#RhymeAndReason: अस्तित्व

ज़िंदगी से रुबरू होने की थी कोशिश मेरी
रूह की गहराइयाँ फिर नापने मैं चल पड़ा

रंग कितने थे वो भीतर जानने मैं चल पड़ा
तन्हाईयों से गुफ़्तगू करने को मैं फिर चल पड़ा

जानने ये तब लगा, खुदसेही था अंजान मैं
एक नये से खुदको ही पहचानने मैं चल पड़ा

हमकदम मेरी थी तब वो सहमी सी खामोशियाँ
उनसे ही गिर के संभल के होती थी सरगोशियाँ

वह सफर था खूबसुरत और ज़रा मुश्कील सा भी
क्यूँ ना हो? आखिर थी मंझील सुनहरीसी रोशनी

अस्तित्व मेरा खिल गया पाकर वो सच की रोशनी
“मैं” ना आखिर “मैं” रहा “मैं बन गया वह रोशनी”

यह अभी-अभी संपन्न Rhyme and Reason प्रतियोगिता की चार सर्वश्रेष्ठ कविताओं में से एक है

विशाल घाटगे (Vishal Ghatge)
Latest posts by विशाल घाटगे (Vishal Ghatge) (see all)