चुसकी – एक कहानी (भाग २/२)

चुसकी- एक कहानी (भाग २/२)। तस्वीर: inonit.in

चुसकी- एक कहानी (भाग २/२)। तस्वीर: inonit.in

‘चुसकी’ का पहला भाग यहाँ पढ़ें। प्रस्तुत है सोमेश कुमार रघुवंशी की २ किश्तों में पेश श्रृंखलाबद्ध कहानी ‘चुसकी’ का दूसरा और आखरी भाग:

मैं समझ गया कि आज बात करना फ़िज़ूल है। अगले दिन वह अच्छे मूड में उठा और मुझे उखड़ा-उखड़ा देखकर बोला, “मूड क्यों स्पॉइल कर रखा है?”
“माफ़ करना अगर कुछ ग़लत कह दिया हो, यार यह नशा ऐसा ही होता है। चाहे प्यार का हो या शराब का!”, कहते हुए उसने मेरे गालों पर एक किस कर दिया और मेरी सारी नाराज़गी उस चुम्बन के स्पर्श से छू हो गई। फिर पूरे दिन हम उसकी समस्या का स्थाई समाधान करने में लगे रहे। इस बीच उसने परिवार के सभी लोगों को अपनी शालीनता और मृद भाषा से अपना क़ायल कर लिया। दूसरी रात पहली बार जब हम दोनों साथ सोए तो यूँ महसूस हुआ कि सदियों से भटकती धारा आज अपने सागर में एकस्वरूप हो गई है। पहली बार तन और मन दोनों में समन्वय महसूस हो रहा था। चौथे दिन संजय का फ़ोन आया कि प्रभाकर के फ़्लैट पर आकर रहे, उसे नौकरी भी मिल जाएगी।उस रात मैंने उसे कहा, “यू आर दी ब्राइटेस्ट स्टार इन माई लाइफ, मेरी ज़िन्दगी से कभी मत जाना।” उसने मेरे होठों पर अपनी ऊँगली रख दी।

एक रात प्रभाकर का मेरे पास फ़ोन आया: “ आशिफ ने सिरिंज से नशा किया है और पूरा घर उल्टी से भर दिया है।” “मैं सुबह आता हूँ”, कहकर मैंने फ़ोन रख दिया। अगली सुबह दफ्तर में बीमारी का फ़ोन करके मैं सीधे प्रभाकर के फ़्लैट पर पहुँचा। मुझे देखते ही वह घर से बाहर निकल गया। तब प्रभाकर ने उसे फ़ोन करके कहा: “यह तुम्हारे लिए इतनी दूर से सुबह-सुबह आया है और तुम हो की रूड हो रहे हो।” “मैं अपनी करनी पर शर्मिंदा हूँ। मुझमें इन्हें फैस करने की हिम्मत नहीं है।” मैंने मैसेज किया: “अगर शर्मिंदा हो, और अगर मुझे सच में प्यार करते हो,तो फ़्लैट पर वापस आओ”। थोड़ी देर बाद वह वापस आया और पूरे समय आँख नीची किए रहा। मैंने कहा: “यह नशे की लत बहुत बुरी है। ज़िन्दगी का नशा करो और बाकी सब छोड़ दो।” उसने बताया कि चार रोज़ पहले उसकी बॉस से झड़प हो गई थी। परिणामतः बॉस ने उसकी सैलरी रोक दी है। अब उसके पास रोटी तक के पैसे नहीं हैं। ऐसे में जब साथियों ने इंजेक्शन ऑफर किया तो वह मना नहीं कर सका। मैंने उसके सिर पर हाथ फेरा और उसे दो हज़ार रुपए थमाए और उसने झिझकते हुए उन्हें पकड़ लिया। चलने से पहले मैंने उससे कहा: “चुसकी पार्टी नहीं दोगे?” हम चुसकी चूसने पहुँच गए।

कुछ दिनों बाद मुझे पता चला कि जनाब ने संजय यानि कि अपने बॉयफ्रेंड की आर्थिक तंगी का हाल जानने पर आधे पैसे उन्हें दे दिए। इस बीच हमारी सामान्य बात होती रही। मैंने उसे आग्रह किया था कि जब कभी उसका इस तरफ आना हो तो वह शाम को मेरे यहाँ ही ठहरे। एक बार जब वह मुझसे मिलने आया तो मैंने पूछा किधर से आ रहा है। उसने गोलमोल जवाब देकर टालना चाहा। मुझे कुछ दिनों से उस पर शक था। चूँकि हमारी बात दिन में दो-चार बार हो जाती थी इसलिए रियल टाईम लोकेटर से उसकी स्थति का पता चल जाता था। कुछ आपसी दोस्तों से मालूम हुआ कि उसकी ज़िन्दगी में और भी लोग हैं। मुझे इस बात से बहुत ठेस लगी। मुझे उसके साथियों से आपत्ति नहीं थी पर इस बात से आपत्ति थी कि वह मुझसे बहुत कुछ छिपाता था। पर मैं चुप्प रहा। एक दिन उसने मुझे एक मूवी का नाम मैसेज किया: “देखना, दोनों ‘न जाने क्यों’, ज़रूरी है।

तीन दिन बाद उसने पूछा –“तुमने मूवी देखी?”
“हाँ।”
“सॉरी, मुझे भी तुम्हारी ज़िन्दगी से जाना होगा, प्लीज् अपने परिवार पर ध्यान दो।”
“तुम्हें हुआ क्या है? ये कैसी बहकी-बहकी बात कर रहे हो।” मैंने परेशान-हैरान होते हुए लिखा।
“सॉरी, मैं तुम्हें ब्लॉक कर रहा हूँ।” कहकर उसने मेरा नम्बर और आईडी दोनों ब्लॉक कर दी और मैं केवल छटपटा के रह गया।

एक रोज़ प्रभाकर का मैसेज आया कि इसने फिर नशे का इंजेक्शन लिया है।

“उसके बाप से बोल। आसिफ ने मुझसे सारे रिलेशन तोड़ लिए हैं।” बाद में पता चला कि उसके पिता उसे घर ले गए थे पर एक हफ़्ते बाद ही वह वहाँ से भाग लिया।

एक रोज़ उसका मैसेज आया: ‘आई एम मिस्सिंग यू, एण्ड नीड योर हेल्प।’ तब तक पुनीत मेरे जीवन में आ चुका था और आशिफ के किस्से सुन-सुनकर मेरा मन बिफर चुका था। “सॉरी” कहकर मैंने उसे ब्लाक कर दिया। आगे पता चला कि अपनी नशे की जरूरत पूरी करने के लिए वह अपनी भावनाओं का सौदा करने लगा है। वह एक जिगोलो बन गया है। सुनकर मुझे बड़ा धक्का लगा। मुझे लगा कि उस दिन समय पर उसकी मदद न करके मैंने उसे इस स्थिति में डाला है। मैंने उसे ईमेल किया: “आई वांट टू सी यू”, इस उम्मीद से की शायद वो जवाब दे।

एक दिन उसका मैसेज आया। उसमे एक यूरोपियन की फ़ोटो थी और लिखा था: इस आदमी ने मुझे पाँच हजार रुपए और एच.आई.वी.दिए हैं। मैं सुन के सन्न रह गया। मन में खुद एक भ्रम-सा हो आया: कहीं यह पहले से…? जितने भी दिन हमने साथ गुज़ारे थे कभी सावधानी नहीं बरती। मैं उससे ज़्यादा स्वयं और परिवार को लेकर चिंतित हो उठा। मुझे लगा मेरे पैरों के नीचे से ज़मीन खिसकने वाली है। मैंने उसी दिन एच. आई. वी. टेस्ट कराया और अगले दो दिनों तक मैं अधमरा सा रहा। बेटे ने गली में चुसकी वाले को देखकर खाने की जिद्द की तो मैंने उसे डाँट दिया। मुझे लगा यह चुसकी का लाल रंग मेरा ख़ून है और कोकोकोला उसका दूषित रक्त जो चुस्की की पिघलती बर्फ के जरिए मेरे बंदन मेरी ज़िन्दगी में घुलने को तैयार है। जब रिपोर्ट आई तो मेरे प्राण लौटे। पिछले तीन दिनों से मैंने इंटरनेट भी नहीं चलाया था। फेसबुक खोलते ही उसके मेसेजों की घुसपैठ शुरु हो गई।

माफ कर देना तुम्हारी बात नहीं मानी।
शायद उन्ही कर्मों की सजा है।
आशा है कि तुम स्वस्थ होगे पर जाँच जरुर करा लेना।
मैंने उसे फ़ोन मिलाया पर उसने नहीं उठाया।

मैंने मैसेज छोड़ा –“घबराने की बात नहीं है। सही ईलाज से तुम लम्बा और स्वस्थ जीवन जी सकते हो।”
“सबने मुझे छोड़ दिया। न मेरे पास पैसे हैं, न कहने को कोई अपना। मैं बहुत अकेला हूँ।”
“मैं तुम से मिलना चाहता हूँ”, मैंने लिखा।
“नहीं ,जरूरत नहीं है”, उसने लिखा।
“मैं तुमसे प्यार करता हूँ।”
“मैं तुमसे प्यार नहीं करता और तुम्हारी हमदर्दी नहीं चाहता।” ऐसा लिखकर उसने मुझे फिर ब्लॉक कर दिया।
“कभी अगर ज़रूरत महसूस करो तो पुकार लेना।” मैंने यह मैसेज लिख छोड़ा। शायद वह पढ़ ले।
२०१२ की होली से एक रोज़ पहले उसका मैसेज आया –पहले से कुछ स्वस्थ हूँ। पूए खाने का मन है। क्या तुम्हारे यहाँ बनते हैं?
“हाँ, बन जाएँगे, और तुम मेरे लिए पराए थोड़े हो। मैं तुम्हारा इंतजार करूँगा।”
होली के दिन प्रचलन न होने के बावजूद मैंने पूए बनवाकर उसका इंतजार किया। पर उसे नहीं आना था और न वह आया।
“कमीने, तेरी क़ौम ही ऐसी है। न त्योहार समझते हो न जज़बात।” गुस्से से मैंने शाम को यह मेसेज छोड़ा पर उधर से कोई प्रतिक्रया नहीं आई।

पिछले एक हफ़्ते से उसने फिर औपचारिक बातचीत शुरु की थी। आज सुबह-सुबह उसका मैसेज आया: ‘मैं जसवंत अस्पताल में हूँ। एक बार मिलने की इच्छा है। जब मैं अस्पताल पहुँचा तो देखा कि उसका शरीर पीला पड़ गया है, जिस पर जगह-जगह घावों के कारण काले चकत्ते पड़े हुए हैं।
“अब याद आई है? तू बहुत जालिम है” मैंने खुद को काबू करते हुए कहा।
“यू रियली लव मी”, मेरी तरफ गौर से देखते हुए वह बोला।
मेरी आँखे डबडबा गईं।
“अच्छा, वो सुई धंसा ले, मुझ से इन्फेक्टेड है,” कहकर वह मेरी तरफ देखने लगा।
मैं सकपकाया-सा उसे देखने लगा तो वह हँसने लगा।
“मज़ाक था। प्यार हमें जीना सिखाता है, तुमनें भी मुझे सिखाने की कोशिश की पर शायद मेरी ज़िन्दगी ही …” कहते-कहते उसका गला रुंध गया।
“मेरे साथ एक चुसकी शेयर करोगे?” कहते हुए उसने मेरी तरफ कातरता से देखा मानों यही उसकी गंगाजली हो।

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