एक अरसा हुआ अब तो मुझको मुझसे मिल लेने दो
इस समाज और इस सोच से अब तो कुछ पल चैन की मुझको भी जी लेने दो।

कैसे समझाऊँ कि कितना तड़प रहा हूँ? इस झूठी पहचान को खुद पर थोपते -थोपते,
अब तो मुझे भी खुले आसमान के नीचे बाहें अपनी फैला लेने दो।
एक अरसा हुआ अब तो मुझको मुझसे मिलने दो।
मुझे भी हस लेने दो, मुझे भी प्यार करने दो, मुझे भी उसका हो लेने दो उसको भी अब मेरा हो लेने दो।

कब तक यूँ घुट-घुट कर खुद को समझाता रहूँ?
इस घुटन की कैद से मुझको भी आज़ाद हो लेने दो।
एक अरसा हुआ अब तो मुझको मुझसे मिलने दो।

आप भी अपनी लिखी हुई कहानी, कविता, आत्मकथा और LGBTQ से सम्बंधित और कोई भी लेख प्रकाशन हेतु editor.hindi@gaylaxymag.com पे ईमेल द्वारा भेज सकते हैं

अनामिका बर्मन (Anamika Burman)
Latest posts by अनामिका बर्मन (Anamika Burman) (see all)