संपादकीय ४ (१ अप्रैल, २०१४)

छलकाएं अपने असली रंग! तस्वीर: बृजेश सुकुमारन।

छलकाएं अपने असली रंग! तस्वीर: बृजेश सुकुमारन।

इस अंक की थीम है ‘असली रंग’। वक़्त आ गया है, कि क्वीयर कम्युनिटी अपने विभिन्न रंगों से समाज को रंगने से नहीं डरे। वक़्त आ गया है कि हमारे जीवन की दिशा और गुणवत्ता को तय करने वालों के असली रंग भी प्रकट हों। और ऐसा ही हो रहा है।

मौक़ा आ गया है। अगले सप्ताह से भारत में ७ अप्रैल से १२ मई तक १६वी लोक सभा चुनने के लिए आम चुनाव होने वाले हैं। दुनिया का यह सबसे बड़ा चुनाव ९ चरणों में होगा। ८२ करोड़ मतदाता देश के विभिन्न निर्वाचन क्षेत्रों से सांसद चुनेंगे। उच्चातम न्यायलय के ११ दिसंबर २०१३ के समलैंगिकता के पुनरपराधिकरण के निर्णय के लगभग ४ महीनों बाद ये चुनाव होने जा रहे हैं।

भारत दुनिया का पहला और एकमेव देश है, जिसने लैंगिकता अल्पसंख्यकों का निरपराधिकरण करने के साढ़े चार साल बाद उन्हें फिरसे अपराधी करार कर दिया है। रिव्यू याचिका के २८ जनवरी को ख़ारिज होने के बाद, कल ही यानि ३१ मार्च को क्यूरेटिव याचिका दाखिल की जाने वाली थी, जो न्यायलय द्वारा जाने वाले रास्तों में से फिलहाल एक आखरी रास्ता माना जा रहा है। लेकिन समलैंगिक समुदाय ने संसद के ज़रिये अपने हक़ूक़ हासिल करने की जंग का बिगुल बजा दिया है। ख़ुशी की बात है कि एल.जी.बी.टी.आई.क्यू. समुदाय की सदा कई राष्ट्रीय स्तर की लोकप्रिय पार्टियों ने सुनी, और अपने घोषणापत्रों में धारा ३७७ के द्वारा होने वाले अपराधीकरण को निकालने की बात की है।

‘चुनाव की सरगर्मी’ में अक्षत शर्मा हमें वाक़िफ़ कराते हैं, न सिर्फ राजकीय दलों के चुनाव-पूर्व समलैंगिकता-सम्बन्धी रवैयों से, बल्कि क्वीयर समुदाय में मौजूदा सूरतेहाल में वर्तमान मनःस्थिति से भी। लेकिन इन दलों पर हम क्या प्रभाव डाल सकते हैं? उनकी सोच कैसे बदल सकते हैं? पवन ढल के ‘अधिकार माँगपत्र – समय की ज़रूरत’ में एक ऐसे प्रयास के बारे में पढ़ें।

इस अंक में हमें भारत के पूर्वोत्तर राज्यों के २ खूबसूरत रंगों में नहाने का सौभाग्य मिला है, मणिपुर और मेघालय से। इम्फाल के पहले प्राइड परेड और उससे संलग्न परामर्श सत्र की रोचक कहानी पढ़ें, सांता खुरई की ज़बानी। रूढ़िवाद और जातीय विभेद से झूँझते हुए, भ्रष्टाचार को मात देकर, विभिन्न ज़िलों के समुदाय सदस्यों को एकत्रित करके यह गौरव यात्रा आयोजित की गई। भारत के समलैंगिक अधिकारों के आंदोलन में उनकी आवाज़ें भी उतनी ही निष्ठावान और प्रतिबद्ध है जितनी देश के अन्य इलाक़ों और बड़े शहरों में होने वाले संघर्षों की है, यह भावना उनकी दास्ताँ उनकी ज़बानी ‘इम्फाल में प्राइड का कमाल’ इस लेख में पढ़कर महसूस होती है। मेघालय से रबीना सुब्बा “शमकामी” नामक अपनी संस्था और उसके काम के बारे में बताती हैं। एक मातृवंशीय समाज में चुनौतियां कम नहीं होतीं, महज़ अलग होती हैं। वहाँ के लैंगिक अल्पसंख्यकों के क्या मसले हैं, और उनके सपने क्या हैं, जानिये ‘नमस्ते मेघालय से’ इस लेख में।

इसके अलावा हमारी शृंखलाबद्ध कथा ‘आदित्य’ की चौथी कड़ी में एक निर्णायक मोड़ आता हैं। इसे, और कहानी के पिछले तीन रोचक किश्तों को पढ़ने से न चूकें। रंग भले ही एक जैसे हो, किसी के असली रूप को देखने के लिए कभी-कभी आँखों के सामने के कोहरे को हटाना पड़ता है। कैसे? पढ़िए पियूष और सचिन के रचनात्मक सहयोग से लिखी गयी कविता ‘पर्दाफ़ाश’ में। कैसे होता है जब आपके जीवन के कैनवास पर डर और मज़बूरी की वजह से आपको कोई और रंग चढाने पड़ते हैं? या उससे भी भयावह परिस्थिति – जब आपकी ज़िन्दगी कृष्ण-धवल लगने लगती है? ऐसी ज़िन्दगी में जब रंगों की बौछार होती है, तो कैसे लगता है? पढ़िए शिखर, एक शादी-शुदा समलैंगिक की मार्मिक ‘आँख-मिचौली – मेरी सच्ची जीवन कहानी’ में।

दो हफ्ते पहले १७ मार्च को हमने-आपने होली मनाई। होली के दिन सारी रंजिशें भूलकर हम सच की जीत और बुराई का ख़ात्मा होने का उत्सव एक दुसरे पर रंग लगाकर मनाते हैं। आशा है कि आपकी ज़िन्दगी भी होली के रंगों कि तरह रंगीन हो, और हम सारे हिन्दुस्तानी अपने भेद – धर्म, वर्ग, जाति, लैंगिकता इत्यादि भूलकर एक साथ मिलकर सम्मानपूर्वक रहे। आपकी प्रतिक्रियाओं, कहानियों, कविताओं, पत्रों और लेखों का हमें बेसबरी से इंतज़ार है। ईमेल पते editor.hindi@gaylaxymag.com पर ज़रूर लिखें।

आपका नम्र,

सचिन जैन

संपादक, गेलैक्सी हिंदी

१ अप्रैल, २०१४

Sachin Jain