पापा को कैंसर था। उनके बाद गुज़रा हुआ वक़्त, अब उनके साथ गुज़ारे हुए वक़्त से ज़्यादा हो गया है। वो क्या थे? वो कैसे बात करते थे? मैं कुछ पक्के तौर पर नहीं कह सकता। बस कुछ थोड़ी सी खुशनुमा सी यादें है; उनका मुझे गोद में उठाकर ज़ोर से हँसने की; वो बाहर गीली छत पर सिगरेट हाथ में लिए नंगे पैर घूमने की; वो सर्दियों में आइसक्रीम की और गर्मियों में आमो की। और बहुत सी यादें है उनके जीने और मरने के बीच झुझते रहने की; वो गले से लटकते पाइप की; उनके लगातार खाँसने की; उदासी भरी खामोश सहमी हुई रातों की।

इलाज के लम्बे दौर में, वो उदास रहने लगे थे। लोगो से कम बोलते थे पर मम्मी उनसे बात करने में लगी रहती थी जब तक की उनकी आवाज़ बिल्कुल बंद नहीं हो गयी। अब वो गहरी साँसे लेते थे आवाज़ के साथ; महसूस होता था की वो बस दर्द में है।

उनके जाने के बाद मैं कभी पनप नहीं पाया जैसा की लोग पनपते हैं। मैं लोगो से कम बोलता हूँ, झुझता हूँ; जीने और मरने के लिए नहीं पर झुझता हूँ। मुझे पता है कैसा लगता है झुझते रहना बेमतलब अपने कैंसर से; हज़ारो बनावटी मुस्कुराहटो से छुपाना और उसका हमेशा होना। २४ घंटे अपने अंदर एक कैंसर का होना; जो किसी दिन तुम्हे सभी से दूर कर देगा; तुम्हारी छोटी सी खुशियों से; तुम्हारे अपने घर की गीली छत से; सर्दियों की आइसक्रीम से; गर्मियों के आमो से।

मै बस दर्द में हूँ। आई ऍम गे और ये मेरा कैंसर है।

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कपिल कुमार (Kapil Kumar)
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