कविता : सुलगते जिस्मों को हवा ना दो
सुलगते जिस्मों को हवा ना दो
खाख़ हो जायेगीं कोशिशें
न वो हमें देखते हैं, न हम उन्हें
नज़र वो अपनी थामे हैं, हम इन्हें
कुछ कहने की चाहत न उन्हें हैं, न हमें
वो बहाने ढूढ़तें हैं नज़दीक रहने के
हम दूर जाने से कतराते हैं
नज़र बचाकर जो दे... Read More...