सुरेश उसकी सच्चाई नहीं जानता था इसलिए गुरमीत को डर था कि कहीं वो उसे खो ना दे क्योंकि इससे पहले गुरमीत ने कभी खुद को इतना खुश और कम्फ़र्टेबल महसूस नहीं किया था
बाइनरी अंक से कंप्यूटर चल सकते हैं, इंसान नहीं। गे होने या न होने का सवाल न्याय से शुरू होकर लोकतांत्रिक मूल्यों तक पहुँचा है। ये ज़रूरी है क्योंकि इससे हम किसी भी लैंगिकता को सामान्य और आधुनिक परिप्रेक्ष का हिस्सा समझ कर अपनाएँगे।
ऐसा क्यों होता है हमारे समाज में? ऐसे बच्चे का इसके लिए क्या दोष है? उसे भी तो उसी ईश्वर ने बनाया है जिसने अन्य सभी को बनाया है, फिर वो इस उपेक्षा का शिकार क्यों? वो समस्या नहीं है किसी के लिए।
ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के साथ हिंसा करने वाले लोगों को सिसजेंडर लोगों के साथ हिंसा करने वाले लोगों से कम सज़ा देकर क्या साबित करना चाहते हैं? कि ट्रांसजेंडर समुदाय की जान का कोई मूल्य नहीं है?