समलैंगिकों का स्वीकारा: ‘सत्यमेव जयते’ द्वारा

आमिर खान, सत्यमेव जयते पर

आमिर खान, सत्यमेव जयते पर


आमिर खान के शो सत्यमेव जयते से लोगों में समलैंगिकों के प्रति आदर सम्मान और स्वीकार्यता बढ़ी या नहीं इसका प्रतिशत निकालना मुश्किल होगा। लेकिन मैं इतना जरूर कहूँगा कि जो पहले से समलैंगिकों के अधिकारों के पक्ष में थे उनको और बल मिला और जो लोग इसके मुखर विरोधी थे उनके बीच भी सुगबुगाहट सुनने को मिल रही है। सारे देश में इस पर नयी बहस चल पड़ी है। इसके विरोधी इसे समाज के लिए घातक मानते हैं और इसके पक्षधर इसको प्राकृतिक बता कर इसका जोरदार शब्दों तर्क दे कर इसका पक्ष लेते हैं। यह निर्विवाद है कि आमिर जैसे व्यक्तित्व का इस संघर्ष से जुड़ना एक बहुत ही सकारात्मक बात है। इस लेख में मैं बात करना चाहता हूँ इस शो पर होने के मेरे अनुभव के बारे में।

पिछले साल मुझे जब इस बाबत बताया गया कि आपका और आपके परिवार के सदस्यों का भी सत्यमेव जयते के लिए साक्षात्कार जायेगा तो पहले तो मैं हैरान था कि मुझे इसके लिए क्यों चूना गया? मैंने तो ऐसा कुछ भी नहीं किया। लेकिन फिर मुझे बताया गया कि ‘तुमने समलैंगिक समाज के लिए वो काम किया है जिसके लिए बहुत कम लोग ही साहस जुटा पाते हैं’। एक शादीशुदा समलैंगिक को कौन-कौनसी समस्याओं का सामना करना पड़ता है ये दुनिया को मेरे उदाहरण से जानकारी मिली।

इस एपिसोड के आने के बाद से अब तक मुझे कई फ़ोन आ चुके हैं जिनमे शादीशुदा समलैंगिकों के अलावा उन लोगों के हैं जो शादी करने की उम्र पर बैठे हैं और घर वालों द्वारा उन पर शादी करने का दबाव हैं। साथ ही ऐसे लोगों के फ़ोन भी आ रहे हैं जो यह जानने के उत्सुक हैं कि मैंने अपनी पत्नी, बच्चों और माता पिता को कैसे अपने समलैंगिक होने के बारे में बताया और उन्होंने कैसे इसको इतनी आसानी से स्वीकार कर लिए। ये सवाल सारी दुनिया से मुझे पूछा जा रहा है। लोग मुझे पूछ रहे हैं कि मैंने ऐसी कौन सी काउन्सलिंग कर दी जो उन लोगों ने बड़ी सहजता से मेरी लैंगिकता को स्वीकार कर लिया? बात यहाँ तक भी नहीं थी कि मैंने सिर्फ अपने परिवार को बताया परन्तु मेरे परिवार द्वारा मेरी समलैंगिकता को स्वीकार करना सारी दुनिया ने सुना और जाना। ये विषय कई परिवारों में बहस का मुद्दा बन गया है कि जब एक पत्नी अपने समलैंगिक पति को स्वीकार कर सकती है तो परिवार और समाज क्यों नहीं। जब कि समाज का उस समलैंगिक व्यक्ति से कोई सीधा सम्बन्ध और काम भी नहीं। फिर भी समाज को इस पर आपत्ति क्यों?

मैंने देखा और महसूस किया है कि शो देखने के बाद दुनिया भर के लोगों के विचारों में कहीं न कहीं बदलाव देखने को मिल रहे हैं। लोग अब समझ रहे हैं की ये सब अप्राकृतिक घटना नहीं है। जिस ईश्वर ने सभी इंसानो को बनाया है उसी ईश्वर ने समलैंगिकों को भी बनाया है। ईश्वर में विश्वास रखने वाला ये कभी नहीं चाहेगा कि वह ईश्वर की सत्ता या प्राकृतिक जगत को झूठा बोल दे जिस में हम सभी प्राणी जगत रहते हैं। बदलाव की बयार चलने लगी है लेकिन पूरी तरह से बदलाव के लिए अभी समय लगेगा। मुझे हर दिन तक़रीबन २ से ५ फ़ोन कॉल आने शुरू हो गए हैं। ज्यादातर यह फ़ोन उन समलैंगिकों के हैं जिनकी आयु १५ से २० वर्ष हैं। उनको समझ नहीं आ रहा है की वो किस प्रकार समाज से बगावत करें क्योंकि वह उस पड़ाव पर हैं जिसमे उनका भविष्य का निर्माण होना है। वह समय उनके स्कूल और कालेज में पढ़ने का है। वह अगर समाज से बगावत करते हैं तो उनका भविष्य बर्बाद हो सकता है लेकिन उनकी आत्मा अंदर ही अंदर छटपटा रही है कि वह किस तरह से इस दुविधा से बहार निकले। फ़ोन पर वह बच्चे बात करते-करते रो पड़ते हैं। इसके लिए हम लोगों ने सक्षम ट्रस्ट संस्था में ही उनकी काउन्सलिंग के लिए प्रबंध कर दिया है ताकि वह इस प्रकार की दुविधा में कोई गलत कदम न उठा लें या फिर कोई तनाव में आत्महत्या न कर लें।

सत्यमेव जयते का मतलब मेरे लिए है नीतिपरक बर्ताव। मिसाल के तौर पर समलैंगिकों द्वारा ही एच.आई.वी. फैलाए जाने का आरोप कोरी बकवार और बेबुनियाद बात है। टारगेट इंटरवेंशन संस्थाओं को ध्यान रखना चाहिए के वे रिपोर्टिंग या अन्य गतिविधियों में ऐसा कोई फेरबदल नहीं करे, जिससे यह ग़लतफ़हमी सरकार और समाज में और फैले। देश में समलैंगिकों से ज्यादा दूसरे लोग, पुरुष और महिलाएं संक्रमित हैं। मैं यह जरूर मानता हूँ कि एच.आई.व्ही का खतरा सभी को है और समलैंगिकों को कुछ ज्यादा हो सकता है लेकिन यह कहना गलत है कि केवल समलैंगिकों से ही एच.आई.व्ही फैलता है।

मैं समझता हूँ कि अब समय आ गया है कि सरकार को इसके लिए तुरंत बिना विलम्ब किये संविधान में संशोधन करना चाहिए और ऐसे हर स्कूल और कालेज में काउन्सलिंग केंद्र खोलने चाहिए। जहाँ पर अलग तरह की ओरिएंटेशन रखने वाले बच्चों के साथ-साथ उनके माता पिता की भी काउन्सलिंग हो ताकि उन बच्चों की आत्मा न मरे। वह इस दुनिया में एक निर्जीव शरीर ले कर जीवन न बिताए। उनका भविष्य अब सरकार और समाज के हाथ में है। सरकार को चाहिए की वह धरा ३७७ को तुरंत खत्म करे और ऐसा कानून बनाएँ ताकि अलग ओरिएंटेशन रखने वाले बच्चों का विकास और सम्मान उसी प्रकार से हो जैसे दूसरे बच्चों का। और समाज को भी अपने नजरिया को बदलना होगा नहीं तो ऐसी कई सिसकियाँ बिना किसी के कानों में पड़े कहीं किसी कोने में दबी रह जाएँगी और घुट घुट कर मर जाएँगी।