़ों में नागा सेवा प्रदाता नहीं जा पाते।

चर्च के नेताओं और मिलिटेंट समूहों द्वारा क्रॉस-ड्रेसिंग पर पाबंदी लगाने की वजह से कम्युनिटी के लोग खुले आम अपनी पहचान नहीं बता पाते हैं। आर.ई.ए.एल., चुरचांदपुर ने कहा की चर्च के समलैंगिक समुदाय को मना करने की वजह से वे सामने नहीं आते और अपनी पहचान नहीं बताते। लेकिन हाल ही में कुछ लोग आगे आये हैं। चंदेल ज़िले के सहभागी ने बताया की चूँकि लोग ख्रिस्ती धर्म से ताल्लुक़ रखते हैं और आदिवासी समुदाय से भी हैं, ज़्यादातर ट्रांसजेंडर ‘कम आउट’ नहीं कर पाते। सामाजिक और पारिवारिक दबाव की वजह से ज़्यादातर ट्रांसजेंडर शराबी बन जाते हैं, और ३५ साल की उम्र से पहले ही चल बसते हैं।

अगर धारा ३७७ द्वारा उनके बारे में गलतफहमियों को बढ़ावा मिलेगा, तो यह समुदाय और भी घायल हो सकता है। लोग पहले से भी ज़यादा छुपने लगेंगे। अतः हमें चंदेल ज़िले के लिए पहचान जैसी परियोजनाओं की ज़रूरत है। इससे इस वर्ग को सुविधाएँ हासिल होंगी। उन्हें एक साथ जुटाने में और आगे आने में आसानी होगी। उत्तर देते हुए अभिराम मोंगजाम ने कहा की चंदेल में मोरेह आता है जहाँ प्रॉपर मोरेह में टार्गेटेड इंटरवेंशन है। बर्मा से भी टी.जी. मोरेह आते हैं और इम्फाल से कुछ टी.जी. इराई नाम के होटल में काम कर रहे हैं। मरूपलोई फाउंडेशन ने बिष्णुपुर ज़िले में समस्याओं का ब्यौरा दिया। आमाना ने कहा के आंदोलन को शक्तिशाली बनाने के लिए समूहीकरण को प्राथमिकता दी जानी चाहिए।

जब लैंगिकता अल्पसंख्यकों की बात होती हैं तो हमेश ट्रांसजेंडरों का ही ज़िक्र होता है क्योंकि वे नज़र में ज्य़ादा आते हैं। मणिपुर में काफी संख्या में ट्रांस पुरुष और लेस्बियन भी हैं। आप प्लानेट रोमियो नामक डेटिंग वेबसाइट पर जाएँ, या फेसबुक पर देखें तो साफ़ ज़ाहिर है की गे (समलैंगिक पुरुषों) की संख्या भी कोई कम नहीं है। लेकिन उन तक पहुंचना कठिन है। इसलिए वक़्त आ गया है की हम उन्हें हमारे साथ एकजुट करें और एक साथ आवाज़ उठाएँ। नयी नीतियाँ बनानी होगी, जैसे राजनीतिक दलों के साथ संवाद शुरू करना और उन्हें अपनी तरफ करना, खासकर क्योंकि भारत में आम चुनाव कुछ ही समय में होने वाला है।

अगर समुदाय के लोग राजनीती में शामिल हो जायेंगे, हम नेताओं की मदद से पॉलिसी के स्तर पर बदलाव ला पाएंगे। धारा ३७७ पर जागृति और जानकारी ‘आई ई सी’ मटेरियल द्वारा समुदाय और स्ट्रेट समर्थकों में फैलाना ज़रूरी है। आज भी समुदाय में बहुत कम गिने-चुने लोग हैं जो पूर्णतया ३७७ के बारे में जानते हो। इसके आलावा, स्ट्रेट समर्थकों को समझाना ज़रूरी है कि अगर वे कुछ विशिष्ट यौन सम्बन्ध रखें तो ३७७ के तहत उन्हें भी गुनहगार ठहराया जा सकता है। लोगों को इतना मालूम हैं की कानून हमारी सुरक्षा के लिए हैं। लेकिन भारत के अन्य हिस्सों की तरह मणिपुर में लोगों को यह नहीं मालूम की हमारी रोज़मर्रा की ज़िन्दगी में कानून क्या किरदार निभाता है और हमारे जीवन पर कितना असर करता है। समाज और कानून को बदलने में और स्वीकृति लाने में हुए यशस्वी प्रयत्नों को समुदाय में बाँटना ज़रूरी है जिससे औरों को प्रेरणा मिल सके। आखिर में मैंने आभार प्रदर्शन किया और परामर्श समाप्त हुआ। मैं शुक्रगुज़ार हूँ पवनजी, रांधोनीजी और ‘साथी’ संस्था की, जिन्होंने मुझे यह काम करने के लिए प्रेरणा और क़ाबिलियत दी। तो यह था इम्फाल प्राइड का अनुभव!

– सांता खुरई ‘आल मणिपुर नूपी मानबी एसोसिएशन’ की सचिव और इम्फाल प्राइड की एक आयोजक हैं।