समलैंगिकता: नज़रिया और कानून

विभिन्न धार्मिक और सामाजिक कारणों से कुछ लोग समलैंगिक रिश्तों को शर्मनाक या पाप मानते हैं। आमतौर पर उनका यह दृष्टिकोण कई मिथकों और गलत सूचनाओं से जुड़ा हुआ होता है। गे, लेस्बियन और समलैंगिक लोगों को पूर्वाग्रह और भेदभाव, नफरत और हिंसा का सामना करना पड़ता है।

वहीं दूसरी ओर पूरे विश्व में ज्यादातर लोग समलैंगिकता को जीवन का एक सामान्य हिस्सा मानते हैं। वे सोचते हैं कि गे और लेस्बियन भी विषमलिंगियों की तरह ही सम्मान के हकदार हैं।

विश्व के लगभग 60 प्रतिशत देशों में समलैंगिकता को कानूनी रूप से वैध माना जाता है। इनमें से कई देशों में इसे व्यापक रूप से स्वीकार भी कर लिया गया है। यूरोप, उत्तरी और दक्षिण अमेरिका, साउथ अफ्रीका और न्यूजीलैंड सहित कई देशों में गे और लेस्बियन जोड़े, विषमलैंगिक जोड़ों की ही तरह विवाह कर सकते हैं। लेकिन कुछ देशों में समलैंगिकता को अवैध माना जाता है और गे, लेस्बियन और बाइसेक्सुअल लोगों को जेल भी जाना पड़ता है।

भारत में कानून

अद्यतन: 6 सितंबर, 2018 को, भारत के सुप्रीम कोर्ट ने समान लिंग के वयस्कों के बीच सहमतिपूर्ण यौन संबंध का खंडन किया और आंशिक रूप से धारा 377 का अंत कर दिया। अदालत ने फैसला किया कि वयस्कों के बीच सहमति से बनाए समलैंगिक यौन संबंध के लिए धारा 377 का आवेदन असंवैधानिक, ‘तर्कहीन, अनिश्चित और स्पष्ट रूप से मनमानी भरा था 

भारत में समलैंगिक लोगों को शिक्षा, स्वास्थ्य, आवास और रोजगार के क्षेत्रों में भेदभाव का सामना करना पड़ता है और कभी-कभी वे शारीरिक और यौन हिंसा का भी शिकार हो जाते हैं। भारत में समलैंगिकों की सुरक्षा के लिए कोई कानून नहीं थे और आमतौर पर पुलिस भी उनकी शिकायत को खारिज कर देती थी।

6 सितंबर, 2018 से पहले भारतीय दंड संहिता की धारा 377 के अनुसार भारत में समलैंगिकों का एक दूसरे के साथ शारीरिक संबंध रखना अवैध था। इसका सीधा सा मतलब यह था कि समलैंगिक व्यवहार कानून के ख़िलाफ़ था।

व्यवहार में इस कानून को शायद ही कभी लागू किया जाये। लेकिन समलैंगिकों के लिए मौजूदा कानून इतना कमजोर था कि उन्हें अभी तक पुलिस के उत्पीड़न और गालियों का शिकार होना पड़ता था।

6 सितंबर, 2018 से पहले भारतीय दंड संहिता की धारा 377 के अनुसार भारत में समलैंगिकों का एक दूसरे के साथ शारीरिक संबंध रखना अवैध था

यह सच है कि विश्वभर के सभी देशों में कुछ लोग समलैंगिक हैं और भारत इसका अपवाद नहीं है। हम लोगों को अक्सर यह कहते हुए सुनते हैं कि समलैंगिकता भारत की संस्कृति का हिस्सा नहीं है। लेकिन हजारों सालों से भारतीय साहित्यों में समलैंगिकता के बारे में चर्चा की जाती रही है। उदाहरण के लिए कामसूत्र में एक पूरा अध्याय ही ओरल सेक्स को समर्पित है जिनमें से ज़्यादातर दो पुरुषों के बीच मुखमैथुन के बारे में उल्लेख किया गया है। इसके अलावा दो महिलाओं के बीच के समलैंगिक संबंधों का भी वर्णन विस्तार से किया गया है।

हजारों सालों से भारतीय साहित्यों में समलैंगिकता के बारे में चर्चा की जाती रही है।

खजुराहो जैसे मध्यकालीन हिंदू मंदिरों के चित्रों में महिला को महिला के साथ सेक्स करते हुए और पुरुष को पुरुष के साथ ओरल सेक्स करते हुए दिखाया गया है। समलैंगिक संबंध पश्चिमी सभ्यता की देन नहीं है, लेकिन जिस कानून के तहत इसे अपराध मानता है भारत में वह पहला समलैंगिक विरोधी कानून ब्रिटिशों द्वारा बनाया गया था। 19वीं सदी में यूरोप में समलैंगिकता निषिद्ध थी और उन्हीं विचारों को लेकर ब्रिटिश भी भारत आये थे।

हम सभी की अलग-अलग पहचान होती है और लैंगिक अनुरूपता भी इनमें से एक है

समलैंगिक होना उस व्यक्ति के पहचान का हिस्सा बन गया। इस चीज को कोई नहीं बदल सकता है। एक महिला माँ, बहन, हिंदू, सिंगर, रनर, उद्यमी, भारतीय और इससे कहीं बढ़कर भी कुछ हो सकती है। इसके अलावा एक समलैंगिक पुरुष भी फुटबाल का शौकीन, क्रिश्चियन, पुत्र, राजनीतिज्ञ और एक कुक हो सकता है। हम सभी की अलग-अलग पहचान होती है और लैंगिक अनुरूपता भी इनमें से एक है। लेकिन यह किसी के पहचान का एकमात्र जरिया नहीं है और ना ही यह आपको परिभाषित कर सकता है।

लोग ही संस्कृति को बनाते हैं और लोग ही इसे बदल भी देते हैं। यह कोई नयी बात नहीं है कि भारतीय समाज समलैंगिकों के प्रति असहिष्णु है और ना ही यह उसी तरह बना रहेगा। चीजें पहले की अपेक्षा बदलना शुरू हो रही हैं और लोगों में समलैंगिकता की समझ और स्वीकृति बढ़ रही है।

यह लेख पहलेलव मैटर्स पर प्रकाशित हुआ थाऔर यहाँ उनकी अनुमति के साथ पुन: पेश किया गया है

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