बीच बाज़ार वह बिकने को तैयार
दाम रुपैया मात्र हजार
ना घर ना बार ना चूल्हा चौकीदार
ना माँ की ममता
ना बाप का प्यार

ना आगे कोई रास्ता
ना पीछे कोई संसार
ना जेब में फूटी कौड़ी
ना किसी संपत्ति पर अधिकार
घर से दुत्कार कर निकाला हुआ
वह बेबस वह लाचार

साथ में नहीं है कुछ उसके
बस आत्मा शरीर और एक दिल गद्दार
गलती नही है कुछ उसकी
बस किस्मत से बीमार

लड़का होकर वो बेचारा
एक लड़के से कर बैठा प्यार
समाज के संग जीने की चाहत है पर
समाज को नहीं है वो स्वीकार
अब क्या करे भाग्य का मारा
जिसका नहीं कोई जीवन आधार
इसलिए तो

खड़ा चौराहे पर बीच बाज़ार
वह बिकने को तैयार।

जीतू बगर्ती
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