एक ज़हनी सवाल

Zehen Labia Leafletting

‘ज़हन’ कि श्रेया सेन, दादर स्टेशन के क़रीब; तस्वीर: मेघना मराठे

‘ज़हन’ नारीवादी संघटना और ‘लेबिया’ क्वीयर नारीवादी संघटना ने भारतीय दंड संहिता की धारा ३७७ से जुड़े उच्चतम न्यायालय के निर्णय बारे में आम लोगों में जागरूकता बढ़ाने के लिए मुम्बई में एक अनूठा प्रयोग किया। शहर के ६ लोकल ट्रैन स्टेशनों पर उन्होंने ७००० से अधिक पैम्फेट (जानकारी पत्र) बाँटें और सैंकड़ों लोगों के साथ लैंगिकता अल्पसंख्यकों के अधिकारों के बारे में चर्चा की। शनिवार, २५ जनवरी २०१४ को छत्रपति शिवाजी टर्मिनस, दादर और बांद्रा स्टेशनों पर, और रविवार २६ जनवरी को लोअर परेल, मुम्बई सेंट्रल और चर्चगेट स्टेशनों पर हर जगह औसतन ५ कार्यकर्ताओं ने “अब वापसी नहीं’, ‘संघर्ष जारी है’, ‘३७७ भारत छोडो’ लिखे हुए हिंदी, मराठी, और अंग्रेजी पोस्टर पहनकर लोगों का ध्यान आकर्षित किया। आँचल कहती हैं, “लोगों ने बहुत सारे सवाल पूछे। बहुतों ने अपना समर्थन जताया। थोड़े ही लोगों ने बातचीत करने से मना किया, लेकिन कटुता नहीं थी। कुछ लोगों को तो मालुम ही नहीं था के समलैंगिकता का पुनः अपराधीकरण हुआ है और जब बताया गया तो कहने लगे के यकीं नहीं हो रहा।” ‘ज़हन’ की श्रेया सेन एक दिल को छूने वाली घटना का वर्णन करतीं हैं। “एक वृद्ध गृहस्थ ने मेरे साथ ढाई (२.५) घंटों के लिए मुझे समझाया कैसे मैं सीधे नरक जाने वाली हूँ। उन्हें बहुत चिंता हो रही थी। “आप ये क्यों कर रहीं हैं? आप को ऊपरवाले के विरुद्ध काम नहीं करने चाहिए। आप को नरक से बचना होगा। बाल-आखिर उन्होंने ये राज़ बताया के वे किसी वक़्त समलैंगिक थे। कुछ सालों बाद उनके बच्चे की मृत्यु हुई। उनके अनुसार यह ऊपरवाले की सज़ा थी, उनके माज़ी के समलैंगिक बर्ताव के लिए।”

एक टैक्सी चालक सरबजीत जो १९ साल से टैक्सी चला रहे हैं और ३ बेटियों के पिता हैं, कह रहे थे: “मैं आपका समर्थन करता हूँ लेकिन आप का जीतना बहुत मुश्किल है, ख़ास करके संसद में।” तुकाराम नमक ५२ साल के नौकरी-शुदा आदमी ने मराठी में कहा, “मैं अंगूठा-चाप हूँ। इन बड़ी बातों से मेरा कोई लेना देना नहीं है। लेकिन मैं चाहता हूँ के हर कोई आनंद से जिए और अगर वो किसी और को नुकसान नहीं पहुंचाए तो उसे अपनी तरह से जीने की आज़ादी होनी चाहिए।” ‘ज़हन’ की कार्यकर्ता श्रुति वैद्य अपना मज़ेदार अनुभव बताती हैं, “दो पारसी आंटी जा रही थीं, उन्हें प्रायः गलती से लगा कि मैं समलैंगिकता विरुद्ध प्रचार कर रही हूँ तो वो गुस्सा हुईं। जब हमने खुलासा किया तो वे बहुत खुश हुई। उन्होंने कहा कि वे भिन्नलैंगिक हैं लेकिन उनका भी ३७७ से ताल्लुक़ है। उन्हें बहुत ज्ञान था विषय का। उसके बाद, हम मरीन ड्राइव के पास चर्चगेट स्टेशन से निकलते हुए गए वहाँ २ सेक्युरिटी गार्ड बैठे थे। मैंने जाकर उन्हें पैम्फलेट दिया और समझाने लगी तो उन्होंने कहा “समझ में आया हमें. आप गे कम्युनिटी के बारे में बात कर रहीं हैं। उन्होंने यही शब्द इस्तेमाल किये। उनको भी विषय का पूरा ज्ञान था, २००९ कि दिल्ली जजमेंट से लेकर अभी तक।” श्रद्धा इस इवेंट का सन्दर्भ समझाती हैं: “अब वापसी नहीं – हम अनेक हैं, एक हैं, बराबर हैं’ – ये हमारा नारा है क्योंकि न सिर्फ एल जी बी टी समुदाय के लिए लेकिन देश के सारे अल्पसंख्यकों के लिए यह निर्णय आपत्तिजनक है क्योंकि इसका मतलब यह होगा की देश का कानून उन नागरिकों के बुनियादी मानवाधिकारों की सुरक्षा की ज़िम्मेदारी नहीं लेगा जो बहुसंख्य नहीं हैं ‘लेबिया’ की कार्यकर्ता चयनिका शाह कहती हैं, “हमारी मांग है के यह फैसला जल्द से जल्द बदला जाए। न सिर्फ लैंगिकता अल्पसंख्यकों की सुरक्षा के लिए बल्कि इस देश के संविधान के लिए जिसमें हम सभी को समान अधिकार बहाल हुए हैं।”

Sachin Jain