मुझे प्यार जताना नहीं आता
मगर प्यार फिर भी करता हूँ
मुनासिब तरीक़ा नहीं आता
इस लिए यूँही सिसकता हूँ
कुछ रह गयीं हैं बातें बतानी
जो बोल नहीं पाता, तो बेचैन सा रहता हूँ
मेरे तकिए की नमी ये गवाह देती है कि
टूटके, बिखरके, मैं कैसे सिमटता हूँ
जो जल रही है उधर, मेरे अरमान कि चिता है
कोई लहर आकर बुझा दे उसे, इस आस मे बैठा हूँ
एक ही ख़्वाब था मेरा, दफ़्न हैं यहीं पर
अब इसी गीली मिट्टी के एहसास से जीता हूँ
उम्मीद तो है अब भी, उसके लौट आने की कभी
इस लिए हर आहट को अब दिल थाम के सुनता हूँ
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