4 साल के रिश्ते में आयी दूरियों को हमने कुछ ऐसे मिटाया…

यह दूसरी बार था, जब मैंने उसे ग्राइंडर पर पकड़ा था। अभी उसे बताना नहीं चाह रहा था क्योंकि उसकी परीक्षा चल रही है। इंतज़ार कर रहा था कि कब उसकी परीक्षा ख़त्म हो और उस से इस बारे में बात करूँ। मन बहुत बैठा जा रहा था। उसे खोने का डर हावी हो रहा था। वैसे भी जब से उसे ग्राइंडर पर देखा था, तब से ही काम में मन नहीं लग रहा था और आज तो एक सहकर्मी को बुरी तरह से डांट भी दिया था। बेचारा एक्सेल शीट में बहुत छोटी गलती जो कर बैठा था।


तकरीबन चार साल पहले हमारी मुलाकात ग्राइंडर पर ही हुई थी। वह देहरादून अपने कॉलेज से कुछ दिनों के लिए अपने घर उदयपुर आया थ। तब उसकी उम्र 20 साल थी। उसके मैसेज का जवाब तो दिया पर हम दोनों मिलते तब तक उसके देहरादून वापस जाने का वक़्त आ गया और वो लौट गया। हम नहीं मिल पाए। वह दिसंबर 2015 था। चूँकि हमने नंबर शेयर किये थे तो अब बात होने लगी थी। देर रात तक चैट बहुत सामान्य हो गई थी। हालत ये हुए कि वह जनवरी में ही फिर से उदयपुर आया और 15 जनवरी 2016 को हमारी पहली मुलाकात हुई। वो रात मैं कभी नहीं भूल सकता। पूरी रात हम नहीं सोये. जाने कितने सपने साथ में संजोये। वो पहला आलिंगन- शरीर के गर्मी- उसका किस करने का तरीका- उसका जोश… ये मुझे आज भी रोमांचित कर देता है।

वो रात मैं कभी नहीं भूल सकता। पूरी रात हम नहीं सोये. जाने कितने सपने साथ में संजोये। वो पहला आलिंगन- शरीर के गर्मी- उसका किस करने का तरीका- उसका जोश… ये मुझे आज भी रोमांचित कर देता है।


हमारी मुलाकात को ढाई साल से ज़्यादा हो चुके थे। अब हम एक कपल थे। बस डिस्टेंस रिलेशनशिप एक अड़चन थी पर तय किया था कि जल्दी ही साथ रहने लगेंगे। उसका कॉलेज पूरा हो चूका था और उसकी केम्पस पोस्टिंग पहले दुर्गापुर (बंगाल) और बाद में गांधीधाम (गुजरात) में हो गयी। अब जब मौका मिलता हम कभी दिल्ली तो कभी जयपुर या और किसी शहर में मिल लेते। उसके कोलेज के दिनों में एक बार सरप्राइज़ देते हुए मैं देहरादून भी हो आया था। उसके चेहरे के वो भाव मैं कभी नहीं भूल सकता। वो मुझसे लिपट गया और देर तक बस लिप्ता ही रहा। हमारा प्यार परवान चढ़ता ही जा रहा था। 2016 जून में हम बाइक पर लद्दाख घूम आये। यह ज़िन्दगी का अनमोल सफ़र था, जिसने हमारे रिश्ते को और ज्यादा मज़बूत किया। जब वो छुट्टियों में उदयपुर होता तो हम आस पास के किसी पर्यटन स्थल पहुँच जाते और एक दो रातें वहीँ गुज़ारते। हम एक दूसरे बहुत ज़्यादा करीब आ चुके थे। जब वो उदयपुर होता तो हम जोधपुर, कच्छ रण, जयपुर, ऋषिकेश, मनाली, कसौल, रणकपुर, माउंट आबू… शहरों की फेहरिस्त बढ़ती जा रही थी पर हम दोनों का साथ में गले में हाथ डाले घूमना जारी था। उदयपुर के किसी होटल में रुकना मुनासिब नहीं था पर आस पास के होटलों में कोई ऐसा नहीं बचा था, जिसे हमने विज़िट नहीं किया हो।

तस्वीर सौजन्य : मिहिर महेर / क्यूग्राफ़ी

इसी बीच एक दिन उसका फोन आया कि उसका काम में मन नहीं लग रहा और वह उदयपुर लौटना चाहता है। मेरे लिए तो जैसे यह बिन मांगे मुराद मिलने जैसा था। वो आ गया। वह कैट परीक्षा की तयारी करके किसी नामी कॉलेज से एमबीए करना का सोच रहा था। घर वाले ज़ोर दे रहे थे कि दिल्ली की कोई कोचिंग में दाखिला कर लो और वह था कि उदयपुर में ही रहकर तयारी करना चाहता था। आखिर उसी की चली और हम दोनों पूरे ढाई साल बाद साथ साथ रहने लगे। उसके पिता काम के सिलसिले में किसी और शहर में चले गए थे। मम्मी कभी यहाँ तो कभी पापा के पास। इस तरह वह घर में अकेला ही था और मैं उसी के घर शिफ्ट हो गया था। सुबह जब काम पर निकलता, उस से पहले दोनों मिलकर ब्रेकफास्ट बनाते। दोपहर में लंच के लिए आता तो वह मेरा इंतज़ार कर रहा होता था। रात को फतहसागर पर कॉफ़ी पीना, देर रात तक हाइवे ढाबा पर डिनर और एक दूसरे को ढेर सारा वक्त और प्यार.. बस यही हमारी दिनचर्या थी।


उसने उदयपुर का दूसरा बेहतरीन स्कोर प्राप्त किया था। उसके फोटो-बैनर शहर में लगे थे। आसानी से उसे एक नामी आईआईएम में दाखिला मिल गया था। ख़ुशी का अवसर था तो अच्छे से सेलिब्रेट भी किया पर फिर से रिलेशनशिप में डिस्टेंस शब्द जुड़ने वाला था। हम एक दूसरे में इतने ज़्यादा खोये थे कि अलग होना मुनासिब नहीं था। पर क्या कर सकते थे? फिर से 2 साल के लिए अलग होने का समय आ गया था। रोने से भी इसको रोका नहीं जा सकता था। वह चला गया।

उसे गए तकरीबन एक साल हो गया था। हम रोज़ कम से कम एक बार ज़रूर बात कर लेते थे। इस एक साल में तीन बार मिल चुके थे। पर धीरे धीरे जो दूरियाँ आ रही थी, उन्हें महसूस किया जा सकता था। हमारी बातचीत से प्यार धीरे धीरे खोता जा रहा था। हम रूटीन की बातें करते। खाना खाया ? आज कौन सी क्लास है ? ऑफिस में मैं आज बहुत व्यस्त रहा.. अब ये हमारे मुद्दे थे बातचीत के। दोनों इस चीज़ को महसूस कर पा रहे थे पर जान बूझ कर अनजान बने रहने लगे।

मुझे अचानक से ये महसूस होने लगा कि कहीं मैं उसे खो तो नहीं दूंगा? जब उस से इस बारे में बात की तो वह चिढ गया। मुझे अब उस से बात करने में भी डर लगने लगा था। उसे खोने का डर… इसी डर में मैंने उसकी जासूसी शुरू कर दी।ये पता होते हुए भी कि ये गलत है और इसका असर हमारे रिश्ते पर भी पड़ सकता है।फेक आईडी और फेक लोकेशन से लोग-इन करके जब पहली बार उसे ग्राइंडर पर पाया तो दिल बैठ गया। फेक आई डी से उसे होटल मिलने बुलाया और वह तैयार भी हो गया! अब परेशान होकर मैंने उसे फोन किया और सारी हकीकत बता दी। उसने माफ़ी मांगी और आगे ऐसा नहीं करने का वादा किया।

एक महीने बाद यह दूसरी बार था। वह फिर से ग्राइंडर पर था। मैं उसके इम्तिहान ख़त्म होने का इंतज़ार करने लगा। शनिवार को परीक्षा ख़त्म होते ही उस से बात की। वह गुस्सा होकर बोला कि इस तरह मैं अब उसकी निजी जिंदगी में दखल दे रहा हूँ। उसका कहना था कि फेसबुक और ग्राइंडर में कोई अंतर नहीं है। गुस्से में वह यह भी बोला कि उसे भी दोस्तों की ज़रूरत है, वह अकेला है वहाँ!

मैं उसे समझ नहीं पा रहा था। हम दोनों की उम्र में 10 साल का अंतर है। उसके मिलने से पहले मैं कई लोगों के साथ बिस्तर शेयर कर चूका हूँ, पर शायद उसे अपनी यौनिकता का पता चलते ही मैं मिल गया। मुझे लगा, शायद ये गलत भी नहीं है। किन्तु खुद को सही साबित करने के चक्कर में वो जो तर्क दे रहा था, वो मुझे परेशां किये जा रहे थे। मैं दफ्तर से जल्दी घर आ गया।

जहाँ था, वहीँ बैठ गया। घर पर अकेला था। कोई भी नहीं था जो मुझे चुप करा सके। इंसान जब एक बार रोना शुरू करता है तो वह केवल एक ही बात पर नहीं रोता। उसे बहुत सी बातें एक साथ परेशां करती हैं। तकरीबन छह घंटे हो चुके थे। चुप होने का कोई सवाल ही नहीं। मम्मी दफ्तर से आ गयी थी। मुझे कमरे में बंद देख कर उन्होंने सोचा कि शायद दफ्तर से थक कर आया हूँ और सो गया हूँ। कुछ देर बाद नीचे से ही उन्होंने आवाज़ दी कि खाना खा लेना और वो सैर पर चली गयीं। मैं चुपचाप खाना ऊपर लेकर आया और एक तरफ रख दिया। सोना नसीब में नहीं था।

हम दोनों रोज़ शाम को 9 बजे से 10 बजे के बीच एक बार बात ज़रूर किया करते थे। उस दिन उसका फ़ोन नहीं आया। मेरी भी हिम्मत नहीं थी फोन करने की। रात 1 बजे तक मेरी आँखे सूज चुकी थी। फिर बिस्तर पर पड़े पड़े रोते रोते ही कब नींद आ गयी, पता ही नहीं चला। अगला दिन रविवार था। मतलब आज तो मम्मी का सामना करना ही होगा। ऐसी शक्ल के साथ कैसे ? इसी उधेड़बुन में था कि ऑफिस से सर का फ़ोन आया। वे चाहते थे कि सोमवार को मैं फिल्ड में जाकर एक ट्रेनिंग का असेसमेंट करू। मैंने हाँ कर दी, एक दिन पहले ही उसी वक़्त निकल पड़ा। माँ का सामना करने की हिम्मत नहीं थी। फोन पर उन्हें संदेशा दे दिया था।

रविवार की शाम तक उसका फोन नहीं आया। न ही कोई व्हाट्सएप मैसेज। अनहोनी की आशंका से मन घबरा उठा। मैं उसे खोना नहीं चाहता था। क्या बात करू- कैसे बात करू, नहीं समझ आ रहा था। मैं हमारे ट्रेनिंग सेंटर की छत पर अकेला टहल रहा था। रोना अब थम चूका था। मन हुआ कि किसी से सलाह ली जाए कि अब क्या करना है। नॉएडा वरुण को फोन लगाया। उसने पूरी बात समझ कर कहा कि मैं चार साल की रिलेशनशिप पर ऐसे शक कैसे कर सकता हूँ? वो बोलता जा रहा था- हम लोगों की यही आदत खराब है। लोगों की ज़िन्दगी में ताकाझांकी से बाज़ नहीं आते। मैं बोला, “शक करना गलत था पर शक तो बिलकुल सही था”। वरुण बोला, “ये सब छोडो। वो अगर तुमको छोड़कर जाना चाहेगा तो अचानक वैसे ही चला जाएगा। पर अगर तुम ऐसी ही हरकतें करते रहे तो पक्का वो चला जाएगा। आज की जेनरेशन है, वो ऐसे नहीं सोचती। वो जब तुम्हारे साथ है, सिर्फ तुम्हारे साथ है, बस। इसके अलावा कुछ और मत सोचो और आगे रहकर उसे फोन करो। और हाँ, तुम दोनों न अगर चार महीने से एक दूसरे से नहीं मिले हो तो ये गलत बात है। जब मौका मिले, जैसे मौका मिले… दोनों साथ समय गुज़ारो।”


शाम के दस बज रहे थे। उसका फोन अभी भी नहीं आया था। छत पर बैठ गया। आगे रहकर फोन करने की हिम्मत नहीं हो रही थी। बस फोन को देखे जा रहा था। अचानक घंटी बजी। उस तरफ वही था। मैंने सॉरी बोला और उसने ‘कोई बात नहीं’ कहा। मैं रो पड़ा। ज़ोर ज़ोर से रो पड़ा। रोते रोते बस यही बड़बड़ा रहा था कि आगे से ऐसा नहीं करूँगा प्लीज़ मुझे मत छोड़ना। मैं अपने प्यार के लिए गिड़गिड़ा रहा था। वो उधर से मुझे बराबर चुप करने की कोशिश कर रहा था। दोनों एक दूजे से तकरीबन 1 घंटे तक बतियाते रहे। दोनों रो रहे थे और एक दूसरे से माफ़ी मांग रहे थे। आंसुओं ने दोनों के मन के सारे मेल को साफ़ कर दिया था।


तस्वीर सौजन्य : एस अरिजीत / क्यूग्राफ़ी

आज उस घटना को एक महिना बीत चुका है। हम दोनों अभी ऋषिकेश में हैं। गंगा किनारे लिटिल बुद्धा कैफ़े में एक दूसरे का हाथ थामे बैठे हैं। रिश्ते की गरमाई को महसूस कर रहे हैं। सारी शिकायतों का और सारे अफसोसों का तर्पण कर दिया है। दोनों ने तय किया है कि कुछ भी हो जाए, दोनों किसी भी शहर में हो, हर महीने एक बार ज़रूर मिलेंगे। हमारा रिश्ता मज़बूत है। हमने इसे इन चार सालों में अपने अहसासों से सींचा है- सहेजा है। कोई और इंसान इस अहसास के बीच नहीं आ सकता। मन के सारे वहम गंगा में बहे जा रहे हैं। हम दोनों उन्हें बहता हुआ देख रहे हैं। शाम होने वाली है। बत्तियां जला दी गयी है। कुछ लोग गंगा आरती में शामिल हो रहे हैं। घंटियां बज उठी है। हम दोनों अपने हाथों को और कस के पकड़ लेते हैं। एक दूसरे की तरफ देख कर मुस्कुरा देते हैं।

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आर्य मनु (Arya Manu)