कविता: अनोखा प्यार

ना जाने क्यों शिकायत है समाज को इनसे
जब की कमी नहीं खासियत है इनकी,
ये जिस्म की परवाह किए बिना ही भावनाओं को अपनाते हैं,
खोखले समाज से ज़्यादा
एक दूसरे को समझ पाते हैं।

स्त्री और पुरूष की तरह
इनका प्यार पल भर में,
ना ही बदलता ना खोता है,
ये एक दूसरे को करोड़ों में से खोज लेते हैं,
इनके प्यार में जिस्म ज़रूरी नही है,
ना ही दौलत की लालच होती है,
ना ही प्यार करने की वजह खोजनी होती है।

ये लड़के लड़के हो कर
एक दूसरे को पूरा कर जाते हैं,
जिस्म को प्यार करने का ज़रिया
ना मानते हुए बल्कि
एक दूसरे के भावनाओं को अपनाते हैं।

इसके लिए गैरो से नहीं बल्कि,
अपनो से लड़ जाते हैं!
क्यों ये समाज के ठेकेदार
इनका मज़ाक उड़ाते हैं?

खुद फसे है खोखले रित रिवाज विचारो में
गैरो को समझते हैं..
गलत तुम नहीं ये समाज है,
जो खुद बदनुमा दाग होके
बेदाग लोग को मार डालते हैं
और खुद को सही साबित करने में लग जाते हैं,

लड़के का लड़के से
या लड़की का लड़की से
प्यार करना अपराध नहीं,
ना जाने इतनी सी बात ये लोग
क्यू नहीं समझ पाते हैं?

जीतू बगर्ती
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